कर्मचारी भविष्य निधि संगठन की इपीएफओ -95 योजना के दायरे में आने वाले कर्मचारियों और पेंशनभोगियों की न्यूनतम पेंशन 7,500 रुपये मासिक किये जाने की मांग काफी पुरानी है। देश के विकास में अपने स्तर से योगदान देने वालों को अभी न्यूनतम 1000 रुपये की राशि पेंशन के तौर पर मिलती है। जो भारत अब दुनियां की तीसरी सबसे बड़ी ताकत बनने जा रहा है।जहां आर्थिक विकास की इतनी बातें, दावे किये जा रहे हैं, वहां पेंशन के तौर पर मिलने वाली 1000 की राशि सारे दावे के मुंह चिढाती प्रतीत होती है। फेमिली सिंदरी के संयोजक डी एन सिंह एवं वरिष्ठ सदस्य डी एन श्रीवास्तव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर देशभर के 75 लाख ईपीएफओ पेंशनर्स की दयनीय स्थिति की ओर ध्यान आकृष्ट कराया है। उन्होंने इपीएफओ 95 पेंशनरों को मिलने वाली 1000 रुपये की राशि को बढाकर 7,500रुपये करने एवं साथ में डीए जोडऩे की मांग की है। पेंशनभोगी की यह काफी पुरानी और जायज मांग है लेकिन किसी भी सरकार की ओर से इसपर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। लगातार इसे लेकर धरना प्रदर्शन कियेजाते रहे हैं. संसद में भी अलग अलग स्तर से आवाजें उठाई जाती रही हैं लेकिन बात आगे नहीं बढ पाती। दिल्ली में पिछले सात दिसंबर महीने में इपीएफओ -95 राष्ट्रीय संघर्ष समिति (एनएसी) ने अपनी मांगों के समर्थन में विराट रैली की और यहां हजारों की संख्या में देश के अलग अलग हिस्सों से पेंशनर जुटे थे। समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष कमांडर अशोक राऊत ने ईपीएस-95 पेंशनर्स पिछले 7 वर्षों से न्यूनतम पेंशन 7500 रुपये महीना, महंगाई भत्ता, पति-पत्नी को मुफ्त चिकित्सा सुविधा और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार सभी को समान रूप से हायर पेंशन की मांग को उठाया था। विभिन्न राजनीतिक दलों से नेताओं ने इस रैली में आकर अपना समर्थन भी दिया। आश्वासन भी दिये गये और उसके बाद इनका धरना समाप्त कराया गया। लेकिन छह माह से अधिक समय बीतने के बाद भी मामला जहां का जहां अंटका हुआ है। पेंशनभोगी महंगाई भत्ते के साथ मूल पेंशन 7,500 रुपये मासिक करने, पेंशनभोगियों के पति या पत्नी को मुफ्त स्वास्थ्य सुविधाएं देने समेत अन्य मांग कर रहे हैं। फैमिली पेंशन सिंदरी की ओर से जो मांग की गई है, वैसी मांगें अलग अलग स्तर से सरकार से की जाती रही है। कोल इंडिया रिटायर्ड आफिसर्स एसोसिएशन की ओर से भी इस तरह की मांग की जा चुकी है। विडंबना यह है कि इनती राशि तो केंद्र सरकार वृद्धा पेंशन या अन्य मदों में लोगों को प्रदान करती है। हाल की कांग्रेस की ओर से चुनाव केसमय साढे आठ हजाररुपये प्रतिमाह दिये जाने का वादा कियागया था। राजनीतिक दलों की ओर से और कई सरकारों की ओर से ऐसी रेवडिय़ां तो बांटी जाती हैं, या उसे लेकर आश्वासन दिया जाता है लेकिन जिन लोगों ने करीब 30 साल तक देश की सेवा की उनको केवल एक हजार की न्यूनयम राशि पेंशन के तौर पर दी जाती है। कोरोना के बाद से इन लोगों को रेलवे में मिलने वाली रियायत भी बंद है। अब केंद्र सरकार को वरिष्ठ नागरिकों को दी जाने वाली रियायत भारी पड़ रही है, जबकि दूसरीओर ऐसी अनगिनत रियायत और पैकेज अन्य मदों में प्रदान किये जा रहे हैं। पेंशनरों को वोट बैंक के तौर पर सरकार नहीं देखती। इसी कारण उनकी मांगों को रद्दी की टोकरी में डाल दिया जाता रहा है। सरकारें तुरंत प्रति व्यक्ति आय को बढोतरी का हवाला देकर अपनी पीठ थपथपाती है। सांसदों, विधायकों को हर टर्म के लिये पेंशन की सुविधा मिलती है लेकिन ऐसी कोई सुविधा करीब 75 लाख इपीएफओ पेंशनरों को नहीं मिल पा रही।