अदालतों के पास अपार शक्ति है। वे बड़े बड़ों को नाप देती हैं। मी लार्ड ने इंदिरा गांधी को भी जेल में डाला था । लालू जी का हाल हम सब देख ही रहे। आमलोग हाईकोर्ट-सुप्रीम कोर्ट का नाम सुनकर थर थर कांपते हैं। अदालतों की ऊंची इमारतों में इंट्री लेने में भी डर लगता है। ऐसा क्यों? ये सभी जानते हैं।
अब इन अदालतों में कोरोना लेकर बहस छिड़ गई है। इलाहाबाद , कोलकाता , मुंबई , रांची और दिल्ली हाईकोर्ट की तल्ख टिप्पणी के बाद अब सुप्रीम कोर्ट स्वत: संज्ञान लेने लगा है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को लेकर अब आम लोग भी नुक़्ता चीनी कर रहे हैं । इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को सर्वोच्च न्यायालय के हाक़िम ने फिलहाल स्थगित कर दिया । बंगाल में चुनाव आयोग को कोलकाता उच्च न्यायालय से फटकार लगी है। जज साहब ने कहा , हम शेषन बन जाते हैं। दिल्ली हाईकोर्ट में भी ऑक्सीजन को लेकर केंद्र सरकार की फजीहत हुई । अब यह सवाल उठता है कि किसी सरकार के खिलाफ जजसाहब की टिप्पणी पर क्या सुप्रीम बॉस को खुद संज्ञान में लेकर कदम उठाना चाहिए? ऐसे में उच्च न्यायालय की देश में क्या भूमिका रहेगी?
क्या सुप्रीम कोर्ट कोई मामला ख़ुद ब खुद हाई कोर्ट से ले सकता है? संविधान में उसके क्या प्रावधान है? हाई कोर्ट का अधिकार क्षेत्र कहाँ तक सीमित है? ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने कोरोना से जुड़े दिल्ली हाई कोर्ट में लंबित मामलों के स्वत: संज्ञान लेकर अपने अधीन लेने के सुप्रीम कोर्ट के कदम का विरोध किया है।
एसोसिएशन ने कहा है कि पहले से तैयारी नहीं होने के कारण स्थानीय स्तर पर दिक्क़तें हो रही हैं, हाई कोर्ट उन्हें सुलझाने की कोशिशें कर रहे हैं, ऐसे में इन मामलों को उन हाई कोर्ट के पास ही रहने देना चाहिए।
एसोसिएशन ने कहा, इस स्थिति से निपटने के लिए हाई कोर्ट सबसे ठीक है, ऐसे में उचित है कि स्थानीय मामलों को हाई कोर्ट को ही सुलझाने देना चाहिए।सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने कई बार ज़ोर देकर कहा है कि संविधान की धारा 226 के तहत हाई कोर्ट को धारा 32 के तहत ही नहीं, उससे बाहर भी उसका अधिकार क्षेत्र है और वह काम कर सकती है। उसने यह भी कहा कि कोरोना से जु़ड़े कई मामले अलग-अलग हाई कोर्ट में हैं और ये हाई कोर्ट स्थानीय मुद्दों की जानकारी रखने के कारण उसे सुलझा रहे हैं। लिहाज़ा, ये मामले इन हाई कोर्टों के पास ही रहने चाहिए। केंद्र को दिल्ली हाई कोर्ट की फटकारबता दें कि दिल्ली हाई कोर्ट ने ऑक्सीजन आपूर्ति नहीं करने के एक मुद्दे पर बुधवार को एक आदेश में केंद्र सरकार की बहुत ही तीखी आलोचना की और उसे आदेश दिया कि वह हर हाल में ऑक्सीजन आपूर्ति सुनिश्चित करे।मैक्स हॉस्पिटल समूह की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस विपिन संघी और जस्टिस रेखा पल्ली के खंडपीठ ने कहा, ‘हमें लोगों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करनी है और हम आदेश देते हैं कि आप भीख मांगें, उधार लें या चोरी करें, जो करना हो करें लेकिन आपको ऑक्सीजन देना है। हम लोगों को मरते हुए नहीं देख सकते।’ अदालत ने सरकार पर टिप्पणी करते हुए कहा, आप यह नहीं कह सकते कि आप इतना ऑक्सीजन इतने दिन के लिए दे सकते हैं, लोग मरते हैं तो मरें। यह स्वीकार नहीं किया जा सकता है और एक सार्वभौम सरकार का यह जवाब नहीं हो सकता। बंबई हाई कोर्ट ने भी केंद्र को लगाई लताड़ । इसके एक दिन बाद गुरुवार को बंबई हाई कोर्ट के जस्टिस सुनील सुकरे व जस्टिस एस. एम. मोदक के खंडपीठ ने भी ऑक्सीजन आपूर्ति पर केंद्र सरकार को जम कर लताड़ा। बेंच ने कहा, हमें इस दुष्ट समाज का हिस्सा होने पर शर्म आ रही है, आपको शर्म क्यों नहीं आ रही है? आप महाराष्ट्र के असहाय रोगियों के लिए कुछ क्यों नहीं कर रहे हैं?