गुलाम नबी आजाद के राज्यसभा कार्यकाल पर मंथन कर रही कांग्रेस

राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद का कार्यकाल समाप्त होने वाला है। इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत पूरे सदन ने उन्हें विदाई दी और आगे के भविष्य के लिए शुभकामनाएं दी। हालांकि, प्रधानमंत्री मोदी ने आजाद को अपना मित्र बताते हुए कहा कि वह उन्हें निवृत्त नहीं होने देंगे। लेकिन उनके भविष्य को लेकर कई तरह के सवाल सियासी गलियारों में चल रहे हैं। जैसे- क्या वह जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस का चेहरा होंगे ? क्या पार्टी उन्हें फिर से राज्यसभा भेजेगी ? अगर भेजेगी भी तो कैसे और कहां से ? इत्यादि, इत्यादि। हालांकि इन सब सवालों से ज्यादा गुलाम नबी आजाद द्वारा राज्यसभा में विदाई भाषण देते हुए पढ़ा गया एक शेर याद आता है।
दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है
लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है
इस शेर के माध्यम से कहीं-न-कहीं गुलाम नबी आजाद ने अपने भविष्य को लेकर चल रही आशंकाओं के बारे जानकारी दे दी हैं। हालांकि राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद के जाने के बाद विपक्ष का चेहरा कौन होगा ? यह सवाल भी अहम है। बता दें कि राज्यसभा में भाजपा के बाद कांग्रेस की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है। ऐसे में कांग्रेस का आला नेतृत्व किसे नेता प्रतिपक्ष बनाता है यह काफी अहम होगा। आपको बता दें कि गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल, आनंद शर्मा उन 23 नेताओं में से थे जिन्होंने पार्टी नेतृत्व को लेकर सवाल खड़ा करते हुए चिट्ठी लिखी थी। ऐसे में गुलाम नबी आजाद के जाने के बाद उपनेता आनंद शर्मा को सदन की अहम जिम्मेदारी कांग्रेस दे… ऐसा प्रतीत नहीं हो रहा है। इसके अलावा भी आनंद शर्मा ने कई दफां प्रधानमंत्री मोदी के कामकाज की सराहना भी की है और भाजपा भी इन 23 नेताओं के लिए सॉफ्टकॉर्नर रखती है।

रेस में मल्लिकार्जुन खड़गे सबसे आगे

नेता प्रतिपक्ष की रेस में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के राजनीतिक गुरु दिग्विजय सिंह, वरिष्ठ नेता जयराम रमेश और 16वीं लोकसभा में पार्टी का नेतृत्व कर चुके मल्लिकार्जुन खड़गे हैं। लेकिन खड़गे को इस रेस में सबसे आगे देखा जा रहा है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि वह गांधी परिवार के वफादार बताए जाते हैं और उनके पास लोकसभा में कांग्रेस का नेतृत्व करने का तजुर्बा भी है। इसके अलावा सत्तापक्ष के लिए उन्हें आक्रामक होते भी देखा गया है तभी तो पार्टी ने उन्हें राज्यसभा भेजा है।
राजनीतिक जानकार बताते हैं कि कांग्रेस राहुल गांधी को फिर से अध्यक्ष बनाने की योजना में जुटी हुई है। इसलिए उन्हें लोकसभा और राज्यसभा में मजबूत नेतृत्व की आवश्यकता है जो पार्टी का पक्ष मजबूती के साथ रख सके। ऐसे में मल्लिकार्जुन खड़गे को प्राथमिकता दी जा सकती है और वह कांग्रेस का एक बड़ा दलित चेहरा भी तो हैं।
दिग्विजय पर भी खेली जा सकती है बाजी
कहा जा रहा है कि राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने से पहले उनके पसंदीदा लोगों को पार्टी अहम जिम्मेदारी दे सकती है ताकि राहुल गांधी का नेतृत्व मजबूत हो सके और दिग्विजय सिंह तो भाजपा सरकार पर किसी भी मुद्दे को लेकर काफी आक्रामक हो सकते हैं और विगत वर्षों में ऐसा देखा भी जा चुका है। हालांकि कांग्रेस राज्यसभा में किसी ऐसे चेहरे को आगे करेगी जो विपक्ष के साथ संवाद कर सके। जिसकी हर पार्टी के साथ अच्छी बनती हो। ऐसे में पार्टी की पसंद मल्लिकार्जुन खड़गे हो सकते हैं या फिर गुलाम नबी आजाद को राज्यसभा वापस पहुंचाया जाए।
केरल से राज्यसभा आ सकते हैं आजाद
गांधी परिवार की तीन पीढ़ियों के साथ काम कर चुके आजाद को पार्टी केरल से राज्यसभा ला सकती है क्योंकि अप्रैल में तीन सीटें खाली होने वाली है। जिनमें से दो सीटें सत्तारूढ़ एलडीएफ के खाते में और एक कांग्रेस के खाते में जाएगी।
वहीं, दूसरी तरह कांग्रेस ने केरल से आने वाले पार्टी महासचिव केसी वेणुगोपाल को राजस्थान से राज्यसभा भेजा था, ऐसे में आजाद के केरल से राज्यसभा पहुंचने की संभावना भी बन सकती है। इसके अतिरिक्त केरल में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और केरल में मुस्लिम आबादी करीब 22 फीसदी है। जो केरल की राजनीति का काफी अहम फैक्टर है और वैसे भी अहमद पटेल के निधन के बाद पार्टी को एक मुस्लिम चेहरे की आवश्यकता है। इसके अलावा संभवत: साल के अंत तक जम्मू-कश्मीर में भी विधानसभा चुनाव हो सकते हैं। ऐसे में गुलाम नबी आजाद कश्मीर में पार्टी के लिए अहम रोल अदा कर सकते हैं।
एक और कार्यकाल मिलने की संभावना
कांग्रेस अगर गुलाम नबी आजाद को केरल से राज्यसभा नहीं भेजती है तो फिर मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और पंजाब में 2022 में राज्यसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में उनकी राज्यसभा में वापसी हो सकती है। लेकिन तब तक पार्टी मल्लिकार्जुन खड़गे, दिग्विजय सिंह, जयराम रमेश में से किसी एक को नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी सौंप सकती है।

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