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बिलों में दुबककर जीवन यापन करने वाले चुहियों को शाही अंदाज में जीने और गुंडों का सांढ सरदार बनाने में किसकी भूमिका है? किसने कारू को भस्मासुर बनाया?सत्ता के संरक्षण में मगरुर कारू ने सत्य,सदाचार,करुणा,दया और मर्यादा के प्रतीक डीएसपी पुरुषोत्तम पर ही हमला बोल दिया।वे चाहते तो आशा कोठी के सामने गुप्ता धाम बनाकर भगवान शिव की भांति छुप सकते थे,लेकिन दिलेर डीएसपी ने पीठ दिखाने के बजाय पत्थरों की वर्षा का मुकाबला कर पुलिस के कर्तव्य की एक नजीर पेश की। लेकिन यक्ष प्रश्न है कि कारू को भस्मासुर बनाने में किसका हाथ है।पुलिस संरक्षण में वह दशकों से कोयले का अवैध कारोबार करता रहा है।पुलिस के साथ उसका गठजोड़ चोली दामन सा रहा है।आज उसने पुलिस पर ही हमला करवा दिया। धन बढ़े कोई बात नहीं,लेकिन मन का इतना बढ़ना ठीक नहीं है।अब भगवान विष्णु यानि एसएसपी जनार्दन को मोहिनी रूप में पार्वती बनकर अभयदान प्राप्त कारू को भस्म करना होगा।माना कि पुलिस से बड़ा गुंडा कोई होता नहीं, पुलिस कारू के चुहिया साम्राज्य को तहस नहस कर देगी, डीएसपी के माथे के हरे जख्म की मरहम पट्टी कर उसे दुरुस्त कर देगी। लेकिन सवाल तो उठेगा कि चुहिया आखिर शेर से कैसे भीड़ गया।
दूसरी बात कि इस कोयलांचल की शाखाओं में एक कारू नहीं है,यहां तो हर शाख पे कारू बैठा है।निरसा में रमेश – संजय – विजय,झरिया में गणेश – बंटी ,सोनारडीह में – रोहित कर्मकार जैसे कई सफेदपोश कारू हैं। इन्हें किसने पैदा किया। बिल्ली से तेंदुआ इन्हें किसने बनाया।खेत खाए गधा और मार खाए जो रहा। कार्रवाई के नाम पर शहीद हो गए धर्माबांध और मधुबन के प्रभारी।यहां तो एसएसपी पर कार्रवाई होनी चाहिए।
इसके पूर्व खनन विभाग के कई इंस्पेक्टर धुना गए,गोविंदपुर के अंचलाधिकारी धर्मेंद्र दुबे पर बालू माफियाओं ने हमला बोल दिया। लेकिन दोषी पुलिस की कार्रवाई से दूर हैं। जहां इंस्पेक्टर,डिप्टी कलेक्टर और डीएसपी पर हमला हो जाए और कानून के पहरेदार झुपकी ले,वहां आम आदमी की क्या बिसात है।जड़ में है अवैध कोयले का कारोबार और आउटसोर्सिंग कंपनियों में दबदबा का खेल। जबतक ऐसे लोगों का धन बढ़ता रहेगा,उनका मन सातवें आसमान पर होगा।