कमल को दिलों तक पहुंचाने वाले पूछ रहे सवाल

जब भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनाव में 80 के दशक में केवल दो सीटें जीती थीं तो किसने सोचा था कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब देश का प्रधानमंत्री भाजपा का होगा। भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार केंद्र की सत्ता में आएगी। इसी कारण राजनीति के बारे में कहा जाता है कि यहां कुछ भी संभव है। फर्श से अर्श और अर्श से फर्श तक पहुंचने ज्यादा समय नहीं लगता। एक दौर था जब देश में कांग्रेस बनाम गैर कांग्रेस की राजनीति चलती थी। अब भाजपा बना गैरभाजपा की राजनीति चल रही है। देश ने वह भी दौर देखा है जब कांग्रेस के खिलाफ दक्षिण पंथी और वामपंथी दल एक मंच पर आ गए थे। अब देश ने वह भी दौर देखा है जब वामपंथ और कांग्रेस तथा समाजवाद और कांग्रेस एक मंच पर हैं। इसे ही राजनीति कहते हैं । राजनीति में कोई स्थाई मित्र या शत्रु नहीं होता। इसे अवसरवाद का नाम भी नहीं दिया जाना चाहिये क्योंकि समय और परिस्थिति के कारण ऐसा करने पर सभी को विवश हो जाते हैं। यह कह सकते हैं कि हर कोई अवसरवादी है।
ऐसे मामलों को राजनीतिक दल बड़ी चतुराई से अपने-अपने तरीके से जायज ठहरने का प्रयास करते हैं। भारतीय जनता पार्टी और महबूबा मुफ्ती की पीडीपी मिलकर जम्मू कश्मीर में शासन करेगी यह तो किसी ने ही नहीं सोचा होगा। अब इसके जो भी तर्क गढेे जाएं लेकिन हकीकत यही है की राजनीति में कब कौन किसे पछाडक़र आगे बढ़े कहना मुश्किल होता है। सबका एक ही उद्देश्य है येन केन प्रकारेण सत्ता हासिल करना। उसके लिए यदि अपनों की भी बलि चढ़ा दी जाए तो रति भर भी गुरेज नहीं होता। भारतीय जनता पार्टी के सदस्यता अभियान की शुरुआत के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुरानी बातों को याद किया। वे भावुक भी हुए। उन्होंने यह भी कहा कि हम बहुत कुछ सहे तब जाकर सफल हुए। यह बात सही है कि भारतीय जनता पार्टी लंबे समय तक देश की राजनीति में अछूत बनी रही। उसका उपहास उड़ाया गया। आज वही भारतीय जनता पार्टी दूसरे राजनीतिक दलों का माखौल उड़ाती दिखती है। उनकी कम सीटें आने पर उनकी बखिया उधेड़ती है। कांग्रेस के अस्तित्व पर सवाल उठाती है। आशय यह कि यह बातें हर राजनीतिक दल के साथ कभी न कभी लागू होती हैं ।जब आप चोटी पर हों तो दूसरे का अपमान करने के बजाय खुद की लकीर बड़ी करने का प्रयास करें। दूसरे की लकीर मिटाने से खुद को बड़ा नहीं किया जा सकता। राजनीतिक दल ऐसी गलतियां करते हैं जिस कारण जो लोग उनको सिर आंखों पर बिठाये होते हैं, वे उनको उठाकर फेंकने में गुरेज नहीं करते। पीएम नरेंद्र मोदी ने जो बातें कही हैं उनमें सच्चाई है मगर यह भी सच्चाई है कि भारतीय जनता पार्टी में अब वैसे लोगों की पूछ कम हो रही है जिन्होंने दीवारों पर कमल के निशान बनाये थे। अब जैसा कि प्रधानमंत्री ने कहा कि दीवारों पर बने कमल लोगों के दिल तक तो पहुंच गए मगर कमल बनाने वाले अब पीछे छूटते जा रहे हैं। बाहरी लोगों की भारतीय जनता पार्टी में कुछ ऐसी पूछ होती जा रही है जो कमल बनाने वालों और दीवारों पर भारतीय जनसंघ या भारतीय जनता पार्टी के नारे लिखने वालों के दिलों को कचोटती है। उनका दर्द यह है कि अब जिन्होंने कभी दीवारों पर कमल का निशान नहीं बनाया वे पार्टी संगठन की बैठकों में उन्हें भारतीय जनता पार्टी की संस्कृति का पाठ पढ़ाते हैं ।मगर यही राजनीति है। भारतीय जनता पार्टी को अब लगता है कि सत्ता में हासिल करने के लिए बाहरी लोगों की फ्री एंट्री उसे अधिक कामयाब बना रही है। लेकिन ऐसा कर वे उन भाजपाइयों को आहत कर रही है जिन्होंने दीवारों पर कमल के निशान बनायें और वह निशान लोगों के दिलों तक पहुंच गया।

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