जमशेदपुर, 16 नवंबर(रिपोर्टर): टेल्को थाना क्षेत्र में सीटू तालाब के पास जो हत्या की वारदात हुई, उसमें पुलिस तंत्र का रवैया बड़े सवालों के घेरे में है. 13 नवंबर को वोटिंग समाप्त होने के उपरांत इसी बिट्टू कामत ने राहरगोड़ा में अजीत नामक व्यक्ति को गोली मारकर जख्मी किया था जिसका इलाज टाटा मोटर्स अस्पताल में अब भी चल रहा है. मजे की बात है कि अस्पताल में पुलिस ने अजीत का बयान भी लिया लेकिन कोई फौरी कार्रवाई उसके विरुद्ध नहीं की. इस घटना के बीतने के दो रात बाद कल बड़े अधिकारी के हस्तक्षेप से परसूडीह थाना में प्राथमिकी दर्ज की गई. फिर भी बिट्टू की खोज-खबर पुलिस ने नहीं ली. पुलिस अगर बिट्टू के पीछे पड़ी होती तो आज उसे गोली मारने का साहस होता? इसके अलावा आज उसने जिस सुनील सिंह को गोली मारी, उसने रंगदारी मांगने की शिकायत गोविंदपुर थाने में कर रखी है. पुलिस अपराध होनेे से तो नहीं रोक सकती, यह सभी जानते हैं लेकिन पुलिसिंग एक ऐसा तंत्र है कि अगर वह किसी गुंडे के पीछे कानूनी तौर पर पड़ जाए तो उसका मनोबल जरूर टूटता है और कभी-कभी अपराधी इलाका छोडक़र भी भागने को मजबूर हो जाता है.
गोबिंदपुर और परसुडीह थानों की पुलिस, संभव है- कागज और कंप्यूटर में इसका जवाब बना ले लेकिन वरीय अधिकारियों को देखना चाहिए कि उन्हें या वे बरगला रहे हैं या फिर धरातल पर कोई कार्रवाई की गई. पसूडीह थाना में तत्काल एफआईआर दर्ज कर कामत को क्यों नहीं खदेड़ा गया? गोबिंदपुर पुलिस धमकी की शिकायत के बाद भी चुप क्यों बैठी रही? सिविल सोसाइटी में यह आम चर्चा है कि बिट्टू कामत का मन तोडऩे और सुनील की जान बचाने के लिए पुलिस ने कोई प्रयास नहीं किया