कोयला तस्करों के अभ्यारण्य बन गया है कतरास और राजगंज थाना का इलाका।मात्र 25 दिनों के भीतर राजगंज पुलिस स्टेशन इलाके में संचालित अवैध कोयला डिपुओं पर वरीय पुलिस अधिकारियों के निर्देश पर छापे पड़े और लावारिस कोयले की बरामदगी हुई।
आज राजगंज थाना के पंचरूखी जंगल में चलाए जा रहे कोयला के अवैध कारोबार स्थल पर पुलिस का छापा पड़ा।कोयला तस्कर छापे के पहले फरार हो चुके थे।वहां से 4-5 टन कोयला बरामद कर थाना ले आया गया।इसके पूर्व 12 जनवरी को राजगंज थाना से तीन किलोमीटर की दूरी पर महेशपुर में संचालित एक ऐसे ही डिपू में जिला स्तर से छापा मारा गया था।वहां भी इसी तरह दो चार टन कोयला बरामद हुआ था।
अब सवाल उठता है कि क्या ये तस्करी बिना स्थानीय पुलिस
की इजाजत के चल रहा था।क्या संबंधित इलाके के चौकीदार को ये सब मालूम नहीं रहता है कि आखिर कौन इसका संचालन कर रहा था?
सोची समझी चाल के तहत अज्ञात पर प्राथमिकी दर्ज कर संचालकों को बचा लिया जाता है।पुष्ट खबर के मुताबिक दोनों जगहों पर छापेमारी के पूर्व दो चार दसचक्कों से कोयला का काला कारोबार हो चुका था। जो पुलिस इच्छाशक्ति होने पर धड़ से गायब और मिट्टी के अंदर गाड़े गए सर को निकाल बाहर कर सकती है,क्या वह पुलिस कोयला चोरों का पता ठिकाना नहीं ढूंढ खंगाल सकती।लेकिन मजे की बात है कि ये खुद घाघ हैं और ऐसे कारोबार में इनकी संलिप्तता होती है।इसी तरह कतरास के श्यामडीह इलाके में रातभर पोड़ा कोयले का खेल चलता है।लेकिन जब पुलिस ही इसमें पार्टनर हो तो क्या कहने।इसी तरह राजगंज और तोपचांची की सीमा बाँसपहाड इलाके में चल रहे चिमनी ईंटभट्ठों से भी कोयला तस्करी की खबर है।प्रतिदिन वेस्पा ,बाइक और टेम्पू से कोयला गिरते रहता है।आखिर ये भट्ठे किस कोयले से चलते हैं,इन्हें कहाँ से लिंकेज प्राप्त है।एसएसपी अगर अपने स्तर से चिमनी भट्ठों के कोयले की कागजात की जांच करें या इसकी जमीनी हकीकत से रूबरू हों तो शायद एक बड़े राज से पर्दा उठ सकता है।