झारखंड में भारतीय जनता पार्टी के लिए सामान्य वर्ग के मतदाता कोर वोटर माने जाते रहे लेकिन ऐसा लगता है कि इन दिनों भाजपा अपने निश्चित मतदाताओं को नजरअंदाज कर वैसे मतदाताओं को साधने के चक्कर में अधिक लगी हुई है जिनका उस पार्टी से मोह भंग हो गया प्रतीत होता है। भाजपा ने झारखण्ड में लम्बे समय तक शासन किया है और यहाँ के सामान्य वर्ग के नेताओं/कार्यकर्ताओं और लोगों ने भाजपा का जमकर साथ दिया और पार्टी सत्ता में आई. एक समय पीएन सिंह,समरेश सिंह, रविन्द्र राय, सुनील सिंह, मृगेन्द्र प्रताप सिंह, सरयू राय, गणेश मिश्रा, यदुनाथ पाण्डेय, अभयकांत प्रसाद, अरविन्द सिंह, सी पी सिंह सरीखे सामान्य वर्ग के अन्य नेताओं ने साथ दिया और सरकार चलती रही परन्तु झारखण्ड आदिवासी बहुल राज्य बताकर झारखण्ड में मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा और बाबूलाल मरांडी को बनाया गया और लम्बे समय तक मधु कोड़ा, लक्ष्मण गिलुआ, समीर उरांव, सुनील सोरेन नीलकंठ सिंह मुंडा, ताला मरांडी सरीखे आदिवासी नेताओं के साथ मिलकर उनलोगों ने यहाँ शासन चलाया. आदिवासियों के उथान के लिए कई सारी योजनाएंचलाई गईं.
अर्जुन मुंडा के मुख्यमंत्रित्व काल में शिक्षक बहाली निकली जिसमे 60% नंबर क्षेत्रीय भाषा में लाना अनिवार्य था और सामान्य वर्ग के लोगों ने इसका विरोध किया तो घटाकर 40%कर दिया गया. वहीं सरकारी नौकरियों में आदिवासियों को आरक्षण, स्कूली बच्चों को साइकल और ड्रेस , पेंशन, राशन,बस सहित अनेक सुविधाएं दी गईं. मुख्यमंत्री रघुवर दास ने सामान्य वर्ग के लोगों से ज्यादा आदिवासी विकास पर तत्परता दिखाई और संथाल के वोटरों(जो भाजपा के पास नहीं था) को अपना बनाने के चक्कर में सामान्य( कोल्हान जो अपना था )वर्ग की अधिकतर सीटें गवां दी. 2024 लोकसभा की सीटों में आदिवासी राग अलापते हुए जिन लोगों को सदा भ्रष्टाचारी बताती रही, उनके लिए अपने नेता सुनील सोरेन भाजपाई का टिकट काटकर सीता सोरेन , चाईबासा से गीता कोड़ा को दिया और सीटे गवां दी.
विधानसभा चुनाव 2024 सर पर है और राष्ट्रीय नेतृत्व ने झारखण्ड के लिए मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और केन्द्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान और असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा को प्रभारी नियुक्त किया है. विश्वशर्मा का यहाँ आना और सिर्फ आदिवासी बड़े नेताओं के घर जाना और सामान्य वर्ग के नेताओं से ना मिलना क्या गलत सन्देश नही दे रहा है कि भाजपा को अपने सामान्य वर्ग के नेताओं और कोर वोटरों की चिंता नहीं रह गई. झारखण्ड में सामान्य वर्ग के नेता रविन्द्र राय, निशिकांत दुबे, पी एन सिंह, सी पी सिंह, गणेश मिश्रा, अरविन्द सिंह, सुनील सिंह, रविंदर पाण्डेय, उमाशंकर अकेला, अमित यादव, जयंत सिन्हा जैसे लोगों पर भरोसा नहीं रहा या । राष्ट्रीय एवम झारखण्ड का नेतृत्व उनकी उपेक्षा कर रहा है. मध्यप्रदेश हो या असम वहां के मुख्यमंत्री वहाँ के कार्यकर्ताओं से सदा सम्पर्क में रहे और उनके सुख दुःख के साथी रहे, परन्तु झारखण्ड में कार्यकर्ताओं की उपेक्षा का आरोप सदा लगता रहा है. झारखण्ड में विपक्ष के नेता के प्रबल दावेदार रहे रांची विधानसभा से 6 बार विधायक, मंत्री, सहित विधानसभा अध्यक्ष रहे सी पी सिंह की उपेक्षा कर दूसरे दल से आये अमर बाउरी को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया, तो वहीं चार बार के गोड्डा लोकसभा से सांसद पर भरोसा ना कर दूसरे दल से आई अन्नपूर्णा देवी को मंत्री बनाया गया. लोकसभा में जहां आदिवासी बहुल पांच सीटें भाजपा हार गई, वहीं महतो प्रत्याशी विद्युत महतो जमशेदपुर और चंद्रप्रकाश चौधरी ने गिरिडीह से अपनी सीटें जीत ली, फिर भी महतो समुदाय से मंत्री नहीं बनाकर संजय सेठ जो जे वी एम से आये हैं, उनको मंत्री बनाया गया.
झारखण्ड से तीन सदस्य राज्ययसभा भेजे गए जो रांची से ही हैं और तीनों पद धारी रहे, ऐसे में कार्यकर्ता चर्चा कर रहे हैं कि सिर्फ रांची के इर्द गिर्द रहनेवाले बड़े नेताओं के आगे पीछे करनेवालों से सिर्फ पार्टी नहीं चलेगी. पार्टी में सबको सामान अधिकार देना होगा, अन्यथा पार्टी और बुरी हालत को जाएगी. सामान्य वर्ग के नेताओं और पार्टी के निष्ठावन कार्यकर्ताओं की उपेक्षा भारी न पड़ जाये. राष्ट्रीय नेतृत्व ने धर्मपाल को झारखण्ड का संगठन मंत्री बनाया था और पार्टी विधानसभा 2019 में बुरी तरह हार गई तब धर्मपाल को प्रमोशन देकर उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य का संगठन मंत्री नियुक्त किया गया और पार्टी लोकसभा में अच्छा पदर्शन नहीं कर पाई तो सवाल तो उठेंगे ही. वहीं झारखण्ड के वर्तमान संगठन मंत्री कर्मवीर सिंह पर भी खुलेआम आरोप लग रहे हैं. सोशल मीडिया पर सार्वजनिक रूप से टिप्पणी और कटाक्ष किये जा रहे हैं.
कुल मिलाकर झारखण्ड में विधानसभा 2024 के लिए भाजपा की चुनौती कम नहीं है. पार्टी को सम्भाव और सद्भाव के साथ सबको लेकर मश चलना होगा. कही गैरों को अपना बनाने के चककर में अपनों को खो न दें पार्टी.