जुबिली पार्क में बांस की बेरिकेडिंग बनी जानलेवा, शहर की मुख्य सडक़ें बन गई ‘खाऊ गली’ ,जिला प्रशासन उदासीन

जमशेदपुर, 15 जनवरी : जुबिली पार्क में सडक़ आम यातायात के लिये बंद करने की पहले कोशिश की गई, अब सडक़ के दोनों ओर बांस से बेरिकेडिंग कर उसे इतना संकरा बना दिया गया है कि कल सुबह-सुबह एक साइकिल सवार की मृत्यु हो गई. बांस की बेरिकेडिंग का क्या उद्देश्य है, कल की घटना के बाद जनता में आक्रोश के साथ असंतोष फिर पैदा होने लगा. वह सडक़ पहले से ही पतली थी, जिसपर आने जानेवाली गाडिय़ों को संभल कर चलना पड़ता है. बांस की बेरिकेडिंग से फूटपाथ खत्म हो गया. उपर से बेरिकेडिंग के बाद सडक़ पर ही पार्क एम्युजमेंट पार्क में आनेवाले दो पहिया वाहन खड़े कर दिये जाते हैं. इस हालत में सडक़ पर गाड़ी चलाना मुश्किल हो गया है. कल सुबह बागुननगर का एक साधारण व्यक्ति जो गार्ड का काम करता था, सुबह सुबह 6 बजे ड्यूटी जाने के क्रम में एक वैगन आर द्वारा कथित रुप से टक्कर मारे जाने का शिकार हो गया. यह बेरिकेडिंग अगर पार्क के भीतर की गई होती तो समझ में आता कि उसका औचित्य पार्क में घूमने आनेवाले लोगों की सुरक्षा हो सकता है लेकिन फूटपाथ को बंद कर घेराबंदी करने का नतीजा है कि उस सडक़ पर आज आये दिन दुर्घटनाएं होंगी.
शहर में सडक़ों पर चलना कहीं सुरक्षित नहीं रह गया. जिस ढंग से गाडिय़ों का घनत्व बढ़ा है, उसके अनुपात में सडक़ें चौड़ी नहीं हुई और किनारे किनारे जहां पेबर्स ब्लॉक बिछाकर फूटपाथ बनाया गया उन सडक़ों पर डिवाइडर लगाकर वही स्थिति पैदा कर दी गई. बिष्टुपुर में रीगल बिल्डिंग के सामने दारु दुकान का क्षेत्र हो या बगल में गुजरनेवाली कथित खाऊ गली हो या साकची में जुबिली पार्क से बंगाल क्लब को जोडऩेवाली सडक़ पर बन गई खाऊ गली हो यहां से गाडिय़ों का चलना और क्रॉस करना दुर्घटना को निमंत्रण ही नहीं देता, अति दुरुह कार्य हो गया है. लोयोला स्कूल और कालीबाड़ी के बीच भी डिवाइडर और पिरामिड बनाने से स्कूल खुलने और छुट्टी के समय जाम का जो नजारा पैदा होता है, वह भयावह होता है. इसी तरह बाग-ए-जमशेद गोलचक्कर से साकची गोलचक्कर तक पहुंचने में कितना समय लग जाए कोई नहीं कह सकता.
नो पॉर्किंग का बोर्ड लगा देना तो जैसे खेल हो गया है किंतु पार्किंग कहां हो, इसकी व्यवस्था पर चिंता नहीं है. लगता है कि नो पार्किंग के लिये जिला प्रशासन का आदेश भी ले लिया जाता. टाटा स्टील का नगर प्रशासन हो या पुलिस प्रशासन, जहां उसे इच्छा होती है वहां नो पार्किंग का बोर्ड टांग दिया जाता है. लेकिन वहां आनेवाले वाहनों की पार्किंग कहां होगी, इसकी व्यवस्था नहीं होती. साकची में जुबिली पार्क से बंगाल क्लब के बीच जो खाऊ गली बनी है, वहां तो अब सडक़ पर कुर्सी लगाकर ठेलावाले अपनी दुकानदारी चलाते हैं. नो पार्किंग या सडक़ किनारे खड़ी गाडिय़ों पर जितनी तत्परता से फाइन काटने की कार्रवाई होती है, शायद उतनी तत्परता अगर सडक़ पर नाजायज ढंग से चल रहे इन ठेलावालों पर नहीं की जाती. फूड सेफ्टीवाले छोटी बड़ी दुकानों में जितनी तत्परता से माहवारी बंधवाने के लिये निरंतर भ्रमण करते हैं, वे अगर इन ठेलों पर बिकनेवाले खाद्य पदार्थों की जांच के लिये नमूना लेते तो समझ में आ जाता कि व्यवस्था और शरीर में पैदा होनेवाले तरह-तरह के रोगों का कारण क्या है. थानावाले तो हर ठेलेवाले से महीना बांधकर चुप लगाये रहते हैं. प्रशासन और जन प्रतिनिधि पता नहीं क्यों चुप रहते हैं.
शहर में आम लोगों का चलना अब दूभर हो गया है. यातायात पुलिस हेलमेट, सीट बेल्ट की जांच के नाम पर वसूली के लिये जितनी तत्परता दिखाती, उतना ट्रॉफिक रेगुलेट करने के लिये नहीं दिखाती. दरअसल ट्रॉफिक रेगुलेशन पर पुलिस का ध्यान ही नहीं आता. टाटा स्टील को सडक़ों को बंद करने, सौंदर्यीकरण के नाम पर तरह-तरह की औपचारिकताएं पूरी करना ही प्रत्यक्ष प्रदर्शित होता है. आश्चर्य होता है कि जिला और अनुमंडल प्रशासन भी इस समस्या की ओर उदासीन है. ट्रॉफिक नियंत्रण के लिये गठित जिला स्तरीय समिति की कब बैठक होती है और क्या निर्णय लिये जाते हैं, यह आम लोगों को पता नहीं चलता है.

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