धरा जब-जब विकल होती मुसीबत का समय आता।
किसी भी रूप में कोई महामानव चला आता।।
किसी को समय बड़ा बनाता है और कोई समय को बड़ा बना देता है। कुछ लोग समय का सही मूल्यांकन करते हैं और कुछ आने वाले समय का पूर्वाभास पा जाते हैं। कुछ लोग परत दर परत तोड़कर उसमें वर्तमान के लिए ऊर्जा एकत्र करते हैं और कुछ लोग वर्तमान की समस्याओं से घबराकर अतीत की और भाग जाते हैं। ‘सज्जन सकृत सिंधु सम कोई’ के प्रतीक डा नर्मदेश्वर पाण्डेय ऐसे ही नेक दिल इंसान थे, जिन्होंने कभी समस्याओं से मुँह नहीं मोड़ा अपितु विघ्नों को कुचलकर अपनी कामयाबी का झण्डा फहराया और मुकाम हासिल किया।
आज 28 मार्च 21को व्हाट्एप पर उनके निधन का समाचार सुनकर अवाक् रह गया। सहसा विश्वास नहीं हुआ तो कविवर यमुना तिवारी व्यथित विमल जालान, श्री राम पाण्डेय तथा हरिवल्लभ सिंह आरसी से चलभाष पर बात की और फिर यह अविश्वास, विश्वास में बदल गया।
उनका जन्म बिहार प्रांत केभोजपुर जिलान्तर्गत सोनकी ग्राम(पोस्ट सोहियां थाना शाहपुर) में 18 .1.1952 को एक साधारण किसान परिवार में हुआ था।उनकी माता का नाम दुलिया देवी और पिता का नाम राजेश्वर पाण्डेय था।वे बचपन से ही पढने लिखने में मेधावी और कर्मठ प्रवृत्ति के थे। अपनी कर्मठता,मेधाविता एवं सदाशयता के बल पर वे टिस्को जैसी प्रतिष्ठित कंपनी के वरीय प्रबंधक कार्मिक बन गये थे। वे कई सामाजिक,धार्मिक तथा सांस्कृतिक संस्थाओं के अध्यक्ष रहे। जमशेदपुर के केन्द्र में स्थित तुलसी भवन जैसी प्रतिष्ठित सांस्कृतिक साहित्यिक संस्था के वे विगत 15वर्षो से मानद महासचिव थे।
उनके कार्यकाल मे तुलसी भवन में अनेकानेक साहित्यिक सांस्कृतिक उत्कृष्ट कार्यक्रम हुए।इतिहास साक्षी है कि उनके कार्यकाल में तुलसी भवन का चतर्दिक भव्य विकास हुआ।उनका काल तुलसी भवन के इतिहास मे स्वर्ण काल माना जाएगा।
डॉ. जंग बहादुर पाण्डेय
1980के दशक में तुलसी जयंती के पावन पुनीत अवसर पर मानस मर्मज्ञ पं0राम किंकर उपाध्यायजी तुलसी भवन में प्रवचन हेतु आए थे। कार्यक्रम की भव्यता को देखकर मैं अभिभूत था। इच्छा हो रही थी काश मै भी कभी मुख्य अतिथि के रूप में तुलसी भवन में आमंत्रित होता। मुझे यह लिखने में प्रसन्नता हो रही है कि मेरी यह मनोकामना डा नर्मदेश्वर पाण्डेय के कार्यकाल में एक बार नहीं अनेक बार साकार हुई।
उनसे मेरा पुराना संबंध था और यह संबंध डा प्रो बालेंदु शेखर तिवारी रांची के सौजन्य से कायम हुआ था।नीति कहती है कि “संबंध को जोडना एक कला है,लेकिन संबंधों को निभाना एक साधना है,इसीलिए बडे बुजुर्गों ने कहा है कि रिश्तों की कदर भी धन की तरह करनी चाहिए क्योंकि दोनोँ का कमाना मुश्किल है,पर गंवाना आसान।” मुझे कहने की इजाज़त दीजिए कि डा नर्मदेश्वर पाण्डेय संबंधों के बनाने और उसके निर्वाह की कला में प्रवीण थे।कोई भी व्यक्ति जो एक बार उनसे मिलता वे अपने आचरण एवम् व्यवहार से उसको सदा सदा के लिए अपना बना लेते थे। इस कला में वे माहिर थे।
कभी तुलसी जयंती,कभी सूर जयंती कभी दिनकर जयंती, कभी प्रेमचंद जयंती कभी नवांकुरों के लिए काव्य सृजन प्रक्रिया, कहानी सृजन प्रक्रिया निबंध लेखन कला , कभी पुस्तक विमोचन कभी काव्य पाठ का आयोजन आए दिन तुलसी भवन में होते रहता था और प्रायः हर आयोजन में वे सम्मान पूर्वक याद करते थे और कभी मैने ना नहीं किया।मैने उनसे एक बार पूछा आप मुझे बार बार क्यो बुलाते हैं उनका उत्तर था पाण्डेय जी आपको सुनना हृम सभी तुलसी भवन के सदस्यों को अच्छा लगता है,आप केवल मेरी नही हम सबकी पसंद हैं।
मैने कहा मुझे भी बार बार आना इसलिए अच्छा लगता है क्योंकि तुलसी भवन सरस्वती का पीठ है और जमशेदपुर मेरा जनकपुर है और भला कौन ऐसा अभागा होगा जो सरस्वती के मंदिर में और जनक पुर नहीं जाना चाहेगा?
डा पाण्डेय विद्याव्यसनी थे ।स्वतंत्र छात्र के रूप में उन्होंने न केवल हिन्दी मे एम ए किया अपितु डा राम किशोर तिवारी के निर्देशन में “कृष्ण काव्य में बलराम” जैसे कठिन विषय पर रांची विश्वविद्यालय से 1996में पीएच0डी0की भी उपाधि प्राप्त की यह उनके विद्यानुरागिता का ही परिचायक है। वे विद्यानुरागी तो थे ही ,साधुसंतों, निर्धनो दीन दुखियों तथा विद्वानों का सम्मान करते थे। प्रसिद्ध कथाकार सुदर्शन की कहानी हार की जीत के खडग सिंह के शब्दों मेंः ऐसा मनुष्य मनुष्य नही देवता होता है।
निष्काम कर्म योगीः भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि योगः कर्मसु कौशलम्।अर्थात कर्म की कुशलता का नाम ही योग है।मुझे यह लिखने में प्रसन्नता हो रही है कि डा पाण्डेय जीवन पर्यंत अपने कर्मो को कुशलतापूर्वक निष्पादित करते रहे।जिंदगी एक लहरदार एवम् पेंचदार सफर है,जिसकी राहो में फूलो की नही कांटों की सेज है।इधर उधर बिखरे फूल जीवन के आकर्षण के केन्द्र बिन्दु हो सकते हैं,लेकिन फूल की मुस्कान पर रीझने वाला राही दिग्भ्रमित हो सकता है।सफर लंबा है मंजिल दूर है उस मंजिल तक पहुंचने के लिए अटूट साहस और चूडांत निष्ठा की अपेक्षा है।मुझे लगता है कि यात्रा रंभ के समय अंग्रेजी कवि राबर्ट फाउस्ट की निम्नांकित पंक्तियाँ उनकी आंखों में बिजली की तरह कौंध गई होगीः
The Woods are lovely dark &deep.
But I have promises to keep
And miles to go before I sleep
And miles to go before sleep.
गहन सघन मनमोहक वन तरू,
मुझको आज बुलाते।
किंतु किए जो वादे मैंने,
याद मुझे आ जाते हैं।
अभी कहाँ आराम वदा ,
यह मूक निमंत्रण छलना है,
अरे अभी तो मीलो मुझको,
मीलो मुझको चलना है।
भावानुवाद डा हरिवश राय बच्चन
महाभारत की नीति परक सूक्ति में कहा गया है कि स्वर्ग से आए हुए जीवात्मा में चार चिन्ह पाए जाते हैं
दानशीलता, वाणी में मधुरता, देवार्चनता और आचार्यताः
स्वर्गाच्युतानामिह जीव लोके,
चत्वारि चिन्हानि वसंति देहे।
दान प्रसंगो,मधुरा च वाणी,
देवार्चनम् पंडित तर्पणश्च।।
संस्कृत के नीति श्लोक मे यह भी कहा गया है कि जिस प्रकार सोने की परीक्षा घर्षण, छेद,ताप और पीटने से होती है,उसी प्रकार श्रेष्ठ पुरुष की परीक्षा,उसकीविद्वता,सुशीलता,कुलीनता और कर्मठता से होती हैः
यथा चतुर्भिःकनकं परीक्ष्यते,
निघर्षणच्छेदन ताप ताडनैः।
तथा चतुर्भिः पुरुषं परीक्ष्यते,
श्रुतेन,शीलेन,कुलेन,कर्मणाः।।
उपर्युक्त सभी कसौटियों पर नर्मदेश्वर बाबू शत प्रति शत खरे उतरते हैं।वे स्वर्ग से आए हुए जीवात्मा थे और अपने सुकर्मो से स्वर्ग ही गए होगे।
उनकी सादगी,सरलता,सज्जनता,
सहृदयता, सुशीलता ,मानवीयता उदारता ,सदाशयता, कष्टसहिष्णुता
एवम् कर्मठता आने वाली पीढी के लिए समादरणीय ही नहीं अनुकरणीय भी है।ऐसे महान कर्मठ शिक्षाविद समाज सेवी का परलोक गमन अचानक 28.3.21 को हो गया।अब वे हमारे लिए देवतुल्य हो गए हैंः
नजरों से ऐसे जुदा हो गए हैं,
लगता है जैसे खुदा हो गए हैं।
तुलसी भवन में नवांकुरों के लिए आयोजित एक कार्यक्रम मे एक मै था दूसरे चमकता आईना के यशस्वी संपादक जय प्रकाश राय तीसरे डा बालेन्दु शेखर तिवारी और चौथे डा बाल मुकुंद पैनाली ।मैने कविता लेखन पर,जय प्रकाश राय ने पत्रकारिता पर डा बालेंदु शेखर तिवारी ने कहानी लेखन पर और डा पैनाली ने निबंध लेखन की कला पर नवांकुरों को टिप्स दिए।नयी पीढी के लिए ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन डा पाण्डेय बराबर तुलसी भवन में कराया करते थे।
उनसे मेरी अंतिम मुलाकात 3.1.21 को तुलसी भवन के कार्यक्रम में हुई थी।आयोजन था काव्य सृजन धर्मिता संगोष्ठी का। वे समय के बडे पक्के थे और चाहते थे कि अतिथि और श्रोता भी समय से आएं।मैं समय से पूर्व पहुंच गया था और अपने साथ दो विशिष्ट जनों को लेकर एक डा प्रो रविरंजन और दूसरे अशोक कुमार प्रमाणिक शोध छात्र हिन्दी विभाग रांची विश्वविद्यालय रांची।मै पेशोपेश में था कि कैसै कहूँ कि एक बुलाए और तीन आए। वे ताड गए और उन्होंनें कहा कि यह तो मेरे लिए सौभाग्य की बात है कि एक टिकट पर तीन शो होगा।लेकिन आपके समय मे कटौती नही होगी।उन्होंने तीनों का समुचित सम्मान किया और बोलने का समय दिया।मै लगातार 2घंटे तक काव्य सृजन धर्मिता पर बोलता रहा और श्रोता ध्यानपूर्वक सुनते और तालियां बजाते रहे।
मैने कहा आपकी तबीयत अच्छी नहीं है आप कार्यक्रम शुरू कराकर आराम करने चले जाएं।उन्होंने कहा आयोजक मै हूं यदि मै ही नही रहूंगा तो लोग क्या कहेंगे? और वे राष्ट्र गान तक बैठे रहे ऐसी थी उनकी सहृदयता और सदाशयता।ऐसे नेक दिल इंसान का अचानक हमारे बीच से चले जाना- समाज और राष्ट्र की अपूरणीय क्षति है।
मैने उनसे बहुत कुछ सीखा है।कर्मता और उद्यमिता के साक्षात् विग्रह थे ।लोगों से अपना एक घर नही संभलता है उन्होंने तुलसी भवन को बाखूबी संभाला यह उनकी लगनशीलता और कर्मठता का ही प्रतिफल है।उनकी सूक्तियाँ आज भी याद है,कहा करते थेः1.अपने वो नही होते जो तस्वीर में साथ खडे होते हैं।
अपने वो होते हैं,जो तकलीफ़ में साथ खडे होते हैं।।
2.जिसके मन का भाव सच्चा होता है,
उसका हर काम अच्छा होता है।।
3अपने हौसले को ये न बताएं कि
आपकी परेशानी कितनी बडी है।
अपनी परेशानी को यह बताएं कि
आपका हौसला कितना बडा है।।
4जिंदगी में कुछ ऐसा करो की,
काम दोनों का चलता रहे।
आंधियाँ भी चलती रहें,
और दिया भी जलता रहे।।
5दुनिया का हर शौक पाला नहीं जाता
कांच के खिलौने को उछाला नहीं जाता।
मेहनत करने से मुश्किल हो जाती है आसान,
क्योंकि हर काम तकदीर पर टाला नहीं जाता।।
डा पाण्डेय का अचानक हमारे बीच से जाना बेहद दुखद है लेकिन मृत्यु अटल सत्य है और परमात्मा को भी उन्हीं की जरुरत है जिनकी जरूरत संसार को हैः जाकी यहाँ चाहना है,
वाकी वहाँ चाहना है।
जाकी यहाँ चाह ना है,वाकी वहाँ चाह ना है।।संतोष है अपने पीछे भरा पूरा परिवार छोड गए हैंः
श्री मती प्रतिमा पाण्डेय धर्मपत्नी से0नि0 शिक्षिका
श्रीमती किरण सिन्हा पुत्री जय शंकर सिन्हा जामाता
श्रीमती वसुधा सिंह पुत्री श्री राज सिंह
आलोक पाण्डेय पुत्र मनीषा पाण्डेय पुत्र वधू
अभिषेक पाण्डेय पुत्र अर्चना पाण्डेय पुत्र वधू
साकेत नंदन पाण्डेय पुत्र ऋतु पाण्डेय पुत्र वधू।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने लिखा है कि ‘यह सुधा गरल वाली यह धरती’ केवल उसी को शीश झुकाती है जो स्वयं के साथ दूसरों को भी बाँहे पकड़ाकर आगे बढ़ाने का उपक्रम करता है :-
कौन बड़ाई चढ़े श्रृंग पर, अपना एक बोझ लेकर,
कौन बड़ाई पार गये यदि अपनी एक तरी खेकर।
सुधा गरल वाली यह धरती, उसको शीश झुकाती है,
ख़ुद भी चढ़े साथ ले झुककर गिरतों को बाँहे देकर।
स्वर्गीय डा नर्मदेश्वर पाण्डेय के सन्दर्भ में यह बात सोलह आना सच है। उन्होंने केवल अपना नहीं अपितु पूरे समाज का कल्याण किया। वे सबका कल्याण चाहते थे। मन, वचन और कर्म से एक ही नहीं नेक भी थे। महाकवि गोस्वामी तुलसीदास ने ऐसे सज्जनों के लिए ही सिंधु (समुद्र) की संज्ञा प्रदान की है:-
जग बहु नर सर सरि सम भाई। जे निज बाढ़ि बढ़हि जल पाई।।
सज्जन सकृत सिंधु सम कोई। देखि पुर विधु बाढ़इ जोई।।
अर्थात हे भाई ! जगत में तालाबों और नदियों के समान मनुष्य ही अधिक है, जो जल पाकर अपनी ही बाढ़ से बढ़ते है अर्थात अपनी ही उन्नति से प्रसन्न होते हैं। समुद्र-सा तो कोई एक विरला ही सज्जन होता है जो चन्द्रमा को पूर्ण देखकर (दूसरों का उत्कर्ष ) उमड़ पड़ता है। वे समुद्र-सा सज्जन थे। भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री मती इंदिरा गांधी के निधन पर नजीर बनारसी ने जो पंक्तियाँ लिखी थीं आज सहसा डा पाण्डेय के निधन पर याद आ रही हैं —
तेरे गम ने ऐसा गम दिया है, दिल दाग-दाग है।
लाखों चिराग घर में है फिर भी घर बेचिराग है।।