संविधान दिवस देशवासियों के लिये काफी महत्वपूर्ण – अर्जुन मुंडा

संविधान दिवस पर संसद भवन के केन्द्रीय कक्ष में आयोजित कार्यक्रम में ऑनलाइन शामिल होते केन्द्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा

जमशेदपुर : जनजातीय मामलों के केन्द्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने संविधान दिवस पर देशवासियों को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि सभी देशवासियों के लिये यह दिवस काफी महत्वपूर्ण है. एक निजी समारोह में भाग लेने पहुंचे श्री मुंडा ने कुछ पत्रकारों से अनौपचारिक बातचीत के दौरान कहा कि 26 नवंबर, 1949 को देश के नागरिकों ने संविधान को अंगीकृत आत्मसात किया. स्वयं शासित होने की व्यवस्था कायम की. स्वराज के साथ देश और देशज आगे बढ़े इन मूल भावनाओं के साथ संविधान को अंगीकृत करते हुए 26 जनवरी, 1950 को हमने गणतांत्रिक व्यवस्था को लोकतांत्रिक मूल्यों के आधार पर सुनिश्चित किया. आज का दिवस इसलिये भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि हम आजादी के अमृत महोत्सव, यानि 75वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं. हमारे लिये गौरव का विषय है कि स्वयं शासित व्यवस्था एवं लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ तमाम नागरिकों ने उस व्यवस्था को स्वयं निर्मित किया है और कड़ी मेहनत के बाद हम लक्ष्य को लेकर संकल्पित हो रहे हैं कि भविष्य का भारत कैसा हो. आज देश को राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री ने संविधान दिवस पर संबोधित करते हुए स्मरण कराया कि जिन लोकतांत्रिक व्यवस्था को हमने आत्मसात किया है, एक नागरिक के नाते हमारा कितना बड़ा दायित्व है. जब हम देश की आजादी के 100 साल पूरा करेंगे, तो भारत का वास्तविक चित्र दुनिया के मानचित्र पर कैसा होगा, यह हमें सुनिश्चित करना है.
श्री मुंडा ने कहा कि आजादी के अमृत महोत्सव पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश में अपनी जीवन पद्धति मानवीय मूल्यों एवं जमीन से जुडक़र रहनेवालों की चिंता करते हुए धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा के जन्मदिवस को जनजातीय गौरव दिवस के रुप में मनाना सुनिश्चित किया गया है. इसे एक पखवाड़ा तक मनाते हुए यह निश्चित किया जा रहा है कि जन जन तक बातों को पहुंचाया जाए. उन्होंने कहा कि यह एक आयोजन ही नहीं है, बल्कि हम अपने गांव को कैसे आदर्श गांव बनाएं और संपूर्ण सुविधाओं के साथ लैस होकर उसे आगे बढ़ाएं, यह उत्सव हमें यह बड़ा संदेश देता है. एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि संविधान दिवस का बहिष्कार करनेवालों का अपना तर्क होगा, उनकी आलोचना करने में समय व्यर्थ न करते हुए मेरा कहना है कि आरोप-प्रत्यारोप लोकतंत्र का अलंकार है, लेकिन संवैधानिक व्यवस्था में जो चीजें हमें दी गई है, हमें उनका अनुपालन करना चाहिये. उसके प्रति हमारा दायित्व बना रहना चाहिये. संविधान सभा में इन्हीं सारी बातों का मंथन करते हुए हमारे देश के संविधान को धर्मग्रंथ के रूप में हमारे पूर्वजों ने हमें दिया है, इसके प्रति प्रतिबद्ध रहना चाहिये ।

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