भारतीय गणतंत्र-स्वरुप और वैशिष्ट्य

डा जंग बहादुर पाण्डेय
हिन्दी विभाग
रांची विश्व विद्यालय रांची
संंविधान का निर्माण : आज २६ जनवरी है। २६ जनवरी १९५० ई० भारतीय इतिहास का स्वर्णिम पृष्ठ है क्योंकि आज ही के दिन हमारा देश गण्तंत्र घोषित हुआ था। जनता की हाथों में सत्ता की बागडोर आयी, लोकतंत्रात्मक पद्घति का महत्व स्वीकृत हुआ। शताब्दियों की दासता की शृंख्ला टूटी आज ही के दिन हमारा देश संपूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, सामाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लाोकतंत्रात्म गणराज्य घोषित हुआ था। आज के ही दिन हमारा संविधान लागू हुआ था। आज के ही दिन मानव-मानव के मध्य दुर्भेद दीवार ध्वस्त हुई थी और समान अधिकार पाकर सीना तानकर हम कह उठे थे-
मेरा देश, देश का मैं, देश मेरा जीवन-प्राण,
मेरा सम्मान मेरे देश की ब$डाई में।-गिरिधर शर्मा
यिह दिन भारतीयों के लिए वन्दनीय, अभिनन्दनीय है। आज के दिन ही हमारे देश को सम्प्रभुत्वसम्पन्न गण्तंत्र का स्थान मिला। सदियों की दासता की जंजीरे वास्तव में १५ अगस्त १९४७ को टूटी और भारत अंग्रेजी शासन से पूर्ण रूप से मुक्त हो गया था। हम आजाद तो हो गये, लेकिन हमारी शासनव्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिए नियमों-उपनियमों की आवश्यकता थी। इन नियमों-उपनियमों को बनाने के लिए एक सभा का गठन किया गया। इसे संविधान निर्मात्री सभा का नाम दिया गया। उसकी प्रथम बैठक नई दिल्ली में ९ दिसंबर १९४६ को हुई। इसके सभापति सबसे वृद्घ सदस्य डॉ० सच्चिदानन्द सिन्हा को बनाया गया। उन्हें अस्थायी सभापति चुना गया था। इसके बाद डॉ० राजेन्द्र प्रसाद को संविधान सभा का प्रधान बनाया गया, जो स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति भी रहे। स्वतंत्रताप्राप्ति के पूर्व इस सभा ने संविधान बनाने का कार्य शुरू कर दिया था। इस समिति के अध्यक्ष डॉ० भीमराव अम्बेडकर थे। इसमे कुल सात सदस्य थे।
पूर्ण स्वतंत्रता की मांग के समर्थन में २६ जनवरी १९३० को रविवार के दिन सारे देश में तिरंगे झण्डे के साथ जुलूस निकाला गया, सभाएँ की गईं और प्रस्ताव पास करके प्रतिज्ञा की गई कि जब तक हम पूर्ण स्वतंत्र न होंगे तब तक हमारा स्वतंत्रातासंग्राम चलता रहेगा। लाठियों, डण्डों, तोपों, पिस्तौलों और बन्दूकों से सजी हुई सेना और पुलिस से घिरे रहने पर भी हमने हर वर्ष आज का दिन मनाया। अपनी पूर्ण स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा को दुहराते हुए मनाया। उसी प्रतीज्ञा की याद में हमने २६ जनवरी १९५० को ही संविधान लागू किया। तभी से अब तक हम इस राष्ट्रीय पर्व को हर्षाेल्लास के साथ मनाते आ रहे है।
संविधान की विशेषताएँ – हमारा संविधान आज के ही दिन २६ जनवरी १९५० ई० को लागू हुआ था। हमारे संविधान की अनेक विशेषताएं हैं क्योंकि यह संविधान गम्भीर विचारविमर्श के बाद बना था। इस संविधान को बनाने से पूर्व हमारे संविधान बनाने वाले नेताओं ने संसार के समस्त देशों के संविधान का अध्ययन किया और उनमें से उपयोगी सार ले लिया। हमारे संविधान में ३९५ अनुच्छेद और आठ अनुसूचियाँ थी। बाद में ९ और १० वीं अनुसूची और जो$ड दी गई। इसमें लगभग तीस हजार शब्द हैं। संविधान बनाने में दो वर्ष, ग्यारह माह, अठारह दिन लगे। इसमें लगभग चौंसठ लाख रूपये खर्च हुए।
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में कहा गया है कि -’’ हम भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्न समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को – सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक – न्याय विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और (राष्ट्र की एकता और अखण्डता) सुनिश्चित करनेवाली बंधुता ब$ढाने के लिए दृ$ढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख २६ नवंबर १९४९ ई० को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।‘‘

हमारा संविधान विश्व के अन्य संविधानों की अपेक्षा बहुत अधिक विस्तृत है। इसमें सभी बातों का लिखित में ब्यौरा है ताकि प्रत्येक परिस्थिति में इसका सहारा लिया जा सके। यह संविधान धर्मनिरपेक्षता पर आधारित है। भारतवर्ष का अपना कोई विशेष धर्म नहीं है। यहां सभी धर्माें का समान आदर है। इसमें धर्म को राजनीति से अलग रखा गया है। ऐसा उदाहरण हमें बहुत कम देशों में मिलता है। देश के नागरिकोंं को मूल अधिकार दिये गये हैं। इसमें प्रत्येक नागरिक अपनी उन्नति कर सकता है। वह किसी के शोषण का शिकार नहीं हो सकता। अधिकारों के साथ-साथ नागरिकों के मूल कत्र्तव्य भी हैं। इस संविधान में नीतिनिर्देशक जैसे तत्त्वों को साम्मिलित किया गया है। यह भारतीय संस्कृति के आदर्शों पर आधारित हैं। संविधान के अनुसार राज्य-सरकारों की अपेक्षा केन्द्रीय सरकार को अधिक शक्तिशाली बनाया गया है। हमारे यहाँ देश के सर्वाेच्च प्रधान का नाम राष्ट्रपति रखा गया है। फिर भी वह इंग्लैण्ड के सम्राट की तरह केवल नाममात्र का शासक नहीं है। भारतीय संविधान संसादात्मक सरकार की स्थापना करता है। भारत में संघ सरकार की स्थापना है। शासन-सत्ता तीन सूचियों में विभक्त है- संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची। हमारा संविधान अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करता है, इस हेतु अनुसूचित एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए सरकारी नौकरियों में कुछ स्थान सुरक्षित रखने की व्यवस्था है।
लोकतंत्र और हमारी मान्यताएँ – लोकतंत्र शासन पद्घति सर्वमान्य शासन पद्घति होती है। लोकतंत्र में प्रत्येक व्यक्ति का महत्व होता है। भारत का गणतंत्र शासन का वह प्रकार है जों बहुसंख्यक जनता द्वारा मान्य हो तथा जिसका उद्देश्य बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय एवं सर्वजनहिताय हो। लोकतंत्र की कुछ मान्यताएँ है – सच्चा व सफल लोकतंत्र तभी कहा जा सकेगा जब कि शासन इन मान्यताओं का कार्य रूप में परिणित करने का प्रयास करे। यहां हम भारतीय सन्दर्भ में लोकतंत्र की मान्यताओं पर विचार करेंगे।
भारतीय संविधान की प्रतिज्ञा में भारतीय जनता को आर्थिक, सामाजिक तथा राजनैतिक न्याय दिलाये जाने की बात कही गई है। लोकतंत्र की पहली मान्यता है समानता। समानता से यहाँ तात्पार्य अवसरों की समानता से है। आर्थिक, सामाजिक तथा राजनैतिक समानता स्थापित करना लोकतंत्र की पहली मान्यता है। इन सब में आर्थिक समानता सर्वोपरि है। आर्थिक समानता के अभाव में राजनैतिक समानता महत्त्वहीन है। आर्थिक समानता के क्षेत्र में भारत में इन दिनों विशेष प्रयत्न किये जा रहे हैं। संविधान में संशोधन करके आर्थिक समानता स्थापित करने के लिए मार्ग प्रशस्त किया जा रहा है। सामाजिक समानता कानून की अपेक्षा जन-जागृति से अधिक प्रभावित हो सकती है। इसके लिए सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाएँ अपने स्तर पर प्रशंसनीय कार्य कर रही है।
देश के लोगों को बोलने की स्वतंत्रता है। जनतंत्र में विचार-स्वतंत्रता को प्रधानता दी गई है। जिन देशों में लोकतंत्र नहीं है, उन देशों मकें विचार-स्वतंत्रता पर प्रतिबंध है। स्वतंत्रता का अर्थ यहाँ मनमानी करना या उच्छृंखलता नहीं हैं वरन् दूसरों को हानि पहुँचाये बिना तथा कानून का उल्लंघन किये बिना स्वतंत्रता का भाव है। राजनैतिक पराधीनता में लोकतंत्र का विकास सर्वथा असम्भव है। लोकतंत्र की मान्यता है कि राज्य के निवासियों को मूल अधिकार प्राप्त हों। राज्य के प्रत्येक नागरिक को मूल अधिकार प्राप्त होने चाहिएं, जिससे वह अपने व्यक्तित्व का विकास भलीभाँति कर सके। मूल अधिकार शासन के अत्याचार, दबाव, मनमानी तथा निरंकुशता के विरूद्घ नागरिक का कवच हैं। देश के संविधान द्वारा नागरिकों को मूल अधिकारों की गारंटी दी गई है। भारत सहित अनेक देशों के संविधान में ऐसी व्यवस्था है।
न्यायपालिका, कार्यपालिका के नियंत्रण से मुक्त होनी चाहिए। यदि न्यायपालिका, कार्यपालिका के नियंत्रण से मुक्त नहीं होगी तो लोगों को सच्चा व निष्पक्ष न्याय नहीं मिल सकता तथा लोगों की न्यायपालिका पर से आस्था उठ जायेगी। यह केवल लोकतंत्र की ही विशेषता है कि उसमें कई निर्णय सरकार के विरूद्घ होते हैं। शासन का उद्देश्य जनकल्याणकारी होना चाहिए। शासन, जिसका चुनाव जन-बल ने किया है वह जनभावनाओं, जनआकांक्षाओं तथा जनइच्छा को सर्वाेपरि महत्त्व प्रदान कर उनके अनुसार कार्य करे। शासन का लक्ष्य अधिक से अधिक लोगों का अधिक से अधिक हित करना होना चाहिए, ऐसी लोकतंत्र की मान्यता है।
लोकतंत्र और हमारा दायित्व – लोकतंत्र अथवा गणतंत्र शब्द भारत के लिए कोई नया नहीं है। प्राचीन गन्थों में ग्रामिणी और ग्रामप्रधान जैसे शब्दों का उल्लेख मिलता है। उनका चुनाव जनता द्वारा होता था। डॉ० काशीप्रसाद जायसवाल ने अपनी पुस्तक ’हिन्दू पॉलिटी‘ में इस बाता का समर्थन किया है कि प्राचीनकाल में राजतंत्र निर्वाचित होता था। भारत ने अनेक बलिदानों तथा कष्टों को झेलकर जिस स्वतंत्रता को प्राप्त किया है, वह सर्वविदित है। इस समय भारत में लोकतंत्र अभी युवावस्था में ही है। शैशव काल कहना उचित नहीं है क्योंकि स्वतंत्रता प्राप्ति को ६९ वर्ष हो गये हैं।
हमें इस बात का गर्व है कि हमारा देश संसार का सबसे ब$डा लाकतंत्र है। जनसंख्या की दृष्टि से हमारे देश का दूसरा स्थान है, किन्तु चीन में लोकतंत्र नहीं है। हमें गणतंत्र को सजीव व दृ$ढ बनाने के लिए अपने दायित्वों को समझाना चाहिए। सबसे ब$डा दायित्व जो हमें विरासत में मिला है, वह है अशिक्षा, जिसे समाप्त करना चाहिए। शिक्षा लोकतंत्र की नींव है। लोकतंत्र रूपी भवन को मजबूत बनाने के लिए देश में शिक्षा का प्रचार व प्रसार द्रुतगति से करना है। शिक्षा के प्रचार व प्रसार से लोगों के मन में लोकतंत्र के प्रति आस्था दृ$ढ होती है। स्वतंत्रता के पश्चात शिक्षा संबंधी आंक$डे उत्साहवद्र्घक रहे हैं।
देश में व्याप्त दरिद्रता को समाप्त करना हमारा दायित्व है। दरिद्रता लोकतंत्र के मार्ग में एक ब$डी बाधा है। इसके लिए स्वतंत्रताप्राप्ति के प्रारम्भिक वर्षों में उल्लेखनीय प्रयास हम नहीं कर पाये। इन्दिरा गांधी सरकार ने इसके लिए विशेष कार्यक्रम बनाये थे। मोदी सरकार भी शिक्षा निर्धनता को दूर करने के लिए कटिबद्घ है तथा स्वच्छ भारत का मिशन मोदी सरकार का सपना है, जिसे आये दिन में पूरा करना सरकार की कटिबद्घता है। पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से हमें सफलता मिल रही है। आर्थिक असमानता को मिटाने के लिए अनेक प्रगतिशील कदम उठाये जा रहे हैं। हमारा प्रयास कह रहे कि लोगों को कम से कम ’’न्यूनतम आर्थिक‘‘ लाभ तो उपलब्ध हो ही सके। इस बात के प्रति हम सचेत रहें कि देश में चुनाव निष्पक्ष व स्वतंत्रतापूर्वक हों। अभी तक सम्पन्न सभी चुनाव इस बात के द्योतक हैं कि देश में चुनाव स्वतंत्र व निष्पक्ष रूप से हुए चुनाव लोकतंत्र का आधार है हमारे यहां एक स्वतंत्र व निष्पक्ष संस्था, ’’चुनाव आयोग‘‘ को यह महत्वपूर्ण कार्य सौंपा गया है। प्रबुद्घ वर्ग का दायित्व है कि जनसाधारण को चुनावप्रक्रिया की जटिलता से अवगत करावें जिससे स्वार्थी राजनैतिक दल सामान्य जन को गुमराह न कर सकें।
यद्यपि लोकतंत्र में सामम्प्रदायिकता को कोई स्थान नहीं है, फिर भी आये दिन समाचारपत्रों की सुर्खियों में साम्प्रदायिक दंगों के सामाचार प$ढने को मिलते हैं। साम्प्रदायिक ताकतों का हम डट कर मुकाबला करें। हम सम्प्रदायिकता की गन्दी और संकीर्ण भावनाओं से अपने को ऊँचा उठावें। देश में आतंकवाद का जोर विगत कुछ वर्षों से ब$ढ रहा है। हमें एकजुट होकर इसका मुकाबला करना चाहिए। साम्प्रदायिक दलों तथा पत्रों पर प्रतिबंध लगाने की सरकार से मांग करें। मांग स्वीकार करने हेतु जोर दें। साम्प्रदायिकता विरोधी आन्दोलनों को गति दें।
राष्ट्रीय एकता को कायम रखने के लिए हमारे प्रयत्न जारी रहें। आज देश में ंभाषावाद व प्रान्तीयता सिर उठाये ख$डी है। यदि इन्हें आगे ब$ढने का अवसर मिला तो वे देश को खंडित कर देंगे। आज पंजाब में सिरफरे खालिस्तान का नारा लगा रहे हैं। यह सब भाषावार प्रान्तों के विभाजित होने का परिणाम है। हमें देश की एकता बनाये रखने के लिए उनके विचारों, उनके कार्यकलापों पर क$डी न$जर रखनी होगी। उन्हें ज$ड से नष्ट करना हमारा परम कत्र्तव्य है। विचारक एवं प्रबुद्घ वर्ग को भी चाहिए कि वह राष्ट्रीय एकता विरोधी आन्दोलनों का समर्थन न कर उनकी भत्र्सना करे। राष्ट्रीय एकता बनाये रखने के सभी प्रयासों का समर्थन करे।
अन्त में एक निवेदन और करना चाहूँगा, वह है-राष्ट्रीय चरित्रनिर्माण। राष्ट्रीय चरित्र का हमारे देश में ह्रास हो रहा है। प्रत्येक स्तर पर (चाहे सरकारी हो अथवा गैर सरकारी) भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, बेईमानी का बोलबाला है। राष्ट्रीय चरित्र के अभाव में हमें विदेशियों के सामने नीचा दिखना प$डता है। हम सभी लोग आज के दिन संकल्प करें कि ’राष्ट्र सर्वोपरि है। राष्ट्र है तो हम है।‘
यदि इन सभी दायित्वों को हम भलिभाँति निभाते रहेंगे तो हम विश्वास क साथ आश्वस्त हो सकते हैं कि हमारे देश में गणतंत्र सुरक्षित है। इसके लिए हमें दृ$ढ संकल्प करना चाहिए। हमें संगठित होना चाहिए। हमें भारतीय होना है न कि हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई, गुजराती, मराठी, राजस्थानी, पंजाबी आदि होना है। हमें ऐसे संकीर्ण भावना को त्यागना होगा जिससे लोकतंत्र क्षतविक्षत होता है। कविवर शिवमंगल सिंह ’सुमन‘ ने २६ जनवरी की चुनौतियों की ओर जनता का ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा है-
महाप्रलय की प्रतिध्वनियों में भी जो जनता सोती है,
यह २६ जनवरी आज उनको दे रही चुनौती है!
नहीं जगे तो नहीं जगे ये किस्मत पर रोनेवाले,
नही जगे तो नहीं जगे घर पूँ*क हवन करनेवाले!
जिन बेशर्माें पर शर्मिन्दा शर्म स्वयं भी होती है,
यह २६ जनवरी आज उनको दे रही चुनौती है।
डॉ० शिवमंगल सिंह ’सुमन‘

Share this News...