दिल्ली में विद्यार्थियों की मौत के लिये कौन जवाबदेह
दिल्ली के एक कोचिंग संस्थान में हुए हादसे में तीन विद्याथियों की मौत के बाद पूरे देश में बवाल मचा हुआ है। जिन परिस्थितियों में यूपीएससी की तैयारी कर रहे उन विद्यार्थियों की मौत हुई है, उसने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। इस घटना ने पूरे सिस्टम पर सवालिया निशान लगा दिया है। इस मामले में कोचिंग संस्थान के संचालक और मालिक को गिरफ्तार कर प्रशासन में अपना पल्ला झाडऩे का प्रयास किया है मगर पूरे प्रकरण में देखा जाए तो सबसे ज्यादा दोषी वही व्यवस्था है जो ऐसे हादसे होने के बाद कार्रवाई के नाम पर लकीर पीटती है। जिस बेसमेंट में पार्किंग होना चाहिए वहां लाइब्रेरी चल रही थी । अब कोचिंग संचालक और मकान मालिक पर कार्रवाई की जा रही है कि उसने नियम का उल्लंघन किया है मगर जिस व्यवस्था ने नक्शा पास किया और संचालक को एनओसी दी गई वह साफ बच जाता है। इसके लिये किसी की जवाबदेही नहीं होती। आखिरऐसा क्यों? यह सवाल हमेशा से उठता रहा है लेकिन इसका जवाब नहीं दिया जाता। बल्कि जवाब देने की संभावनाओं को ही बंद कर दिया जाता है। जवाबदेही तय नहीं होने के कारण है इस तरह की घटनाएं होती रहती हैं और मासूमों, निदोर्षों की मौत हो जाती है। उसके बाद की स्थिति को देखने की जिम्मेदारी जिनकी होती है वैसे लोग बराबर से छूटे रहते हैं। नक्शा विचलन एक बहुत बड़ी समस्या है। झारखंड में हाई कोर्ट के निर्देश पर समय-समय पर इस तरह की कार्रवाई करने को प्रशासन मजबूर होता है। जमशेदपुर में अभी हाई कोर्ट के भय के कारण इस तरह की कार्रवाई हो रही है वरना कौन पूछता है, अवैध निर्माण को। दरअसल व्यवस्था ऐसे मामलों में जब आंखें फेरता है तभी जाकर नक्शा विचलन होता है। कोई व्यक्ति मकान बनवाने के लिए ईटा, गिट्टी, बालू यदि गिरवाता हैं तो उसी दिन पुलिस वाले वहां पहुंच जाते हैँ। इस मामले में उसका तंत्र बेहद चौकस रहता है। इस तंत्र को तुरंत सूचना मिल जाती है। आगंतुक पुलिस का मुंह बंद कर कानून की ऐसी की तैसी करने का आपको पूरा लाइसेंस मिल जाता है। घूसखोरी और भ्रष्टाचार ऐसे सिस्टम में इस कदर फैला हुआ है कि एक निश्चित राशि चुकाकर आप जितनी मनमानी करना चाह कर सकते हैं। यह किसी एक प्रदेश या एक शासन में नहीं होता। यह पूरी सिस्टम का हिस्सा बन चुका है। सरकारी चाहे कोई भी हो, अधिकारी चाहे जो भी पदस्थापित हो, यही होना है। दिल्ली में हुए हादसे के बाद जितनी बातें हो रही है अगर उन पर आज भी कड़ाई से अमल हो जाए तो आने वाले दिनों में ऐसा कोई हादसा नहीं होगा। अनगिनत ऐसे मामले सामने आते हैं जो जहां अवैध तरीके से निर्मित बिल्डिंग गिर जाती है और भारी मात्रा में जान माल का नुकसान होता है। जब कभी ऐसा मामला सामने आता है तो संबंधित मालिक या संचालक की ही गर्दन फंसती है। उनका बाल भी बांका नहीं होता जिन्होंने आंखे फेर ली थी और अवैध निर्माण होने दिया। जमशेदपुर की ही बात करें तो व्यस्त चौक चौराहे पर रातों-रात बहुमत जिला बिल्डिंग खड़ा कर दिया जाता है जबकि वहां उस तरह के निर्माण की कोई अनुमति नहीं होती। कोई देखने वाला नहीं होता। एक मामूली आदमी अपनी गाढी कमाई से यदि अपनी जायज जमीन पर पूरी प्रक्रिया को अपनाकर भी मकान निर्माण करना चाहे तो बिना चढ़ावा चढ़ाए ऐसा करने की उसे अनुमति नहीं होती।
पूरे मामले को लेकर छात्रों की सुरक्षा पर सवाल उठ रहे हैं. वहीं, पुलिस और प्रशासन पर भी सवालिया निशान लग रहे हैं.
दिल्ली में
ऐसे कोचिंग सेंटरों में हमेशा दम घुटने का खतरा बना रहता है। आज दिल्ली में खासकर ओल्ड राजेंद्र नगर जैसे इलाकों में छोटी-छोटी गलियों के अंदर, बेसमेंट में कोचिंग सेंटर खोल दिए गए हैं. जहां दम घुटने, पानी भरने और आग लगने का खतरा बना रहता है… वहां 150-200 और इससे ज्यादा की संख्या में छात्र पढ़ते हैं. ऐसी जगहों पर बने कोचिंग संस्थानों में कभी भी अनहोनी की आशंका बनी रहती है. ऐसी परिस्थितियों में वो छात्रों को पढ़ाते हैं. इसके लिए मोटी फीस वसूली जाती है. हर सर्विस के लिए अलग फीस ली जाती है. इससे बच्चों का शोषण भी होता है. लेकिन छात्रों को वो सुविधाएं नहीं दी जाती, जो शांति से पढ़ने के लिए जरूरी होता है.
“ऐसे कोचिंग सेंटरों के लिए बेशक गाइडलाइन तो बने हुए हैं. बस उनपर अमल नहीं किया जाता है. कोचिंग सेंटरों के लिए कितने बाथरूम होने चाहिए? कितने साइज के स्पेस पर एक छात्र को बैठाया जाना चाहिए, कौन-कौन सी बुनियादी सुविधाएं होनी चाहिए… ये सब गाइडलाइन में है. लेकिन शायद ही किसी कोचिंग इंस्टीट्यूट में सभी गाइडलाइनों का पालन किया जाता हो. कई कोचिंगों में तो बाथरूम तक का इंतजाम नहीं होता. क्षमता से ज्यादा छात्रों को भर लिया जाता है.”
गरीब छात्रों को दिया जाता है झांसा
“ऐसे कोचिंग सेंटरों में खासतौर पर आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को झांसा देने का काम होता है.
स्टार टीचर का चेहरा, पढ़ाने वाले कोई और
“ऐसे कोचिंग सेंटरों में फर्जीवाड़ा भी चलता है. प्रमोशन के बैनर पर तो स्टार टीचर का चेहरा दिखा दिया जाता है, लेकिन वो क्लास लेने के लिए बहुत कम ही आते हैं. ये समस्याएं ऑफलाइन और ऑनलाइन कोचिंग दोनों जगह है. स्टार टीचर की जगह कोई दूसरा टीचर क्लास लेने आता है.”
दिल्ली के कोचिंग संस्थानों में ऐसी बहुत सी खामियां हैं, जिनका सामना छात्र हर रोज करते हैं. मेरे पास कई बच्चे ऐसी समस्याएं लेकर आते हैं. इसलिए इन मामलों में सरकार को त्वरित कार्रवाई करनी चाहिए. कोटा के कोचिंग सेंटरों में भी इंतजाम ठीक नहीं है. ऐसे तमाम कोचिंग सेंटरों पर निरीक्षण करना चाहिए. जो कोचिंग सेंटर गैरकानूनी तरीके से चल रहे हैं, उन्हें तुरंत बंद करवाना चाहिए.”