विगत आठ साल से दिशोम गुरु शिबू सोरेन की जर्सी गाय बीमार थी जो कि अब फिर से दूध देने को तैयार है। वह जर्सी गाय अब स्वस्थ हो चुकी हैं और संभवतः बहुत जल्द दूध देने लगेगी, जिससे लोगों को काफी लाभ मिलेगा, रोजगार मिलेगी। लेकिन इसके लिए अब मालिक और लाभुकों में सहमति जरूरी हो गया है।
हम बात कर रहे हैं सरायकेला खरसवां जिले के चांडिल के हुमीद स्थित बिहार स्पंज आयरन कंपनी (बीएसआईएल) की। जिसे
झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन ने जर्सी गाय की संज्ञा दी थी। यहां शिबू सोरेन के कहने पर ही अपनी रैयती भूमि कंपनी को दे चुके ग्रामीण पिछले आठ वर्षों से लाचारी का जीवन जीने को विवश हैं और कंपनी मालिक उमेश मोदी को तलाश रहे हैं। उमेश मोदी के निर्देश पर वर्ष 2013 के अगस्त माह में रातोंरात कंपनी बंद कर दी गई हैं। कंपनी बंद होने के बाद से अबतक मजदूरों का वेतन बकाया है। किसी तरह की प्रशासनिक पहल नहीं होने से अभीतक बकाया वेतन नहीं मिला है। जमीन से हाथ धो चुके ग्रामीण अब फुटपाथ पर चाय बेचकर, पान की गुमटी लगाकर व दिहाड़ी मजदूरी कर जीवन-यापन को मजबूर हैं।
1983 में बीएसआईएल की स्थापना हुई थी, वहीं 1985 में उत्पादन शुरू हुआ थ। 600 स्थाई तथा 765 अस्थाई मजदूरों वाली इस कंपनी में दस हजार ठेका मजदूर भी काम करते थे। बताया जाता है कि बीएसआईएल भारत की पहली जर्मन टेकनॉलोजी स्पंज आयरन कंपनी है। लौह अयस्क से स्पंज आयरन बनाया जाता था। यहां की उत्पादन क्षमता 2.10 लाख मीट्रिक टन थी। कंपनी का अपना पांच मेगावाट का पावर प्लांट भी था। कंपनी को मोस्ट एफिसिएंट कोल बेस्ड प्लांट का खिताब भी मिला था।
नौ अगस्त 2013 की आधी रात करीब दो बजे कंपनी के मुख्य गेट पर कारखाना बंद होने का नोटिस चस्पा दिया गया था, और कर्मचारियों से कहा गया था कि वे कहीं और नौकरी खोज लें। कंपनी का कहना था कि कोयला और लौह अयस्क नहीं मिलने के कारण ऐसा कदम उठाया जा रहा है, लेकिन इसकी वास्तविकता को स्वीकार करने में प्रशासन व कर्मचारी असहज महसूस करते हैं।
शिबू सोरेन ने क्यों कहा था जर्सी गाय
ग्रामीण बताते हैं कि जब गांव में बीएसआईएल कंपनी की स्थापना की बात कही गई थी तो लोग कारखाना स्थापित करने के पक्ष में नहीं थे। रैयत अपनी खेती लायक जमीन को बर्बाद नहीं करना चाहते थे। इसके चलते रैयतों ने अपनी जमीन देने से मना कर दिया था। लेकिन झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन के समझाने पर रैयतदारों ने जमीन देने पर सहमति जताई थी। जमीन अधिग्रहण को लेकर हुई एक बैठक के दौरान शिबू सोरेन ने ग्रामीणों से कहा था कि “जर्सी गाय लाएं हैं, उसे आपलोग दूहिए और लाभ उठाइए, आपलोग कभी भूखे नहीं रहेंगे। उमेश मोदी (कंपनी मालिक) बहुत अच्छे आदमी हैं” शिबू सोरेन की इस बात से ग्रामीणों का मनोबल बढ़ा और लोगों ने बात मान ली। पांच गांवों के रैयतों ने कृषि योग्य जमीन देने को सहमति जताई। जिसके बाद चांडिल प्रखंड के छोटालाखा, बड़ालाखा, मानीकुई, हुमीद तथा भादुडीह गांव के लोगों की जमीन अधिग्रहण किया गया। लगभग 700 एकड़ जमीन को कंपनी ने अधिग्रहण किया है।
पुराने मजदूर व स्थानीय लोगों को रोजगार में प्रथमिकता देने की पेंच में फंसी है कंपनी : बीएसआईएल कंपनी चालू होने से पहले ही बकाया वेतन भुगतान तथा रोजगार में प्राथमिकता देने की पेंच फंसी हुई है। बताया जाता है कि बीएसआईएल कंपनी को बनराज स्टील द्वारा संचालित किया जाएगा, जिसके लिए सारी प्रक्रिया पूरी हो चुकी हैं। बनराज स्टील, आधुनिक पावर कंपनी की एक इकाई है। बनराज स्टील द्वारा बंद पड़े प्लांट की मरम्मत कार्य को पूरा कर लिया गया है, वहीं मशीनों का परीक्षण भी किया जा रहा है। उत्पादन के लिए कच्चा माल भी लाया जा रहा है। लेकिन बीएसआईएल कंपनी के जमीनदाता तथा पुराने मजदूर अपनी मांगों को लेकर आंदोलन पर उतारू हो गए हैं। रैयतों व मजदूरों ने कंपनी के मेन गेट को जाम कर रखा है। विगत 15 सितंबर को चांडिल अनुमंडल कार्यालय में त्रिपक्षीय वार्ता हुई थी, लेकिन कोई ठोस निर्णय नहीं हो पाया था। जिसके बाद आज पुनः त्रिपक्षीय वार्ता चल रही हैं। रोजगार गारंटी को लेकर रैयतों और कंपनी प्रबंधन के बीच गहमा गहमी चल रही हैं। वार्ता में विधायक सविता महतो, एसडीओ रंजीत लोहरा, एसडीपीओ संजय सिंह, बलराज स्टील के एचआर हेड डीएन त्रिपाठी, बीएसआईएल के प्रतिनिधि राजकुमार शर्मा, गुरुचरण किस्कु, चारु चांद किस्कु, झामुमो वरिष्ठ नेता सुखराम हेम्ब्रम, आशुतोष बेसरा, मनोज सिंह समेत पांच गांव के प्रतिनिधि मौजूद हैं।