जमशेदपुर : जी हां ! इलाज के अभाव में दम तोड़ दिए दिलीप बाबू। आदित्यपुर माझी टोला निवासी दिलीप बाबू का ऑक्सीजन लेवल कम हो गया था । परिवार वाले बामुश्किल एंबुलेंस से लेकर शहर के एक बड़े निजी अस्पताल पहुंचे। वहां औपचारिकता पूरी की गयी। लेकिन यह कहा गया कि आप कोविड नेगेटिव सर्टिफिकेट लेकर आईए तब हम सामान्य वार्ड में भर्ती लेने पर विचार करेंगे! जबकि अस्पताल प्रबंधन को पता है टेस्ट की क्या दशा है? रिपोर्ट कब मिल रहा है बाहर में ?
थक हारकर परिजन मरीज को लेकर घर वापस पहुंचे। घर पर ऑक्सीजन लगाया गया। ऑक्सीजन का लेबल जांचा जाता रहा। भागम भाग के बाद शुक्रवार से प्रयास करने पर शनिवार को टेस्ट के लिए एक प्राइवेट लैब वाला आया। पांच दिन बाद रिपोर्ट देने की बात कहकर सैंपल लेकर गया। परिजन गिड़गिडाए। प्लीज ! जितना जल्दी हो रिपोर्ट उपलब्ध करा दीजिए । उसने आश्वासन दिया। लेकिन अफसोस दिलीप बाबू का ऑक्सीजन लेबल लगातार नीचे जाता रहा। कल सत्तर था। जो धीरे-धीरे घटकर इतना नीचे चल गया की सांसे थम गयी। दिलीप बाबू को अपनों ने आंखों के सामने खो दिया !
कही से कोई मदद नहीं मिली। वह भी मुफ्त का मदद नहीं चाहिए था। पैरवी भी धरा रह गया। आज परिवार वालों की आंखें डबडबाई हुई है। क्योंकि मौत जो दस्त दी है घर पर। ख़ुद को परिवार वाले कोस रहे हैं यह कहकर की हम पैसा खर्च करने में सझम थे तब भी कुव्यवस्था की ऐसी मार पड़ी की अपनों को खो दियें। अब बड़ा सवाल खड़ा होता है जरा अंदाजा लगाइए यहां गरीब , दिहाड़ी मजदूर की क्या दशा हो रही है ? लोग आंखों के सामने अपनों को तड़पकर दम तोड़ते हुए देख रहे हैं पर लाचार है कुछ नहीं कर पा रहे हैं। बेवस है। गरीब बेचारा भगवान भरोसे हैं। वही मालिक है। करे भी तो क्या ? दिलीप बाबू जैसे कितने ही लोग है जो इलाज के अभाव में दम तोड़ दिये वहीं कई कतार में है। मौत के बाद रिपोर्ट आने का अब क्या औचित्य है यह भी बड़ा सवाल है।