ये आजादी झूठी है’ का नारा देने वाले वामपंथियों (Leftists) ने देश की 75वीं स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर अपनी सोच और विचारधारा में ऐतिहासिक बदलाव (Historical Change) का निर्णय किया है. सीपीआई(एम) (CPI-M) ने इस साल पहली बार स्वतंत्रता दिवस (Independence Day) को भव्य तरीके से मनाने का फैसला किया है और 15 अगस्त को पार्टी के हर कार्यालय में न केवल तिरंगा फहराया जाएगा, बल्कि वामपंथी के शीर्ष नेता स्वतंत्रता की चुनौतियों और वामपंथियों की भूमिका पर चर्चा करेंगे.
बता दें कि माकपा केंद्रीय कमेटी ने इस स्वतंत्रता दिवस पर प्रत्येक कार्यालय में तिरंगा फैलाने का निर्णय किया है. इसके साथ ही 15 अगस्त, 2021 को देश एक और ऐतिहासिक बदलाव का गवाह बनेगा, जब आजादी के बाद पहली बार सीपीआई (एम) मुख्यालय में तिरंगा फहराया जाएगा. यह बदलाव लगभग सात दशक से अधिक समय बाद आया है जब अविभाजित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने नारा दिया था कि ‘ये आजादी झूठी है.’
स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर माकपा ने आयोजित की संगोष्ठी
15 अगस्त को ही माकपा द्वारा एक वैचारिक संगोष्ठी का आयोजन किया जाएगा. वर्चुअल हो रही इस संगोष्ठी का विषय है, ‘Celebrating India’s Freedom Struggle and Identifying Challenges today’. इस संगोष्ठी का संचालन माकपा के राष्ट्रीय महासचिव सीताराम येचुरी करेंगे. वरिष्ठ माकपा नेता पिनराई विजयन Freedom Struggle Legacy and Left Alternative पर, त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री मानिक सरकार Freedom, Democracy and Social Justice पर, माकपा के पूर्व महासचिव प्रकाश कारत Capitalism, Inequalities and Betrayal of the Freedom Struggle Promise पर और माकपा केंद्रीय कमेटी के सदस्य मोहम्मद सलीम Presiding & Concluding Remarks: United We Stand पर वक्तव्य रखेंगे. इस तरह माकपा के वरिष्ठ नेता स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े मुद्दों पर शीर्ष स्तर पर चर्चा करेंगे.
अस्तित्व पर मंडराते खतरे से बेचैन हैं वामपंथी
बता दें कि देश में बीजेपी की बढ़ती ताकत और लगातार हो रही हार के बाद वामपंथियों ने राष्ट्रवाद को लेकर अपनी विचारधारा में परिवर्तन का निर्णय किया है. पश्चिम बंगाल में प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी का प्रभाव लगातार बढ़ रहा है. हाल के विधानसभा चुनाव में जहां बीजेपी ने मुख्य वपक्षी दल का दर्जा हासिल कर लिया, वहीं, कांग्रेस और वाम दलों के गठबंधन को करारी हार मिली. हैरानी की बात यह है कि इस चुनाव में साल 2011 तक सत्ता में रहे वामपंथी दलों व उनके गठबंधन साथी कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली है. इस हार ने सीपीआई(एम) को सोचने और बदलाव करने पर मजबूर कर दिया है. अब उसे अपने अस्तित्व पर खतरना मंडराने लगा है. इसलिए यह ऐतिहासिक परिवर्तन हो रहा है.