सांसद ढुल्लु महतो भाजपा के लिए भस्मासुर न बनें. सरयू राय का ‘राजनीतिक वध’ करने जैसे शब्द का प्रयोग कर भले ही वह अपनी राजनीतिक समझ को जाहिर कर रहे, लेकिन जमशेदपुर के औद्योगिक स्वरूप और संस्कृति वाले शहर जहाँ जात पात की कभी बात नहीं उठी, ओबीसी समाज को कथित रूप से एकजुट करने की बात कह कर वे काठ के घोड़े पर सवारी कर मनोरंजन करने वाले लखनवी… जैसी पहचान बना गए. उन्हें धनबाद में धन बल और दर्जनों मुकदमों से लदे होकर जो पहचान मिली है, वह भले उन्हें गौरवान्वित कर रही हो और भाजपा ने उन्हें गले लगाकर एक तो करेला दूजे नीम चढ़ा दिया हो, लेकिन जमशेदपुर की जनता उनकी भाषा और विचार को स्वीकार नहीं कर सकती. माननीय सांसद बने ढुल्लु महतो केवल तुम -तबाड़ की भाषा बोलते हैं और बलजोरी कतरास कोयला क्षेत्र में क्या- क्या करते हैं, यह जमाना देख और भुगत रहा है. बौद्धिक देने वाली राजनीतिक पार्टी ने उन्हें अपनाया तो जनता को माननीय का बौद्धिक सुनने की मजबूरी नहीं हो जैसे अगर सरायकेला विधान सभा क्षेत्र से भी उस पार्टी द्वारा अपनाये गए ‘ सिद्धि बुद्धि’ के देवता नाम वाले व्यक्ति को सुनना पड़ता अगर चुनाव में वे भी विजयी हो जाते तब. राजनीतिक दल शुचिता की बात तो करते हैं लेकिन इसके उलट जनता के समक्ष उदाहरण प्रस्तुत करते हैं और मु_ी में बंद मक्खी वाली हालत लोगों की बना देते हैं.
आश्चर्य है माननीय को जमशेदपुर में बगल बैठे स्थानीय ‘दल बन्धुओं’ ने नहीं बताया कि जमशेदपुर सीट सिर्फ ओ बी सी मतदाता के बल पर भाजपा कभी नहीं जीती. अर्थात क्या वे भी अंग्रेजी कहावत ‘कैट इज आउट ऑफ बैग’ की तरह अपना रंग दिखा रहे? भाजपा और सरयू राय में कभी भेद नहीं था. प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी भी कभी उनके लिए वोट मांगने आ चुके हैं. असली मतभेद रघुवर दास और सरयू राय का था जिसका दुष्परिणाम भाजपा ने झारखण्ड में भुगता.जमशेदपुर ही नहीं, देश में प्राय: हर जगह भाजपा के सिर्फ ओ बी सी ही वोटर नहीं हैं. जमशेदपुर की बात की जाय तो सब जानते हैं यहां जात-पात पर कभी वोटिंग नहीं हुई. भाजपा के समर्थक सभी जातियों में हैं. सवर्णों का बड़ा तबका भाजपा का साथ देता है. आज महानगर जिला अध्यक्ष ब्राह्मण हैं. कायस्थ और क्षत्रिय भी रहे. भाजपा के बड़े नेता और महामहिम के प्रिय लोगों में रामबाबू तिवारी ब्राह्मण ही हैं. अनेक भूमिहार उनके विश्वास पात्र हैं. आशय है कि सांसद ढुल्लु महतो ओ बी सी की बात करके बताना क्या चाहते थे? क्या वे यह बताना चाहते थे कि जमशेदपुर ओ बी सी सीट है और भाजपा ओ बी सी पार्टी है ? यह अगर सच होता तब पिछले चुनाव में रघुवर दास चुनाव नहीं हारते. सरयू राय से सांसद के मतभेद और विरोध हैं, यह प्राय: सभी जानते हैं और उसको जाहिर करने का सांसद को हक है, लेकिन जातीय आधार पर सरयू राय के बहाने जाति का विष वमन कर उन्होंने जो राजनीति खेलना चाही,वह भाजपा में सवर्णो को चिढ़ाने ही नहीं आतंक फैलाने जैसा है. उनके साथ प्रेस वार्ता में बैठे स्थानीय भाजपा नेतागण भी शायद ही इस बात के लिए उनकी पीठ थपथपायें. जमशेदपुर के लोगों के बीच जातीय आधार पर उन्होंने लाइन खींचने का जो काम किया है, वह भाजपा के लिए ही नहीं,शहर के सौहाद्र्र के लिए खतरनाक साबित हो सकता है. सांसद की इन विभाजनकरी बातों से जो पहचान मिल रही हो और भाजपा द्वारा गले लगाने से भले उसको झारखण्ड में एक सीट का इजाफा मिल गया हो, लेकिन ढुल्लु महतो और भाजपा को नहीं भूलना चाहिए कि धनबाद में स्व सूर्यदेव सिंह भी कभी तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बेहद प्रिय थे और उन्होंने बी पी सिंहा का वध करा कर जो जाति विद्वेष पैदा किया, उसने वहां लंबे समय तक खून – खराबे का दौर कायम कर दिया और विधि व्यवस्था को बिगाड़ा. आज वहां क्या स्थिति है, यह सांसद भलि- भांति जानते होंगे. आज सूर्यदेव सिंह की जगह अगर ढुल्लु महतो लेना चाहते हों तब जनता को ही इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी. जमशेदपुर पहले से ही गुंडागर्दी और रंगदारी से त्रस्त रहा है. यहाँ की प्रबुद्ध जनता शायद ही फिर वध का खूनी खेल देखना चाहती हो. सांसद को धनबाद का इतिहास भी नहीं भूलना चाहिए. स्व राजू यादव का अंत उन्हें नहीं भूलना चाहिए जिन्होंने लालू यादव द्वारा पीठ ठोकने पर धनबाद में बैक वार्ड -बैक वार्ड खेल शुरू करने की चेष्टा की थी.