Champai सोरेन को आखिर हेमंत सोरेन ने क्यों नहीं मनाया ,जानें पूरे घटनाक्रम की inside story

पूर्व मुख्यमंत्री झारखंड मुक्ति मोर्चा के वरीय नेता तथा कोल्हान टाइगर के रूप में जाने जाने वाले चंपई सोरेन को लेकर पिछले करीब एक पखवाड़े से चल रहे सस्पेंस का पटाक्षेप हो गया है। भारतीय जनता पार्टी में उनके शामिल होने की अटकलें 10 दिन पहले से ही लगाई जा रही थी और अब वे 30 अगस्त को विधिवत रूप से भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने जा रहे हैं ।जब करीब 10 दिन पहले 18 अगस्त को वह अचानक दिल्ली गए और इस दौरान उन्होंने एक इमोशनल पोस्ट लिखा तो लगभग तय हो गया था कि वह अब अलग रास्ता पकड़ने जा रहे हैं। हालांकि इस दौरान उन्होंने एक तरह से विकल्प भी खुले रखे थे ।बताया जाता है कि जब हेमंत सोरेन जेल से बाहर आए थे तो उस समय से पार्टी के अंदर खाने में इस बात की सुगबुगाहट शुरू हो गई थी कि अब चंपई सोरेन को खुद मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे देना चाहिए या हेमंत सोरेन से कह देना चाहिए कि आप मुख्यमंत्री पद संभाले। मगर चंपई सोरेन ने ऐसा नहीं किया और आखिरकार उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटने को विवश किया गया। बताया जाता है कि उसके बाद नए मंत्रिमंडल को लेकर champai सोरेन ने हेमंत सोरेन के सामने कुछ शर्ते रखी थी ।इनमें उपमुख्यमंत्री का पद कुछ महत्वपूर्ण विभाग और बेटे के लिए घाटशिला विधानसभा सीट की शर्तें थी ।बताया जाता है कि मुख्यमंत्री ने इस मुद्दे पर अपने नजदीकियों से विचार विमर्श भी किया था। इस दौरान जैसा कि बताया जाता है कि कोल्हान के कुछ jmm विधायक चंपई सोरेन के संपर्क में थे और उनके साथ कोई बड़ा फैसला करने वाले थे मगर हेमंत सोरेन ने पूरे मुद्दे पर पार्टी के विधायकों को विश्वास में लिए रखा और इसका लाभ भी झारखंड मुक्ति मोर्चा को मिला। बताया जाता है कि चंपई सोरेन को लेकर पार्टी अब यह मान चुकी थी कि वह अलग रास्ता अपना सकते हैं। इसके नफा नुकसान पर भी पार्टी के अंदर खाने चर्चा की गई ।यह देखा गया कि यदि वे पार्टी में रहते हैं तो पार्टी का अधिक नुकसान करेंगे ।इससे बेहतर है कि वह अपना अलग रास्ता अपना लें। सारे समीकरणों को ध्यान में रखा गया और देखा गया कि पार्टी को फायदा इसी में है कि वह वर्तमान स्थिति में अलग रास्ता ही अपनाए।
मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने जिस तरह ट्रांसफर पोस्टिंग किए थे उसे लेकर भी पार्टी के अंदर और गठबंधन में बहुत सुगबुगाहट थी । झारखंड मुक्ति मोर्चा ने चंपई सोरेन के बेटे के बारे में फैसला किया था कि यदि चंपई सोरेन चाहे तो सरायकेला सीट छोड़कर अपने बेटे को वहां से उतार सकते हैं। पार्टी उन्हें अपना उम्मीदवार बना देगी। मगर चम्पाई सोरेन इसके लिए तैयार नहीं थे। वह बाबूलाल सोरेन के लिए घाटशिला सीट की मांग पर अड़े हुए थे ।यह भी कहा जाता है कि बाबूलाल सोरेन की महत्वाकांक्षा शुरू से ही घाटशिला विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने को लेकर थी ।
झारखंड मुक्ति मोर्चा ghatshila के एमएलए रामदास सोरेन के स्थान पर बाबूलाल सोरेन को वहां उम्मीदवार बनाने को तैयार नहीं थी। चंपई सोरेन चाहते थे कि उनके राजनीतिक रूप से सक्रिय रहते-रहते हुए अपने बेटे के लिए कोई स्थान सुनिश्चित कर ले ।कहा जाता है कि उनके फैसलों में उनके बेटे का हमेशा ही दखल रहता है और यह पूरे घटनाक्रम में बाबूलाल सोरेन को भी भारतीय जनता पार्टी ने सॉफ्ट टारगेट बनाया था। इनके अलावे चंपई सोरेन के एक सलाहकार ने भी भारतीय जनता पार्टी से संपर्क साधने में बड़ी भूमिका निभाई थी ।यह भी कहा जाता है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद से भारतीय जनता पार्टी चंपई सोरेन के संपर्क में आ गई थी और शुरू से ही भारतीय जनता पार्टी के नेताओं का बयान चंपई सोरेन को लेकर काफी नरम रहा था ।मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के बाद जिस तरह भारतीय जनता पार्टी लगातार चंपई सोरेन का समर्थन कर रही थी वह साफ संकेत दे रहा था कि पूरे प्रकरण में भाजपा का क्या रुख है।
दूसरी ओर झारखंड मुक्ति मोर्चा के अंदर खाने इस बात का प्रबंध किया गया कि पिछले चुनाव को छोड़ दिया जाए तो सरायकेला सीट पर चंपई सोरेन जीत का अंतर 5000 से हमेशा काम ही रहा। इतने मामूली अंतर से वे जीत कर विधायक बनते रहे हैं ।यह भी आकलन लगाया गया कि यदि वे अकेले चुनाव लड़ेंगे तो कुछ सीटों पर पार्टी को नुकसान पहुंचा सकते हैं । खासकर कोल्हान की कई ऐसी सीट हैं जहां जीत हार का अंतर 5000 से कम का ही रहता है। ऐसे में यदि चंपई सोरेन अलग पार्टी बनाते हैं या किसी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ेंगे तो कुछ सीटों पर प्रभाव डाल सकते हैं। मगर झारखंड मुक्ति मोर्चा ने इस बात की अहमियत दी की वह पार्टी में रहकर पार्टी का अधिक नुकसान कर रहे हैं या कर सकते हैं। इन्हीं सारे घटनाक्रमों और मंथन के बाद आखिरकार जैसा कि बताया जाता है मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने चंपई सोरेन को मनाने का प्रयास नहीं किया। गेंद उनके ही पाले में डालकर छोड़ दी गई। देखा गया कि चंपई सोरेन इस दौरान जब भी दिल्ली गए रांची के बजाय उन्होंने कोलकाता का ही मार्ग अपनाया। दिल्ली से लौटने के बाद वे कोल्हान में लगातार सक्रिय रहे और इस दौरान कई छोटी-छोटी बैठकर की। झारखंड मुक्ति मोर्चा की पूरी नजर उनकी हर गतिविधि पर थी। मुख्यमंत्री मइया सम्मान योजना का कार्यक्रम 28 अगस्त को चाईबासा में तय था ।मगर चंपई सोरेन प्रकरण के बाद इसे सरायकेला जिले के Gamhariya में स्थानांतरित किया गया ।हालांकि यहां आयोजन में जिला प्रशासन को खास तौर पर झारखंड मुक्ति मोर्चा का उतना समर्थन नहीं मिल रहा क्योंकि यहां की जिला इकाई में चंपई सोरेन के ही वफादार लोगों की भरमार है। बावजूद उसके मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सरायकेला जिले में ही इस कार्यक्रम को तय किया क्योंकि इसका भी एक बड़ा राजनीतिक लाभ लेना चाहते हैं। यह भी बताया जाता है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा सरायकेला सीट के लिए कुछ विकल्प को भी टेटोल रही है ।इसमें कुछ ऐसे नेता है जो इस सीट से भाजपा के प्रबल उम्मीदवार हैं। कभी वे झारखंड मुक्ति मोर्चा में रह चुके हैं। ऐसे नेता यह मान कर चल रहे थे कि इस बार सरायकेला सीट से भारतीय जनता पार्टी उन्हें ही उम्मीदवार बनाएगी। बताया जाता है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा ऐसे नेताओं से संपर्क में है और आने वाले कुछ दिनों में सरायकेला को लेकर कोई बड़ा खेल हो सकता है ।विदित हो कि वास्को बेसरा और रमेश हासदा जैसे नेता झारखंड मुक्ति मोर्चा से भारतीय जनता पार्टी में गए हैं। इन नेताओं की नजर सरायकेला सीट पर है ।अब देखना है कि बदली स्थिति में कौन किधर पाला बदलता है ।अभी कोई भी कुछ कहने को तैयार नहीं मगर इतना तय है कि आने वाले कुछ दिनों में खास तौर पर कोल्हान प्रमंडल में कुछ बड़ा खेल हो सकता है। अभी झारखंड मुक्ति मोर्चा के कुछ विधायक ऐसे हैं जो अभी भी भारतीय जनता पार्टी के निशाने पर हैं और कोई आश्चर्य नहीं की आगामी विधानसभा चुनाव में वैसे विधायक पाला बदलकर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो जाए और भाजपा का टिकट भी पा ले। जैसा कि भाजपा अब तक करती रही है ।वह अपनी पार्टी को मजबूत करने के बजाय दूसरी पार्टी के विधायकों को तोड़ने में इन दोनों अधिक भरोसा करने लगी है। अपने घोड़े के बजाय भाजपा को अब दूसरे घोड़े पसंद आने लगे हैं। यही वजह है कि कोल्हान में आने वाले दिनों में कुछ इस तरह का बड़ा खेल भी देखने को मिल सकता है।

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