पिछले साल की शुरुआत चीन में कोरोना वायरस संक्रमण की खबरों से हुई, और उसके बाद, पिछले 3-4 महीने पूरी दुनिया में फैलते संक्रमण की खबरें मानवता को डराती रहीं। एक ऐसे समय में, जब भारत में संक्रमण की वृद्धि दर करीब बीस हजार मरीज प्रतिदिन की है, हर व्यक्ति यह जानना चाहता है कि कोरोना के बाद, इस बीमारी का हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ेगा? मास्क व सैनिटाइजर जैसी चीजें तो हमारी शॉपिंग लिस्ट में लंबे समय तक रहने जा रही हैं, लेकिन शिक्षा, रोजगार, सामाजिक जीवन, राजनीति, सिनेमा व अन्य पर कोरोना दूरगामी प्रभाव डालने जा रहा है।
दुनिया के कई देशों में चिकित्सा-विज्ञानी कोरोना वायरस का इलाज तलाश रहे हैं, कई वैक्सीनों के ट्रायल हो रहे हैं, उनकी सफलता को लेकर कई दावे भी आ रहे हैं, लेकिन फिर भी यह मानना जल्दबाजी होगी कि इसका इलाज कुछ महीनों में निश्चित तौर पर मिल ही जायेगा। यहाँ इस बात को समझना जरूरी है कि कई दशकों बाद भी, एचआईवी-एड्स जैसी बीमारी का कोई टीका नहीं बन पाया, और कैंसर जैसे जानलेवा रोग की भी, कोई कारगर, शर्तिया दवा नहीं बन पाई। कहने का मतलब यह है कि हमें, अब कोरोना वायरस के साथ जीना सीखना होगा।
इस बात से हर कोई सहमत है कि पिछले तीन महीनों ने हमें घर-परिवार का महत्व समझाया है। अब हर व्यक्ति प्रकृति की ताकत को समझ रहा है, और लॉकडाउन की यह यादें शायद हमारी पीढ़ी के जेहन से कभी ना निकलें। इस पीढ़ी के अधिकतर लोगों ने पहली बार, इतना लंबा समय घर में गुजारा है, और सामाजिक तथा आर्थिक अनिश्चितता का यह दौर, हमारी जीवन शैली को पूरी तरह से बदलने जा रहा है।
इस महामारी ने इंसान को समाज से दूर किया है, और हमारे सामाजिक तानेबाने को झकझोर कर रख दिया है। पहले किसी परिचित से मिलने पर खुश होने वाले लोग, अब हर व्यक्ति को शंका की निगाहों से देख रहे हैं। जब पहले मिलते साथ गले लगने वाले मित्र अब दूर से ही नमस्कार कर रहे हैं, तो यह मान कर चलिये कि हाथ मिलाने (हैंड शेक) की पच्छिमी प्रथा शायद हमेशा के लिए खत्म हो जायेगी, और उसका स्थान “नमस्ते” की हमारी भारतीय अभिवादन पद्धति लेगी। वायरस के खतरे से बचने के लिये दुनिया “दो गज की दूरी” का सिद्धांत अपना लेगी, जो सामाजिक रिश्तों में दूरी को बढायेगी। शादी से लेकर अंतिम संस्कार तक, हर सामाजिक आयोजन पर जारी ये सरकारी बंदिशें निश्चित तौर पर खर्चे को कम करवायेंगी, लेकिन इसके साथ-साथ इंसान सामाजिक तौर पर एक-दूसरे से कटता चला जायेगा।
आर्थिक मोर्चे पर, इस संकट को झेलने के बाद अधिकतर लोगों के जीवन में अनिश्चितता का माहौल है, और कई गैर-जरूरी खर्चों पर, अब लगाम लगने जा रही है। मध्यम वर्ग का बचत की ओर ज्यादा रुझान रहेगा, ताकि भविष्य को सुरक्षित बनाया जा सके। अब लोग जीवन बीमा, स्वास्थ्य बीमा व ऐसी निवेश की स्कीमों को ज्यादा गंभीरता से लेंगे, जो संकट काल में उनका सहारा बन सके, और परिवार को आर्थिक सहयोग दे सके।
शिक्षा के क्षेत्र में ऑनलाइन शिक्षा को अचानक ही बहुत ज्यादा महत्व मिलने लगा है, ऑनलाइन परीक्षाएं भी जल्द ही दिखने लगेंगी, और अगर जल्द ही टीका नहीं बनता है, तो ढाई-तीन साल के छोटे बच्चों को स्कूल भेजना भी एक बड़ी चुनौती होगी। राजनैतिक रैलियां अब ज्यादातर ऑनलाइन ही दिखेंगी, साथ ही सिनेमा हॉल, डिस्कोथेक, मॉल व भीड़-भाड़ के ज्यादातर स्थानों में बड़े बदलाव दिखने जा रहे हैं, लेकिन उन बदलावों के बावजूद वहाँ रौनक लौटेगी, यह कहना मुश्किल है। ट्रेवल व टूरिज्म इंडस्ट्री तथा एविएशन सेक्टर में, फिलहाल रिकवरी की कोई उम्मीद नहीं है।
अविश्वास के इस दौर में, कई फैक्टरियों में उत्पादन शुरू हो चुका है, लेकिन स्थानीय टाटा स्टील (ट्यूब्स डिवीजन) व बजाज ऑटो में फैले संक्रमण की खबरें डराती हैं। इस के मद्देनजर कंपनियों द्वारा “वर्क फ्रॉम होम” का दायरा बढ़ाया जायेगा, जिस से आईटी इंडस्ट्री को खासा फायदा मिलेगा। हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री एक बड़े संकट से गुजर रही है, और सैलून तथा पार्लरों को डेढ़ दशक पहले हर व्यक्ति के लिये नये ब्लेड आनिवार्य करने के बाद, शायद सबसे बड़े बदलाव से गुजरना पड़ेगा। मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारों व अन्य धार्मिक स्थलों पर भारी भीड़ शायद भूतकाल की घटना हो जायेगी, और आस्था को व्यापार बना चुके धर्मगुरुओं के समर्थकों की तादात में बड़ी गिरावट आयेगी।
अमेरिका, इटली, यूके, व स्पेन समेत अत्यधिक व्यक्तिगत स्वतंत्रा देने वाले हर देश ने, इस बीमारी में, उन अधिकारों की बड़ी कीमत चुकाई है, और अब शायद कई अधिकार, सरकारों द्वारा निलंबित किये जायेंगे। कुल मिलाकर, हम एक ऐसी व्यवस्था का हिस्सा बनने जा रहे हैं, जहाँ अनेक बंदिशें होंगी, कई पाबंदियां होंगी, और उन सब के बीच, मानवता की भावना व मानवीय संवेदनाओं को कायम रखना, एक बड़ी चुनौती होगी।