विभागीय उपेक्षा के कारण पर्यटकों के लिए विशेष पर्यटन स्थल के रूप में विकसित नहीं हो सका
सुधीर गोराई
”सूरज निकला गगन में दूर हुआ अंधियारा, पेड़ों ने ली अंगड़ाई ठंडी ठंडी हवा चलाई, पक्षियों भी नभ में छलांग लगाई। हरे भरे बागानों में रंग बिरंगे फूल खिले, फूलों ने अजब सी महक फैलाई तितली भवंरो को वो खींच लाई। रसपान कर फूलों का सबने मौज उड़ाई, देख प्रकृति की सुंदरता को कोयल भी धीमे-धीमे गुनगुनाए। रंग बदलती प्रकृति हर पल मन को भाए, नभ में कभी बादल तो कभी नीला आसमां हो जाए, रूप तेरा देख कर हर कोई मन मोहित हो जाए। झील, झरने मीठा जल पिलाएं, पर्वत हमें ऊंचाई को छूना सिखाएं, प्रकृति हमे सब से प्रेम करना सिखाए। रात के अंधियारे में चांद भी अपनी कला दिखाएं, सफेद रोशनी से प्रकृति को रोशन कर जाए, तारे भी टिमटिमा कर नाच दिखाएं। प्रकृति हमें रूप अनेक दिखाती, एक दूसरे से प्रेम करना सिखाती, यही हमें जीवन का हर रंग बतलाती”। कवि नरेंद्र वर्मा की इस कविता को चरितार्थ कर रही है दलमा पर्वत शृंखला।
एशिया प्रसिद्ध हाथियों (गजराज) के आश्रयणी दलमा पर्वत शृंखला सदियों से पूरे साल प्रकृतिप्रेमी का मनपसंद पर्यटन स्थल के रूप में परिचित है। निरंतर रंग बदलता मनमोहक दृश्य सैलानियों को आकर्षित करती है। जीवन की ऊंचाई को छूने की प्रेरणा देती ऊंची-ऊंची पर्वतमाला, दूर दूर तक फैला विभिन्न रंगों के सुगंध भरा वनफुलों का नयनाभिराम दृश्य, पवन के झोकों से अठखेलियां करता शाल, पियाल, महुआ आदि वनवृक्षो की हरा-भरा टहनियां, जंगल में रंग-विरंगे पक्षियों का चहचहाहट, हिरन, खरगोश, मोर, वनमुर्गी, गिलहरी आदि का विचरण, सबसे प्रेम करने का संदेश देती तितली, भवंरो की फूलों का रसपान करना व गुनगुनाहट, झरनों का मीठा जल आदि सैलानियों को मोहित करती है। लेकिन दलमा पर्वत शृंखला विभागीय उपेक्षा के कारण पर्यटकों के लिए विशेष पर्यटन स्थल के रूप में विकसित नहीं हो सका।