केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने झारखंड में एक तरह से विधानसभा चुनाव का बिगुल फूंक दिया है। झारखंड में हजारों भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधित करने के पीछे उद्वेश्य आने वाले दिनों में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए उन्हें उत्साहित करना था। झारखंड में भाजपाई कितने उत्साहित हैं और जो पुराने कार्यकर्ता है उनकी क्या मनोदशा है, यह उनके विभिन्न सोशल मीडिया अकाउंट के जरिए व्यक्त की जाने वाली पीड़ाओं से साफ झलकता है। ऐसे पुराने एवं समर्पित कार्यकर्ताओं का दर्द यही है कि अब पार्टी में समर्पित लोगों की पूछ नहीं रह गई है। चमकदार गाडिय़ां रखने वालोंं,चमचागिरी करने वालों और बड़े नेताओं को हर तरह से खुश रखने की क्षमता रखने वालोंं, आयातित नेताओं और चमचों की भरमार पार्टी में हो गई है। पार्टी में अब ऐसे ही लोगों को तवज्जो दी जाने लगी है। यदि किसी पार्टी के कार्यकर्ताओं की ही ऐसी मनोदशा हो तो फिर चुनावों में वे कितने उत्साह केसाथ जाएंगे, समझा जा सकता है। झारखंड में भारतीय जनता पार्टी ने सबसे अधिक समय तक शासन किया है। वर्तमान विधानसभा कार्यकाल को छोड़ दिया जाए तो कभी ऐसा नहीं हुआ कि भाजपा का शासन इक्का दुक्का मौका को छोडक़र नहीं रहा हो। मगर आज जैसी भाजपा की स्थिति झारखंड में इसके पहले कभी नहीं रही। उसे जमीन तलाशने के लिए अब संघर्ष करना पड़ रहा है ।इसकी वजह भी खुद भाजपा ही है मगर दिक्कत यह है कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व अभी इन सारी बातों की अनदेखी ही करता है। हाल ही झारखंड दौरे पर आए राष्ट्रीय स्वयंसेवक प्रमुख मोहन भागवत ने जो तंज भाजपा नेतृत्व पर कसा है और इसके पहले भी जिस तरह की बात वे इशारों-इशारों में कहते रहे हैं, वह अपने आप में बहुत कुछ बता देता है। भाजपा के बारे में कहा जाता है कि अब उसमें वे सारी, नीतियां सिद्धांत दरकिनार कर दिए गए हैं जिनके दम पर खुद को पार्टी विद डिफरेंस कहा करती थी। पार्टी के अंदर चलने वाले मनमुटाव के बाद भी उसका सार्वजनिक इजहार नहीं होता था। अभी की तरह वह खंड खंड में नहीं दिखती थी। अपने ही लोगों को औकात बताने की ऐसी प्रवृति पहले की भाजपा में नहीं थी। आज की भाजपा इन सबसे इतर दिखती है। विरोधियों से अधिक अब पार्टी में अपने ही लोगों को साधा जाने लगा ै। अब इसका उद्देश्य येन केन प्रकारेन सत्ता हासिल करना है। यही कारण है कि पार्टी सत्ता तो हासिल कर रही है मगर अंदर से वह उतनी ही कमजोर भी हो रही है। सत्ता हासिल करने के लिए बाहरी लोगों को जिस तरह से तवज्जो दी जाने लगी है वह पार्टी के मूल कार्यकर्ताओं को बिलकुल रास नहीं आ रहा। उनका कहना है कि 80- 90 के दशक में जब संगठन को तैयार किया जा रहा था तो एक-एक कार्यकर्ता बनाने के लिए उन्हें एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ता था। कोई बीजेपी का कार्यकर्ता बनने को तैयार नहीं होता था। आज 40 साल भाजपा में देने वाले वैसे समर्पित कार्यकर्ताओं की बात सुनने वाला कोई नहीं है। ऐसे लोगों का आक्रोश तब और बढ़ जाता है जब पैराशूट से आने वाले नेता बड़े-बड़े पदों पर आसीन होकर उन्हें ही भाजपा की नीतियों का ज्ञान देने लगते हैं। ऐसे कई कार्यकर्ता मिल जाएंगे जो अब ऐसी बैठकों में नहीं जाया करते। उनका कहना है कि ऐसी बैठकों में जाने से उनका पारा चढ़ जाता है क्योंकि वह ऐसे लोगों से भाजपा की नीतियां सुनना पसंद नहीं करते जो कल उनकी पार्टी में आए हो और रातों-रात उन्हें बड़ा पद लिया गया। उन्हें भाजपा से कोई सरोकार नहीं, कल उन्हें कोई पद नहीं मिलेगा तो वह पार्टी को लात मार कर चले जाएंगे। वे केवल पद के लिए ही पार्टी से जुड़ते हैं। यह सही है कि संगठन को चलाने के लिए दूसरी पार्टियों से आए लोगों को स्थान दिया जाना चाहिए हर राजनीतिक दल ऐसा करते हैं मगर जब पैराशूट से उतरने वाले लोग ही पार्टी संभालने लगेंगे तो फिर पार्टी के समर्पित कार्यकर्ताओं का वही हाल होगा जो इन दिनों भाजपा में देखा जा रहा है। खास तौर पर झारखंड में तो इसकी पराकाष्ठा हो चुकी है। भाजपाइयों का दर्द है कि आला कमान उनकी इस भावना को लगातार अनसुना कर करता रहा है। एक दौर था जब भाजपा में विचारों का आदान-प्रदान किया जाता था। जमीन से जुड़े कार्यकर्ताओं से फीडबैक लिया जाता था। अब ऐसा कुछ नहीं हो रहा। यही वजह है कि अमित शाह का दौरा अखबारों की सुर्खियां तो बना मगर वह भाजपा कार्यकर्ताओं और मतदाताओं को कितना प्रभावित करेगा, यह तो समय ही बताएगा।