Jamshedpur,29 Jan : भोजपुरी जन जागरण अभियान,झारखण्ड प्रदेश महासचिव अरविन्द कुशवाहा ने एक विज्ञप्ति जारी कर पूर्व सांसद शैलेन्द्र महतो के उस कथन की निंदा की है जिसमें उन्होंने कहा कि बिहार की भोजपुरी, मगही, अंगिका आदि भाषाओं को झारखंड में थोपा गया है।श्री कुशवाहा ने कहा राजनीति और पहचान के लिए यह जन समर्थन खो चुके नेता भाषा विवाद पैदा कर रहे हैं। झारखंड 20 साल पहले अलग हुआ पहले यह अखंड बिहार था लेकिन झारखंड में भी वही संविधान लागू है जो देश मे चारो ओर लागू है। फिर यह गैर संवैधानिक बयान देना घोर अनैतिक एवं गैर कानूनी है। क्या शैलेन्द्र महतो को उपर्युक्त भाषा भाषियों ने अपना मत नहीं दिया था जिसकी बदौलत वे सांसद बने थे। दरअसल झारखंड की अस्मिता को तो उन्होंने ही बेचने का काम किया था।वे क्यों भूल रहे कि इन्ही भोजपुरी मगही और अंगिका के वोट के चलते जमशेदपुर के दो बार सांसद बने और इनकी पत्नी भी सांसद बनी। इस तरह का बायन यह दर्शाता है कि इनकी राजनीति बाहरी भीतरी पर आधारित है जिसका हम विरोध करते है
सिर्फ भोजपुरी,मगही और अंगिका भाषा-भाषियों को केंद्र बिंदु बनाकर राज्य में बाहरी-भीतरी की राजनीति की जा रही है। शैलेन्द्र महतो कह रहे है कि बिहार की भाषा भोजपुरी,मगही, अंगिका को झारखण्ड में जबरदस्ती थोपा गया है। वे भूल रहे है कि साल 2000 के पहले यह बिहार ही था और झारखण्ड में भोजपुरी, मगही,अंगिका भाषा-भाषियों की संख्या बहुतायत है और ये झारखण्ड की सभ्यता और संस्कृति का सम्मान करते है।इनको इनका अधिकार हेमंत सोरेन सरकार ने नियोजन नीति में भोजपुरी,मगही और अंगिका भाषा को शामिल करके दिया है। शैलेन्द्र महतो शोषक दिकू या प्रवासी वाली जो बात कह रहे है तो इससे इनकी मानसिकता झलकती है। भोजपुरी,मगही और अंगिका भाषा-भाषियों ने भी झारखण्ड को सजाने-सवारने का काम किया है, इन्होंने तो बेचने का काम किया।भोजपुरी,मगही, अंगिका और मैथिली भाषा-भाषी बाहरी या प्रवासी नही है। राज्य की स्थापना होने के बहुत पहले से ये राज्य में रह रहे,अब जब 2000 में झारखण्ड राज्य की स्थापना हुई तो इन भाषा-भाषियों को भी उतना ही अधिकार मिलना चाहिये जितना कि अन्य सभी को मिल रहा है। इन सभी भाषाओं के बगैर झारखण्ड की परिकल्पना नही की जा सकती। शैलेन्द्र महतो उलगुलान के नाम पर बाहरी-भीतरी की राजनीति ना करे। झारखण्ड की अस्मिता इन भाषा-भाषियों के चलते खतरे में नही है। सभी भोजपुरी,अंगिका, मगही और मैथिली भाषा-भाषी एकजुट होकर शैलेन्द्र महतो के बयान का विरोध करते है । वे अपना बायन वापस ले और माफी माँगे, अन्यथा
हम भोजपुरी भाषी लोगो उनके घर का घेराव करेंगे और पुतला दहन करेंगे।