सरायकेला खरसावां जिला जनसंपर्क विभाग द्वारा खरसावां में ग्रामीण पत्रकारों की समस्याएं निदान एवं समाधान विषय पर आयोजित संगोष्ठी के दौरान यह बात उभर कर सामने आई कि किन विकट स्थितियों में ग्रामीण क्षेत्र के पत्रकारों को अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना पड़ता है। लोकतंत्र के 4 स्तंभों में पत्रकारिता ही ऐसी है जिसे कोई संवैधानिक, सामाजिक सुरक्षा नहीं है। बावजूद इसके वह अपने कर्तव्यों का निर्वहन करता है। समय के साथ साथ पत्रकारिता को कमजोर करने की कोशिश बढ़ती ही जा रही है। यहां ग्रामीण पत्रकारों की समस्याओं एवं उनके साथ होने वाली परेशानियों की चर्चा की जा रही है । राष्ट्रीय स्तर के पत्रकारों या प्रदेश मुख्यालयों में काम करने वाले पत्रकारों को सुविधायें, सुरक्षा मिल भी जाती है। वहां उनकी संख्या अधिक होती है इसलिए उन्हें रोजमर्रा के काम करने में वैसी परेशानियां नहीं होती जैसी परेशानियों का सामना ग्रामीण क्षेत्रों के पत्रकारों को करना पड़ता है। खरसावां में आयोजित कार्यक्रम में उपस्थित ग्रामीण पत्रकारों ने जिन समस्याओं का जिक्र किया, उसे दूर बैठे लोग सोच भी नहीं सकते। उनको जाति के आधार पर भी निशाने पर लिया जाता है। यदि वे सडक़ -बिजली की दुर्दशा, राशन वितरण में होने वाले परेशानियों या पुलिस प्रशासन के अत्याचार या ठेकेदार ,राजनेताओं के भ्रष्टाचार के विषयों को उजागर करते हैं तो उनकी जान पर बन आती है। उन्हें तरह-तरह से प्रताड़ित किया जाता है, डराया धमकाया जाता है।उनकी हत्या तक हो जाती है। कोल्हान की ही बात करें तो यहां कई पत्रकारों की हत्या भी की जा चुकी है। दुख इस बात का है कि ऐसे मामलों पर वैसा हंगामा नहीं होता जो राष्ट्रीय स्तर के पत्रकारों के मामले में होता है। वहां कुछ इधर उधर होने पर भी आसमान सर पर उठा लिया जाता है। गौरी लंकेश का उदाहरण सामने है। गौरी लंकेश की हत्या का विरोध किया ही जाना चाहिए लेकिन केवल गौरी लंकेश की हत्या का विरोध करने वाले तथाकथित बड़े पत्रकारो का ध्यान कोल्हान जैसे क्षेत्रों में काम करने वाले ग्रामीण पत्रकारों पर नहीं जाता।
सरायकेला ,कुचाई, खरसावां के पत्रकारों का यही दर्द इस कार्यक्रम के दौरान उभरकर सामने आया। उनकी पीड़ा यह है कि जब वह पत्रकारों की बड़ी जमात में शामिल होते हैं तो उन्हें हेय दृष्टि से देखा जाता है । किसी का ध्यान उस ओर नहीं जाता कि वे किस विकट, विषम परिस्थितियों में काम करते हैं । यह माना जाता है कि आज पत्रकारिता की साख लघु पत्र पत्रिकाओं तथा छोटे शहरों एवं ग्रामीण अंचल में पूरी तन्मयता से काम करने वाले पत्रकारों की वजह से बची हुई है। आज भी उसी जुनून के साथ तमाम असुविधाओं, अभाव के बावजूद ऐसे पत्रकार अपनी सेवा भाव को समाज के प्रति समर्पित किए रहते हैं । किसी तरह की सामाजिक सुरक्षा या सरकार या व्यवस्था का संरक्षण नहीं मिलने के बाद भी लगातार क्षेत्र की समस्याओं को उजागर कर व्यवस्था की आंखें खोलने का प्रयास करते हैं। पत्रकारों ने यह भी कहा कि टूटी सडक़ का जिक्र करने पर अधिकारी नाराज हो जाते हैं उनको लगता है कि पत्रकार उसके खिलाफ लिख रहा है जबकि हकीकत है कि आज दूर-दूर के ग्रामीण इलाकों में यदि आधारभूत सुविधाएं पहुंच रही है तो उसमें ऐसे पत्रकारों का बहुत बड़ा योगदान है।