बिहार केशरी श्री बाबू की बीआईटी सिंदरी में आदमकद प्रतिमा लगाने की मांग

धनबाद : बिहार केशरी डॉ श्री कृष्ण सिंहा को भुलाना मतलब अपने पूर्वज को भूलना और पूर्वज को भूलना मतलब अपनी जड़ से उखडऩा है. श्री बाबू को भूल कर आज समाज इसी रास्ते पर चल निकला है जिसका खामियाजा सभी को भुगतना भी पड़ रहा लेकिन कोई चेत नहीं रहा और उनकी उपेक्षा और अनदेखी को स्वीकार भी कर रहा है. डॉ श्री बाबू यूँ ही बिहार केशरी नहीं बने. उनका योगदान बिहार और अब उससे विभाजित झारखण्ड के मूल आधार के कण कण में है. झारखण्ड के ओडि़शा समीपवर्ती जो क्षेत्र आज झारखण्ड की सीमा में आते हैं और जो एशिया प्रसिद्ध औद्योगिक क्षेत्र आएडा ( अब जियाडा ) है उसकी स्थापना श्री बाबू की ही देन है. आज तकनीकी शिक्षा में अगर झारखण्ड की इज्जत तकनीकी शिक्षण संस्थान बी आई टी सिंदरी से होती है तब उसका श्रेय भी श्री बाबू को ही जाता है, लेकिन अफसोस की बात है इन जगहों पर श्री बाबू के स्मरण में न सरकारें कुछ करती हैं, न समाज उसके लिए जगता है. जमशेदपुर में एक संस्थान उनके स्मरण में है तब वह व्यक्ति विशेष और एक समूह के प्रयास से दिखता है. धनबाद में बी आई टी सिंदरी जैसे संस्थान तक में उनको भुला दिया गया है. भारत सेवक समाज, सिंदरी ईकाई के अध्यक्ष अजय कुमार ने एक विज्ञप्ति जारी कर सरकार, बी आई टी संस्थान और आम लोगों का ध्यान बिहार केशरी के प्रति इस उपेक्षात्मक रवैया की ओर आकर्षित करने का प्रयास किया है. उन्होंने कहा कि बी आई टी 75 वर्ष पूरे करने पर प्लैटिनम जुबिली समारोह मनाने जा रहा तो क्यों नहीं संस्थान परिसर में श्री बाबू की कम से कम एक आदमकद प्रतिमा स्थापित करा कर उनका स्मारक बना दे. संस्थान के परिसर में जमीन की कोई कमी नहीं.
उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने देश के विभिन्न हिस्सों में आई.आई.टी. की स्थापना की थी ताकि देश में तकनीकी शिक्षा का विकास हो सके। उस मुहिम में बिहार वंचित रह गया था। तब डॉ. श्री श्रीकृष्ण सिंह की पहल पर आई.आई.टी.के समकक्ष के इस संस्थान की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हुआ था। इस गौरवशाली संस्थान की स्थापना, निर्माण और विकास में बिहार केसरी के अप्रतिम योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।

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