भारत में आम चुनाव को प्रभावित करने की भयानक साजिश, डिसइंफो लैब की रिपोर्ट में चौंकाने वाले दावे

नई दिल्ली ,19 जून : डिसइंफो लैब, एक संस्थान जिसने भारत में आम चुनाव के बीच विदेशी हस्तक्षेप के दावे किए थे। एक बार फिर से डिसइंफो लैब ने चुनाव में हस्तक्षेप को लेकर बड़े दावे किए हैं। दावा किया गया है कि भारत में लोकसभा चुनाव में हस्तक्षेप के लिए बड़ी ताकतों ने छोटी ताकतों तक मदद मुहैया कराई। यह एक ऐसा जाल है, जिसका तानाबाना सिर्फ विदेश में ही नहीं बल्कि भारत तक बुना गया। रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत एक उभरती हुई आर्थिक और रणनीतिक शक्ति है। भारत की विदेश नीतियों से वैश्विक गतिशीलता को एक नया आकार मिलता है। रूस-यूक्रेन और इस्राइल-हमास युद्ध के बीच भारत ने अतुलनीय विदेश नीति का प्रदर्शन किया। रिपोर्ट में बताया गया है कि इस वजह से भारत में आम चुनावों पर वैश्विक मीडिया की नजर रही।

डिसइंफो लैब का दावा है कि जब करोड़ों भारतीय आम चुनाव के दौरान अपना भविष्य तय कर रहे थे। इस दौरान वैश्विक मीडिया का एक वर्ग मतदाताओं के निर्णयों को प्रभावित करने के लिए एक भयानक साजिश की योजना तैयार रहा था। दावा किया गया है कि इस योजना के क्रियान्वयन के लिए सुव्यवस्थित तरीके से वित्तपोषण यानी पैसों की व्यवस्था भी की गई। इसमें सिर्फ विदेशी ही नहीं बल्कि भारतीय मीडिया भी शामिल थी। अलग अलग तरीके से भारत में आम चुनावों को प्रभावित करने की कोशिशें कीं गईं।

फ्रांस के पत्रकार क्रिस्टोफ जॉफरलेट पर डिसइंफो लैब के आरोप

डिसइंफो लैब ने दावा किया है कि कुछ मीडिया संस्थानों के लेखों में अलग तरह का पैटर्न देखने को मिला, जिस वजह से इस रिपोर्ट को तैयार किया गया है। रिपोर्ट में इस बात पर हैरानी जताई गई है कि इस दौरान एक विशेष तरह के आख्यान को आकार देने की कोशिश कर मतदाताओं का ध्यान भटकाने की कोशिश की गई। डिसइंफो लैब का दावा है कि फ्रांस का समाचार पत्र ‘ले मोंडे’ ऐसी गतिविधियों में शामिल रहा। रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि फ्रांस के राजनीतिक विशेषज्ञ क्रिस्टोफ जॉफरलेट इन गतिविधियों के केंद्र बिंदु रहे। भारत में आम चुनाव को प्रभावित करने के लिए जॉफरलेट के बयानों को आधार बनाया गया। डिसइंफो लैब ने दावा किया है कि इस खेल में सिर्फ जॉफरलेट ही अकेले खिलाड़ी नही थे।

कहां से की गई फंडिंग?

डिसइंफो लैब ने अपनी रिपोर्ट में हेनरी लुइस फाउंडेशन (एचएलएफ) और जॉर्ज सोरोस ओपन सोसाइटी फाउंडेशन (ओएसएफ) का भी जिक्र किया गया है। बताया गया है कि एचएलएफ और ओएसएफ द्वारा भारत में आम चुनाव को प्रभावित करने के लिए फंडिंग की गई। रिपोर्ट में जिन समूहों और व्यक्तियों का नाम उजागर किया गया है, वे फ्रांस और संयुक्त राज्य अमेरिका से संचालित किए गए हैं। रिपोर्ट में कुछ और भी बड़े आरोप लगाए गए हैं।

डिसइंफो लैब की रिपोर्ट में फ्रांस के इन मीडिया संस्थानों का जिक्र

डिसइंफो लैब का दावा है कि फ्रांस के कई मीडिया संस्थानों ने भारत में आम चुनाव में हस्तक्षेप के लिए कई तरह के लेख प्रसारित किए। इनमे ले मोंडे के अलावा वाई ले सोइर, ला क्रॉइक्स (इंटरनेशनल), ले टेम्प्स, रिपोर्टर्रे और रेडियो फ्रांस इंटरनेशनेल (आरएफआई) जैसे संस्थान शामिल हैं। इन सभी को भारतीय चुनाव में आम जनता की राय को अलग आकार देने के लिए निर्देशित किया गया। दावा किया गया है कि इन सभी मीडिया संस्थानों का नेतृत्व ले मोंडे ने किया।

ऐसे लेख प्रकाशित करने पर दिया गया जोर

डिसइंफो लैब का दावा है कि ले मोंडे ने आम चुनाव के मद्देनजर ‘भारत में बढ़ते इस्लामोफोबिया (इस्लाम के नाम पर डराने की कोशिश)’ और ‘मुस्लिमों के बदनाम करने’ जैसे विषयों पर विभिन्न लेखों को प्रकाशित किया। क्रिस्टोफ जॉफरलेट के लेखों को सिर्फ फ्रांस ही नहीं बल्कि भारत के कई मीडिया संस्थानों में भी प्रकाशित किया गया। डिसइंफो लैब ने अपनी रिपोर्ट को क्रिस्टोफर जॉफरलेट को सामान्य स्रोत (द कॉमन सोर्स) नाम दिया है।

डिसइंफो लैब का दावा- जॉफरलेट को दिए गए 3.85 लाख डॉलर

डिसइंफो लैब की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इसके एवज में क्रिस्टोफ जॉफरलेट को अमेरिका के हेनरी लुइस फाउंडेशन (एचएलएफ) ने अत्यधिक धनराशि दी थी। डिसइंफो लैब के अनुसार ‘जॉफरलेट को ‘हिंदू बहुसंख्यकों के समय में मुस्लिम नाम की योजना पर काम करने के लिए 3.85 लाख डॉलर की धनराशि दी गई।

डिसइंफों ने अपनी रिपोर्ट में आरोप लगाया ‘क्रिस्टोफ और उनके सहयोगी गाइल्स वर्नियर्स ने अशोक विश्वविद्यालय में त्रिवेदी सेंटर फॉर पॉलिटिकल डेटा (टीसीपीडी) के माध्यम एक कहानी को जबरन बढ़ावा दिया। इस बात पर जोर दिया गया कि भारत की राजनीति में निचली जातियों का कम प्रतिनिधित्व है।’

इन्हें पहुंचाई गई आर्थिक मदद- डिसइंफो रिपोर्ट

1- डिसइंफो लैब मे दावा किया है कि एचएलएफ ने वर्ष 2020 से लेकर वर्ष 2024 तक भात विरोधी एजेंडा चलाने के लिए कुछ और भी संस्थानों को धनराशि मुहैया कराई। डिसइंफो ने अपनी रिपोर्ट में बर्कले सेंटर फॉर रिलिजन, पीस एंड वर्ल्ड अफेयर्स का भी नाम उजागर किया है।

2- रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 3.46 डॉलर की आर्थिक सहायता की। इसके बाद बर्कले संस्थान ने हिंदू अधिकार और भारत की धार्मिक कूटनीति पर एक रिपोर्ट तैयार की।

3- डिसइंफो की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि एचएलएफ ने सीईआईपी यानी कार्नेगी इडॉमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस को सत्तावादी दमन, हिंदू राष्ट्रवाद और बढ़ते हिंदुओं पर एक रिपोर्ट तैयार करने के लिए 1.20 लाख डॉलर की धनराशि दी गई।

4- डिसइंफो के अनुसार सीईआईपी को इसके बाद एक और रिपोर्ट तैयार करने के लिए 40 हजार डॉलर की धनराशि दी गई। आरोप है कि यह धनराशि वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले ‘सत्ता में भाजपा: भारतीय लोकतंत्र और धार्मिक राष्ट्रवाद’ पर रिपोर्ट तैयार करने के लिए दी गई।

5- डिसइंफों की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि एचएलएफ ने ह्यूमन राइट्स वॉच (एचआरडब्ल्यू) रो एशिया में हिंसा पर एक रिपोर्ट तैयार करने के लिए तीन लाख डॉलर की धनराशि दी गई। एचआरडब्ल्यू ने अपनी रिपोर्ट में पाकिस्तान और अफगानिस्तान नहीं बल्कि भारत का नाम लिया।

6- डिसइंफो ने यह आरोप भी लगाया है कि ऑड्रे ट्रुश्के के संस्थान साउथ एशिया एक्टिविस्ट कलेक्टिव (एसएएसएसी) को एचएलएफ ने हिंदू राष्ट्रवाद पर एक रिपोर्ट तैयार करने के लिए भी धनराशि दी।

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