मानगो मे कचरा ही कचरा, केवल हो रही राजनीति, गलियों से लेकर चौक चौराहे हर ओर बजबजा रही गंदगी

जमशेदपुर, 4 जनवरी: राज्य में शायद ही कोई ऐसी नगर निकाय होगी जिसके लिए कचरा उठाव मानगो नगर निगम जैसी भीमकाय समस्या बन गई होगी. बहुत मामूली समस्या है प्रशासन के लिए जगह खोजना और कचरा डंप की व्यवस्था करना. लेकिन जमशेदपुर जैसी राज्य की औद्योगिक राजधानी में इस समस्या का हल नहीं निकल रहा है. गलियों की बात छेाडि़ए, पारडीह-मानगो चौक और डिमना-मानगो चौक जैसी व्यस्त सडक़ों पर कूड़े के अम्बार लगे हैं. चारों ओर सड़ांध फैल रही है. राह चलना दुश्वार हो गया है. लेकिन सियासी दल और उसके नेता करीब 15 दिनों से ‘कचरे पर राजनीति’ कर रहे हैं. जिला प्रशासन के मुखिया के साथ बैठक दर बैठक हो रही है. चेतावनी और धमकी दी जा रही हैं. लेकिन कचरे पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा है. कचरा अपनी जगह विस्तार लेता जा रहा है. प्रशासन का मुंह चिढ़ा रहा है, सियासत को अंगूठा दिखा रहा है. उनकी नीति, युक्ति, बुद्धि पर सवाल उठा रहा है. यह समस्या प्रशासन और सियासत दोनों के माथे पर ‘कलंक’ है और निष्क्रियता का प्रमाण भी!
शहर के लोगों में चर्चा हो रही है कि यह ‘मानव निर्मित समस्या’ है जिसकी जड़ में इस शहर की ‘घटिया राजनीति’ है जो अपने वोटरों को एहसास करा रही है कि हमारे ‘होने-न-होने’ का कितना फर्क पड़ता है. ऐसा नहीं है कि यहां के बाशिंदे नहीं समझते कि पेच कहां फंसा है. एक-एक की पहचान कर रहे हैं. समय आने पर हिसाब भी करेंगे. तमाशा भी खूब हो रहा है क्योंकि कोई कह रहा कि जेएनएसी की तरह मानगो नगर निगम का कचरा भी टाटा स्टील यूआइएसएल के बारा कॉम्प्लेक्स में गिराया जाये तो कोई कह रहा कि बारा साइट की ओर आया तो कड़े विरोध का सामना करना पड़ेगा. कुछ दिन पहले आदित्यपुर भेजने की बात थी. विरोध वहां भी शुरू हो गया. विरोध स्वाभाविक भी था कि इस जिले का कचरा उस जिले में क्यों डंप किया जाए?
पूर्वी सिंहभूम के पास जमीन नहीं है क्या? सामाथ्र्यहीन है क्या? जगह क्यों नहीं खोजी जा रही? प्रशासन क्यों हाथ पर हाथ धरे बैठा है?
जमशेदपुर पश्चिमी के विधायक सरयू राय इस समस्या को लेकर नगर विकास विभाग के प्रधान सचिव सुनील कुमार तक से मिल चुके हैं लेकिन कचरा अपनी जगह कायम है. बताया गया कि प्रधान सचिव ने उपायुक्त को इस बारे में निर्देश दिया. बात सोमवार की ही है, लेकिन अबतक कोई फलाफल नहीं निकला है. लोग तो यही कह रहे हैं कि कोई किस से बात कर रहा है, यह महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण यह है कि समाधान क्यां नहीं निकल रहा है? अगर नहीं निकल रहा है तो उतरिए सडक़ पर, जनतांत्रिक तरीके से विरोध दर्ज कराइए. बहुत हो चुका बयानबाजियों का खेल. पब्लिक को समाधान चाहिए. वह कदम-कदम पर टैक्स भरती है. उसका अधिकार है स्वच्छ और हाइजनिक वतावरण में रहना.
पब्लिक को गंदगी के बीच नहीं छोड़ा जा सकता. कचरा अब सड़ रहा है. वहां से आने जाने वाले लोग परेशान हैं. जरा उनके बारे में सोचिए जो वहां रहते हैं या कारोबार करते हैं.जवाबदेही की फेंकाफेंकी मत करिए, समाधान निकालिए. ‘ थूक पॉलिश’ से काम नहीं चलेगा, स्थाई समाधान चाहिए. राजनीतिक दल वाले भी एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाना छोड़ें. हर किसी का चेहरा बेनकाब हो चुका है. अपनी ‘जय-पराजय’ के लिए पब्लिक को सताना बंद कीजिए. पब्लिक में बड़े-बड़े को किनारे लगा देने का माद्दा है.आंख खोल के देखिएगा तो अगल-बगल में ही मिसाल मिल जाएगी जो कहीं के नहीं रहे.

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