प्रखंड विकास पदाधिकारी द्वारा बुलाई ग्राम सभा के औचित्य पर उठे सवाल
धालभूमगढ़:
धालभूमगढ़ एयरपोर्ट निर्माण का मामला ठंडे बस्ते में चला गया है। वन विभाग की रिपोर्ट के बाद झारखंड सरकार ने एयर पोर्ट निर्माण का कार्य वापस ले लिया है। लेकिन इस मुद्दे पर राजनीतिक गरम है। यह बात समझ से परे हैं कि जब निर्माण होना ही नहीं है तो फिर प्रखंड विकास पदाधिकारी द्वारा आज बुलाई गयी ग्राम सभा के औचित्य पर ही सवाल उठ रहे हैं। एयरपोर्ट निर्माण को लेकर ग्रामसभा की पहल फिर से शुरू की गई है, लेकिन ग्रामीण इसका पुरजोर विरोध कर रहे हैं। विदित हो कि दो साल पूर्व इस एयरपोर्ट निर्माण को लेकर केन्द्र सरकार ने एक सौ करोड़ रुपए निर्गत किया था। लेकिन वन भूमि और ग्रामसभा का मामला आड़े आने के बाद यह ठंडे बस्ते में चला गया है। पिछली सरकार में मोमेंटम झारखंड के दौरान उड़ता हाथी को प्रतीक के तौर पर दिखाया गया था धालभूमगढ़ एयरपोर्ट को देखकर यही कहा जा सकता है कि मोमेंटम झारखंड का हाथी तो नहीं उड़ा मगर वह एयरपोर्ट जरूर उड़ा ले गया।
धालभूमगढ़ एयरपोर्ट निर्माण को लेकर 100 हेक्टेयर वन भूमि के अधिग्रहण को लेकर प्रखंड विकास पदाधिकारी द्वारा निर्गत पत्र के अनुसार देवशोल व चतरों गांव में ग्रामसभा की जानी थी। चतरो गांव में ग्राम सभा में ग्रामीणों की उपस्थिति कम होने के कारण ग्राम सभा को स्थगित कर दिया गया, जबकि देवशोल गांव में ग्राम प्रधान दाखिन हांसदा की अध्यक्षता में पंचायत सचिव सुधांशु बांसुरी की उपस्थिति में ग्रामसभा की गई। जिसमें ग्रामीणों ने अपनी जमीन नहीं देने की बात कर रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि झारखंड सरकार ने धालभूमगढ एयरपोर्ट निर्माण का काम रोक दिया है। इस एयरपोर्ट के लिये लगभग 100 हेक्टेयर वनभूमि की जरुरत थी जो हाथियों का कोरिडोर वाला इलाका है। झारखंड एवं बंगाल सहित अन्य सीमावर्ती राज्यों से हाथियों के समूह का यह कोरिडोर है। भारत सरकार के पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने अध्ययन केबाद इसपर काम नहीं करने की रिपोर्ट दी थी ताकि देश में तेजी से घट रही हाथियों की संख्या और हाथी तथा मानव समुदाय के बीच संघर्ष की घटना को रोका जा सके। मंत्रालय ने माना कि यह एयरपोर्ट द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अनुपयुक्त पड़ा हुआ था और औद्योगिक नगरी जमशेदपुर से 60किलोमीटर दूर था। रनवे की वर्तमान सतह भी आपरेशन के योग्य नहीं है और न ही एयरपोर्ट पर कोई अन्य सुविधा मौजूद है। एयरपोर्ट के लिये कुल 97.166 हेक्टेयर भूमि की जरुरत थी जिसमें 96.761 हेक्टेयर वन रिजर्व भूमि है जिसमें 79332 वृक्ष खड़े हैं। इस एयरपोर्ट के निर्माण के लिये 100 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था जो यात्रियों की सुविधा, रोजगार, औद्योगिक एवं वाणिज्यकि विकास औरपर्यटन के ख्याल से उचित मानागया था। मंत्रालय की समिति ने साफ कहा था कि यहां किसी भी तरह का विकास वन भूमि के अतिक्रमण की कीमत पर ही हो सकता है। क्योंकि पूरा क्षेत्र वनभूमि में आता है तो हाथियों का निवास है और दलमा से पश्चिम बंगाल होते हुए उनके गुजरने का मार्ग भी है। यहां पहले से ही हाथी और मानव समुदाय ेक बीच संघर्ष होता रहता है। निर्माण कार्य से हाथियों का कोरिडोर और तबाह होगा तथा एयर ट्रैफिक और हवाई जहाज की आवाज से हाथी और खुंख्वार होंगे जिससे मानव समाज पर खतरा बढेगा। इन तथ्यों के आलोक में मंत्रिमंडल समिति ने हवाई अड्डा का प्रस्ताव स्थगित करने की अनुशंसा की थी। विदित हो कि हाथियों का समूह साल दर साल एक ही मार्ग अपनाता है जिसपर आना जाना करता है। एक इलाके से दूसरे इलाके में जाने से भी वे समान रास्ते का इस्तेमाल करते हैं। 2010 में हाथी को राष्ट्रीय धरोहर वाला पशु घोषित किया गया और देश में उपलब्ध 29000 हाथियों की रक्षा के लिये अभियान शुरु किया गया। 2015 से 2018 के तीन वर्षों में हाथी और मानव समुदाय के बीच जो संघर्ष हुआ उसमें 1713 मानव और 373 हाथियों की मौत हुई। 2016-17 और 18-19 में 1474 मनुष्यों की जान गयी। 2018-19 में ही सर्वाधिक 87 व्यक्तियों की जान इस संघर्ष में गयी जबकि संघर्ष के कुल मामले 452 दर्ज किये गये।
यहां उल्लेखनीय है कि 2019 के आम चुनाव के ठीक पहले 24 जनवरी को झारखंड सरकार और नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने ताबड़तोड़ ढंग से जोरदार प्रचार के साथ धालभूमगढ एयरपोर्ट के निर्माण का भूमिपूजन किया गया था। तत्कालीन नागरिक उड्डयन मंत्री जयंत सिन्हा स्वयं समारोह में शामिल हुए जबकि उस समय भी वन विभाग से कोई अनुमति ली भी नहीं गयी थी।