—————————————————
दुमका , दिसोम मारंग बुरु युग जाहेर अखड़ा और सरी धर्म अखड़ा द्वारा संताल आदिवासियों का “संक्रांति पर्व” बहुत धूमधाम और हर्षोउल्लास के साथ सदर प्रखंड के दुंदिया और धतिकबोना गांव में मनाया गया । यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत पर मनाये जाने वाला पर्व है । दो दिन तक मनाये जाने वाला पर्व के पहले दिन को “हाकु काटकोम माह” कहते है, इस दिन को लोग जील पीठह(मांस लगा हुआ रोटी),मांस,मछली,सुनुम पीठह, कई तरह के सब्जी आदि खाते है.दुसरे दिन सुबह नहा-धोकर घर में पूर्वजों,मारंग बुरु आदि ईष्ट देवताओं का पूजा-अर्चना करते है। पूर्वजों में तीन पीढी के पूर्वजों का नाम लिया जाता है , जिसमे गुड़,चुड़ा,सुनुम पीठह आदि भोग में चढ़ाते है । इस दिन नए बर्तन एंव नए चूल्हे पर खाना बनाने की भी प्रथा है ।उसके बाद लोग शिकार के खोज में पहाड़,जंगल,खेत-खलिहान जाते है,जिसे “सिंदरा” कहते है । सिंदरा से वापस आने के बाद लोग “बेझातुंज” करते है । बेझातुंज में केला या अंडी के पेड़ के टुकड़े को पूरब दिशा में जमीन में गाड़ा जाता है और पश्चिम से लोग इसपर तीर से निशाना लगाते है , मंदिरो जो इसपर निशाना लगाने में सफल होते है उसे सम्मानित किया जाता है. बेझातुंज के बाद तीर-धनुष को लेकर कई अन्य प्रतियोगिता भी ग्रामीण करते है । उसके बाद केला या अंडी के पेड़ के टुकड़े को पांच बराबर हिस्सों में काटा जाता है,उसके बाद उस सभी टुकड़े को हल्का बीच में काटा जाता है और एल नुमा बनाया जाता है , फिर इन टुकड़ो को लोग नाचते-गाते हुए गांव के “लेखा होड़”(गांव का व्यवस्था चलाने वाले लोग) के घर ले जाते है.एक टुकड़ा मंझी थान में ,दूसरा टुकड़ा गुडित के घर के छप्पर में,तीसरा टुकड़ा जोग मंझी के घर के छप्पर में,चौथा टुकड़ा प्राणिक के घर के छप्पर में और पांचवा टुकड़ा नायकी के घर के छप्पर में रखा जाता है , ये सभी गांव के “लेखा होड़”(गांव को चलाने वाले लोग होते है) होते है , उसके बाद सभी ग्रामीण नाचते-गाते है और भोजन का आनन्द लेते है । इस पावन अवसर में प्रदीप मुर्मू,कारण हंसदा,नंदलाल सोरेन,सुनील मरांडी,सोरेंदार मरांडी,सुरेश टुडू ,सुनातन किस्कू,धुरणा राय,रमेश हांसदा,बबलू मुर्मू ,साइमन टुडू,सोम हांसदा,माने टुडू,सुलेमान मुर्मू ,सुनील टुडू,सुजीत मुर्मू ,सुमित ंसदा,पलटन किस्कू,रंजीत टुडू,राजीव मरांडी,बालेश्वर हासंदा आदि उपस्थित थे.