सुप्रीम कोर्ट ने 4-1 से नोटबंदी को सही ठहराया,1 जज ने क्यों उठाए सरकार के फैसले पर सवाल?

New delhi 2 january सुप्रीम कोर्ट ने 8 नवंबर 2016 में हुई नोटबंदी को सही ठहराया है. जस्टिस अब्दुल नज़ीर की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने 4:1 के बहुमत से माना है कि फैसला लेने की प्रकिया में कोई कानूनी खामी नहीं है. जस्टिस बी आर गवई ने अपना, जस्टिस अब्दुल नज़ीर, जस्टिस एएस बोपन्ना ,जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन का फैसला पढ़ा.
जस्टिस गवई ने बहुमत का फैसला पढ़ते हुए कहा कि आर्थिक नीति के मामलों में कोर्ट बेहद सीमित दखल दे सकता है. कोर्ट, एक्सपर्ट की राय की जगह नहीं ले सकता. जो रिकॉर्ड कोर्ट में पेश किया गया है, उसके मुताबिक फैसला लेने की प्रकिया में कोई खामी नहीं थी.
‘6 महीने से चला रहा था RBI और सरकार के बीच विमर्श’
जस्टिस गवई ने चार जजों का फैसला पढ़ते हुए कहा कि आठ नवंबर 2016 को ये फैसला लेने से करीब 6 महीने पहले ही सरकार और आरबीआई के बीच इसको लेकर विचार विमर्श चल रहा था. यानि कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की इस दलील को खारिज कर दिया कि नोटबंदी का फैसला बिना इसके परिणामों पर विचार किए बगैर एकाएक लिया गया.
जस्टिस गवई ने कहा कि नोटबंदी का मकसद ब्लैक मनी, आतंकी फंडिंग पर रोक लगाना था और नोटबंदी के ये निर्धारित लक्ष्य हासिल हुए हैं या नहीं, ये अब अप्रासंगिक है.
‘एक्ट के मुताबिक सारे नोट वापस लेने का अधिकार’
जस्टिस गवई ने ये भी कहा कि आरबीआई एक्ट 1934 के सेक्शन 26 (2) के तहत सरकार को सिर्फ कुछ विशेष नोट की सीरीज ही नहीं, बल्कि सारी सीरीज के नोटों को वापस लेने का अधिकार है.
याचिकाकर्ताओं की दलील थी कि इस एक्ट के तहत सिर्फ कुछ ख़ास सीरीज के नोट को ही वापस लिया जा सकता है, सभी नोटों को नहीं.
‘नोट बदलने के लिए पर्याप्त वक़्त दिया गया’
संविधान पीठ ने बहुमत से याचिकाकर्ताओं की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि 500 और 1000 के पुराने नोटों को नए से बदलने के लिए पर्याप्त वक़्त नहीं दिया गया. जस्टिस गवई ने कहा कि 1978 में सिर्फ तीन का वक़्त दिया गया था, जबकि 2016 में 52 दिन दिए गए. आरबीआई के पास इस समयसीमा को बढ़ाने का कोई स्वतंत्र अधिकार नहीं है.
सरकार ने महज 4 घंटे में पुराने नोट अवैध किए
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर 2016 को देश के नाम संदेश में आधी रात से 500 और 1000 रुपए के पुराने नोट बंद करने का ऐलान किया था। यानी प्रधानमंत्री की घोषणा के 4 घंटे बाद ही ये पुराने नोट चलन से बाहर हो गए थे।

विरोध में दलील- कानून का गलत इस्तेमाल हुआ
सरकार की तरफ से आनन-फानन में सुनाए गए इस फैसले के खिलाफ देश के अलग-अलग हाईकोर्ट्स में कुल 58 याचिकाएं दाखिल हुई थीं। इन याचिकाओं में कहा गया था कि सरकार ने RBI कानून 1934 की धारा 26(2) का इस्तेमाल करने में गलती की है। सुप्रीम कोर्ट ने सभी की सुनवाई एक साथ करने का आदेश दिया।

सरकार को करेंसी रद्द करने का अधिकार नहीं
याचिकाकर्ताओं की दलील थी कि भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम की धारा 26(2) किसी विशेष मूल्यवर्ग के करेंसी नोटों को पूरी तरह से रद्द करने के लिए सरकार को अधिकृत नहीं करती है। यह केंद्र को एक खास सीरीज के करेंसी नोटों को रद्द करने का अधिकार देती है, न कि संपूर्ण करेंसी नोटों को।

सरकार खुद फैसला नहीं ले सकती, RBI की सलाह जरूरी
मामले की सुनवाई के दौरान पूर्व वित्त मंत्री और कांग्रेस नेता पी चिदम्बरम ने दलील दी थी कि केंद्र सरकार खुद ऐसा कोई फैसला नहीं ले सकती और ऐसा केवल RBI के केंद्रीय बोर्ड की सिफारिशों पर किया जा सकता है।
सरकार और RBI के बीच नोटबंदी को लेकर चर्चा को लेकर सवाल उठे, लेकिन रिजर्व बैंक ने साफ किया कि पूरी प्रक्रिया नियमों के मुताबिक हुई है।
केंद्र का जवाब- RBI की सलाह पर लिया फैसला
इस मामले में केंद्र सरकार ने कहा था कि नोटबंदी का फैसला रिजर्व बैंक के केंद्रीय निदेशक मंडल की सिफारिश पर ही लिया गया था। अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने कहा था- नोटबंदी सरकार का बिना सोचा-समझा कदम नहीं था, बल्कि आर्थिक नीति का हिस्सा था। उन्होंने कहा था कि RBI और केंद्र सरकार एक-दूसरे के साथ सलाह-मशविरा करते हुए काम करते हैं।

RBI ने कहा- कानून के मुताबिक हुई नोटबंदी
इधर, RBI ने भी कोर्ट को बताया था कि सेंट्रल बोर्ड की मीटिंग के दौरान RBI जनरल रेगुलेशंस, 1949 की कोरम से जुड़ी शर्तों का पालन किया गया था। इस मीटिंग में RBI गवर्नर के साथ-साथ दो डिप्टी गवर्नर और RBI एक्ट के तहत नॉमिनेटेड पांच डायरेक्टर शामिल हुए थे।

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