नई दिल्ली ,8 दिसंबर : नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के 2047 विजन को ध्यान में रखते हुए, भारत के एक नए मेगा हाईवे निर्माण कार्यक्रम को शुरू करने की संभावना है। यह कार्यक्रम भारतमाला परियोजना की जगह लेगा और देश भर में कनेक्टिविटी को बेहतर बनाने का लक्ष्य रखता है। प्रस्तावित कार्यक्रम राष्ट्रीय महत्व की सडक़ों की पहचान के लिए स्पष्ट मानदंड स्थापित करेगा। साथ ही बुनियादी ढांचे के विकास में तेजी लाने और अनुबंध विवादों और मुकदमेबाजी को कम करने के लिए मॉडल रियायत करार में बदलाव लाएगा।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया है कि भविष्य की परियोजनाओं को इस नई योजना के तहत दिया जाएगा, जो भारतमाला से अलग होगी।
इस नए दृष्टिकोण के अलावा, सडक़ निर्माण अनुबंधों से जुड़े अनुबंध विवादों और मुकदमेबाजी को कम करने के लिए मॉडल रियायत करार में संशोधन किए जा रहे हैं। पिछले अदालती मामलों से सबक लिया गया है जहां सरकार को ठेकेदारों के साथ कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है। ऐसे प्रावधानों को ठीक किया जाएगा जो सरकार के लिए प्रतिकूल पाए गए और अनावश्यक मुकदमेबाजी का कारण बने। रिपोर्ट में एक अन्य अधिकारी के हवाले से कहा गया है कि इसका मकसद बेहतर परियोजना कार्यान्वयन और उच्च गुणवत्ता वाली सडक़ों के निर्माण को सुनिश्चित करने के लिए कानून को मजबूत करना है।
एक प्रस्तावित योजना के मुताबिक, 50 लाख रुपये तक के दावों वाले विवादों के लिए मध्यस्थता जरूरी नहीं होगी। ज्यादा राशि वाले मामलों में न तो सरकार और न ही ठेकेदार किसी पूर्व-संदर्भ या लंबित ब्याज के हकदार होंगे। यह भी सिफारिश की गई है कि रियायत अवधि के दौरान बीमा, जो परियोजना की नाकामियों के लिए क्षतिपूर्ति करता है, में संयुक्त लाभार्थियों के रूप में सरकारी एजेंसियों को शामिल किया जाना चाहिए।
अक्तूबर 2017 में भारतमाला परियोजना के लॉन्च के बाद से, आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, भारत सालाना 10,000 किलोमीटर से ज्यादा राष्ट्रीय राजमार्गों का निर्माण कर रहा है। इस योजना का लक्ष्य 74,942 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्गों का निर्माण करना था। जिसमें पहले चरण में सितंबर 2022 तक 34,800 किलोमीटर के विकास को मंजूरी दी गई थी। जिसमें 5.35 लाख करोड़ रुपये का निवेश शामिल था।
भारतमाला के तहत अब तक 27,384 किलोमीटर हाईवे के कॉन्ट्रैक्ट दिए जा चुके हैं और निर्मित लंबाई इस समय 15,045 किलोमीटर है। हालांकि, इस योजना से जुड़े बढ़ते खर्च को लेकर चिंता जताई गई है।
भविष्य में, यह उम्मीद की जाती है कि इस वित्तीय वर्ष में दिए गए शेष नेशनल हाईवे के कॉन्ट्रैक्ट बिल्ड ऑपरेट ट्रांसफर (बीओटी) मॉडल का पालन करेंगे। जिसमें सरकार से न्यूनतम फाइनेंशियल आउटफ्लो (वित्तीय बहिर्वाह) की जरूरत होती है। क्रिसिल लिमिटेड में ट्रांसपोर्ट लॉजिस्टिक्स एंड मोबिलिटी के सीनियर डायरेक्टर, जगतनारायण पद्मनाभन के मुताबिक, लगभग 11 खंड, जिनका कुल मूल्य 22,000 करोड़ रुपये है, को इस मॉडल के तहत बोलियों के लिए रखा गया है।
इस क्षेत्र के विशेषज्ञों का मानना है कि ये बिल्ड ऑपरेट ट्रांसफर (बीओटी) परियोजनाएं सरकार को अपना लक्ष्य हासिल करने और राष्ट्रीय राजमार्गों के निर्माण में तेजी लाने में मदद करेंगी।