रवि सेन
चांडिल: चांडिल पॉलिटेक्निक में जियोलाजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, मिनिस्ट्री ऑफ माइंस के द्वारा सेमिनार का आयोजन किया गया. इस अबसर पर प्राचार्य डॉ नीरज प्रियदर्शी ने बताया कि भारत में भूवैज्ञानिक जांच की शुरुआत उन्नीसवीं सदी के शुरुआती दौर में हुई थी. भारत और सेना के सर्वेक्षण से जुड़े कुछ शौकिया भूवैज्ञानिकों ने देश में भूवैज्ञानिक अध्ययन शुरू किया. इस अबसर पर सीनियर जियोलॉजिस्ट अभिषेक दास और प्रियंका चटर्जी ने बताया की जीएसआई के मुख्य कार्य राष्ट्रीय भूवैज्ञानिक सूचना और खनिज संसाधन मूल्यांकन के निर्माण और अपडेशन से संबंधित हैं. ये उद्देश्य जमीनी सर्वेक्षण, वायु-जनित और समुद्री सर्वेक्षण, खनिज पूर्वेक्षण और जांच, बहु अनुशासनात्मक भू-वैज्ञानिक, भू-तकनीकी, भू-पर्यावरण और प्राकृतिक खतरों के अध्ययन, हिमनोलॉजी, भूकंपीय अध्ययन, और मौलिक अनुसंधान को पूरा करने के माध्यम से प्राप्त किए जाते हैं. जीएसआई के काम के परिणाम में सामाजिक महत्व है. इस अबसर पर सिविल इंजीनियरिंग के 120 विद्यार्थी उपपस्थित थे. नूपुर राजखोवा, देव ललाटेन्दु ने बताया की जीएसआई के कामकाज और वार्षिक कार्यक्रमों का राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में महत्व है. भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण, राज्य इकाई झारखंड भुविसामवाद का संचालन करने के लिए तैयार है. खान मंत्रालय, सरकार द्वारा एक पहल है. इस कार्यक्रम में विद्यार्थियों को इंटरैक्टिव भूविज्ञान की बुनियादी अवधारणाओं, राष्ट्र निर्माण में भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण द्वारा योगदान, मानचित्र पढ़ने और बुनियादी चट्टानों और सोने पर विशेष जोर देने वाले खनिजों से परिचय विषय पर व्याख्यान सह इंटरैक्टिव सत्र शामिल हुआ. औपचारिक व्याख्यानों के बाद, छात्रों को कुछ प्रमुख चट्टानों और खनिजों की टॉपोशीट और पहचान का अध्ययन करने का अवसर मिला. व्याख्यान पावरपॉइंट प्रस्तुति के माध्यम से दिया गया. इस अबसर पर नूपुर राजखोवा, देव ललाटेन्दु, अजित कुमार, दीपक कुमार, फैजुल, हिमांशु कुमार सिंह, प्रिंस आदि उपपस्थित थे.