वैश्विक महामारी कोविड से संक्रमित हजारों शवों का अंतिम संस्कार करनेवाले गणेश राव एक ओर जहां पूरी दुनिया में कोरोना काल में भय का माहौल था, जमशेदपुर का एक युवा बुजुर्ग ‘बेखौफ’ होकर कोरोना संक्रमित होकर मरने वालों का अंतिम संस्कार करा रहे थे। बैंक ऑफ इंडिया से सेवानिवृत्त कैशियर सी. गणेश राव जिस तरह सुबह पांच बजे से सभी मृतकों का अंतिम संस्कार होने तक डटे रहते थे, देखकर अच्छे-अच्छों की रूह कांप जाती थी। इसके बदले इन्हें एक रुपये भी नहीं मिलता। ये श्मशान घाट के पैसे से चाय तक नहीं पीते, बल्कि गरीबों को अपनी जेब से मदद भी करते हैं। भुइयांडीह, जमशेदपुर स्थित स्वर्णरेखा बर्निंग घाट पर जब ये पहुंच जाते थे, तो जिला प्रशासन भी निश्चिंत रहता था। शुरू में अंतिम संस्कार कराने को लेकर पुलिस को लाठीचार्ज तक करना पड़ा था।
71 वर्षीय राव बताते हैं कि जमशेदपुर में पहली बार चार जुलाई 2020 को दो कोरोना संक्रमित की मौत हुई थी। आसपास की बस्ती की महिलाएं, पुरुष, बच्चे घाट के पास जुट गए थे। पथराव भी हुआ। बस्तीवासियों की धमकी और कोरोना संक्रमण के डर से उनके यहां के सभी कर्मचारी भाग गए थे। समस्या हुई कि दाह संस्कार हो कैसे। जिला प्रशासन बिष्टुपुर स्थित पार्वती घाट से दो कर्मचारियों को लेकर आया, लेकिन वे भी शव को छूने से डर रहे थे। ऐसे में उन्होंने खुद इलेक्ट्रिक फर्नेस में दोनों शवों को डाला। इससे कर्मचारियों का हौसला भी बढ़ा कि इससे कुछ नहीं होता। इसके बाद तो सबकुछ अपने आप होने लगा। आगे वे बताते हैं – घाट में चार इलेक्ट्रिक फर्नेस है। इसी बीच दो फर्नेस खराब हो गए, तो मेरे भी हाथ-पैर फूल गए। अंतिम संस्कार कराकर मैं रात को अपनी कार से कोलकाता निकल गया और सुबह-सुबह मिस्त्री लेकर पहुंच वापस जमशेदपुर आ गया। दोपहर तक दोनों फर्नेस ठीक हो गए। सरकार से हमें कोई पैसा नहीं मिलता है। सबकुछ समाजसेवियों के भरोसे चल रहा है। सी. गणेश राव ने बताया कि पिछले दो सालों के कोरोना संक्रमण काल में हजारों संक्रमितों का अंतिम संस्कार को वे अपनी देख-रेख में करा चुके हैं। इन्हीं कार्यों की वजह से उन्हें स्वतंत्रता दिवस समारोह में स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने इन्हें सम्मानित भी किया था। इनका कहना है कि मैं इस बीमारी को सर्दी-खांसी जैसा समझता हूं, लोगों ने हौवा बना दिया है। बस सावधान रहें, सचेत रहें, बेवजह डरे नहीं। मेरा अनुभव बताता है कि आधे से ज्यादा लोग डर या दहशत से मरे हैं।
मेहर मदन से मिली प्रेरणा
गणेश राव बताते हैं कि उन्हें समाज सेवा की प्रेरणा पारसी समाजसेवी मेहर मदन (मेहरनोस माडेन) से मिली। वे भी बैंक ऑफ इंडिया के कर्मचारी थे। मेहर मदन के पिता स्व.एमडी मदन ने ही जमशेदपुर को-ऑपरेटिव कालेज व एमजीएम मेडिकल कालेज की स्थापना की थी। बहरहाल, उनके परिवार में दो बेटे व एक बेटी है। बेटी की शादी हो गई। बड़ा बेटा साकची में दवा का थोक विक्रेता है। जबकि छोटा बेटा 10 साल से अमेरिका में है। वह वहां सॉफ्टवेयर इंजीनियर है। श्मशान घाट की सेवा को वह ईश्वर की कृपा मानते हैं। वे दूसरों से भी कहते हैं कि आप आएं, सेवा करें, कुछ नहीं होगा। हर दिन कोरोना संक्रमितों के साथ रहने के बावजूद उन्हें कभी यह छू भी नहीं पाया। उन्हें किसी तरह की बीमारी नहीं है, लिहाजा आज तक कोई दवा नहीं ली। 60 वर्ष की उम्र तक 93 बार रक्तदान भी कर चुका हूं। राव एडीएल सोसाइटी व आंध्रा एसोसिएशन से भी जुड़े हैं। 2012 में बैंक ऑफ इंडिया से सेवानिवृत्त होने के बाद स्वर्णरेखा श्मशान घाट में सक्रिय हुए, जहां ये घाट प्रबंध समिति के संयुक्त सचिव हैं।
आज भी वे स्वर्णरेखा बर्निंग घाट की देखरेख, उसके रख-रखाव और लगातार सुविधायुक्त व्यवस्था के लिए उसकी देख-रेख में लगे रहते हैं। अभी अभी शहर के प्रख्यात कारोबारी कृष्ण मुरारी गुप्ता ने इस घाट की सुविधा बढाने के लिए 40 लाख रुपये का दान दिया है और उसके लिए निर्माण कार्य भी गणेश राव की देख रेख में चल रहा है। वे वहाँ से असामाजिक तत्वों को भी खदड़ते रहते हैं।
71 वर्ष की आयु वाले श्री राव के चेहरे पर हमेशा ताजगी और मुस्कान कायम रहती है। ऐसे युवा बुजुर्ग दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत हैं।
चमकता आईना के संपादक जयप्रकाश राय ने मुझे उनसे परिचय कराया और मुझे लगा कि उनके बारे में मुझे भी कुछ लिखना चाहिए।
12 जनवरी स्वामी विवेकानंद जी की जयंती जिसे युवा दिवस के रूप मे मनाया जाता है ऐसे युवा बुजुर्ग को बार-बार प्रणाम और ईश्वर से यही प्रार्थना करता हूँ कि वे चिरकाल तक ऐसे ही क्रियाशील बने रहें। साथ ही यह भी प्रार्थना करता हूँ कि ईश्वर के अवतार भगवान श्री राम ऐसे ही लोगों को इस समाज में स्थापित करते रहें ताकि हमारी भारतभूमि विश्वगुरु का दर्ज प्राप्त कर सके।