आकर्षक माडल बाजार में उपलब्ध
जमशेदपुर26 जुलाई संवाददाता
कोरोना ने भले ही मानवता को बड़ी क्षति पहुंचाई हो, मगर कई ऐसे भी लोग हैं जिन्होंने इस आपदा को अवसर में बदला। कुछ ऐसा ही किया है शहर को दो युवा भाइयों ने अपने शिक्षक पिता के साथ मिलकर। लॉकडाउन में जमशेदपुर आने को विवश इन युवाओं की इंजीनियरिंग की पढ़ाई कुछ इस तरह काम भी आ गई। डिमना रोड मानगो स्थित विजया ग्रीन अर्थ कॉलोनी निवासी शत्रायु मुखर्र्जी और उनके अनुज सिंचन मुखर्र्जी पर कोरोना लॉकडाउन के दौरान गिटार का जुनून कुछ इस तरह सवार हुआ कि उन्होंने गिटार बनाने की ही ठान ली। अपने शिक्षक पिता चंदन मुखर्र्जी के साथ मिलकर करीब 2 साल की कड़ी मशक्कत के बाद उनके द्वारा तैयार किए गए गिटार अब बाजार में उपलब्ध हंै। आज साकची स्थित एक होटल में अपनी एवरलॉग म्यूजिक कंपनी के बैनर तले गिटार की लॉन्चिंग की गई। शहर के प्रतिष्ठित लोयोला स्कूल से पढ़े शत्रायु मुखर्र्जी और कार्मल स्कूल, सोनारी के विद्यार्थी रहे सिंचन मुखर्जी के इस लगन में उनके पिता चंदन मुखर्र्जी और शिक्षिका माता मुनमुन मुखर्जी का भी भरपूर सहयोग मिला। बालिगुमा में इन्होंने एक वर्कशॉप खोला है और वही गिटार तैयार कर अब वह बाजार में उपलब्ध करा रहे हैं।
आज लॉन्चिंग के समय शत्रायु मुखर्र्जी ने बताया कि रॉ मटेरियल के रूप में लकड़ी वे जमशेदपुर से ही ले रहे हैं जबकि म्यूजिकल इंस्ट्रुमेंट के कई उपकरण कोरिया, चीन या अमेरिका से आयात कर रहे हैं। विभिन्न कंपनियों में सेवा देने के बाद अब इन्होंन कुछ अपना करने और समाज को कुछ अनूठा प्रदान करने की ठानी। शत्रायु के अनुज सिंचन भट्टाचार्य ऑक्सफोर्ड में मास्टर्स डिग्री की पढाई के लिये गए हुए हैं मगर जब उन्हें अपने भाई और पिता के इस नए वेंचर के बारे में पता चला तो वह भी खुद को नहीं रोक पाए और यहां शामिल होने के लिये आ गये।
धनबाद के प्रतिष्ठित डिनोली स्कूल में सेवा दे चुके चंदन मुखर्र्जी बताते हैं कि जब उनके बेटों ने करीब दो साल पहले गिटार बनाने की बात कही तो उन्हें अटपटा सा लगा।झारखंड में गिटार बनाने की कंपनी भी नहीं है। इसका बाजार कैसा होगा, ये सारे सवाल थे मगर फिर वे तैयार हो गए। सामान्य तौर पर अभिभावक सरल मार्ग अपनाते हैं मगर चंदन मुखर्जी और उनकी पत्नी मुनमुन मुखर्जी जो कार्मल स्कूल सोनरी में शिक्षिका है, नें अपने बेटों का साथ दिया।
चंदन मुखर्जी मुस्कुराते हुए कहते हैं कि गिटार से दूर-दूर तक उनका कोई नाता नहीं था। मगर कलम थामने वाले हाथ अब गिटार बना रहे हैं। पिछले 2 साल में उन्होंने गिटार बताना बनाना सीख लिया। शुरु में काफी परेशानी हुए। गिटार बनाने के लिये वे बिल्कुल देसी तरीका अपनाते हैं। लकड़ी चिराई से लेकर सारा काम देसी तरीके और देसी औजारों से करते हैं। उन्हें लगा नहीं था कि कलम पकडऩे वाले हाथ कभी गिटार भी तैयार कर पायेंगे लेकिन सतत लगन से यह संभव हो गया।
शत्रायु का कहना है कि वह ऐसे प्रोडक्ट लेकर लोगों के बीच आ रहे हैं जो उन्हें आकर्षित करें। इनकी कीमत 3000रुपये से शुरू होती है और अलग-अलग किश्म के गिटार की कीमत 5000,15000 रु से 20 हजार तक है। अलग अलग शेप और माडल जैसे कॉमेट,द ऑरियन,द ओनेक्स,द आब्सिडियन और क्लासिक अभी आकर्षक रंगों में उपलब्ध हैं। उनके द्वारा तैयार रंग-बिरंगे गिटार ग्राहकों को आकर्षित भी कर रहे हैं ।आज लॉन्चिंग के समय ही उनके पहले ग्राहक वहां मौजूद थे। इन युवाओं और उनके पिता, माता द्वारा बनाई गई यह कंपनी स्र्टाअप इंडिया और मेक इन इंडिया का एक बड़ा उदाहरण है।