7000 करोड़ रुपए में टाटा कंपनी के साथ हुई डील।
कंपनी के मालिक रमेश चौहान ने कहा टाटा पर भरोसा है।
नई दिल्ली: पैकेज्ड वाटर कंपनी बिसलेरी बिकने जा रही है। 7000 करोड़ रुपए में भारत की सबसे पॉपुलर पैकेज्ड वाटर कंपनी बिसलेरी को टाटा समूह खरीदने वाली है। इस कंपनी को खरीदने की कतार में नेस्ले और रिलायंस जैसी कंपनियां भी थीं, लेकिन कंपनी के मालिक रमेश चौहान ने अपनी कंपनी टाटा के हाथों में सौंपने का फैसला किया। जिस कंपनी को साल 1969 में उन्होंने 4 लाख रुपए में खरीदा था, उसे बेचने का फैसला आसान नहीं था। इंटरव्यू के दौरान 82 साल के रमेश चौहान भावुक हो गए। उन्होंने कहा कि जिस कंपनी को मैंने बच्चे की तरह पाला उसे मरने नहीं दे सकता।
टाटा को क्यों बेचना चाहते हैं बिसलेरी
Bisleri को खरीदने के लिए रिलायंस और नेस्ले जैस कंपनियां रेस में थी, लेकिन बिसलेरी ने इसे टाटा कौ सौंपने का फैसला किया। इस फैसले के पीछे की जो वजह उन्होंने बताई वो बेहद भावुक कर लेने वाली है। उन्होंने कहा कि ये फैसला उनके लिए आसान नहीं है, लेकिन उनके पास कोई उत्तराधिकारी नहीं है, जो उनकी इस कंपनी को आगे ले जा सके। उनकी बेटी जयंती इस कारोबार में खास दिलचस्पी नहीं रखती हैं। रमेश चौहान ने कहा कि वो इस कंपनी को मरने नहीं देना चाहते है, इसलिए बेचने का फैसला लेना पड़ा। Tata के हाथों अपनी कंपनी सौंपने के बारे में उन्होंने कहा कि वो टाटा को जानते हैं, उनके काम और ईमारदारी से वो परिचित हैं। उन्होंने कहा कि मुझे टाटा कल्चर और जीवन को लेकर उनके मूल्यों का सम्मान पसंद हैं।
उन्हें भरोसा है कि देश की पुरानी कंपनियों में से एक टाटा उनकी इस कंपनी को संभाल कर रखेगी। 82 साल के चौहान ने कहा कि मेरी कंपनी को खरीदने के लिए कई बड़ी कंपनियां आक्रमक रूप से तैयार थी, लेकिन टाटा के भरोसे के कारण कंपनी उन्हें सौंपने का फैसला किया। उन्होंने कहा कि इस डील को लेकर पिछले दो सालों में कई बार टाटा समूह के चैयरमैन एन चंद्रशेखरन और टाटा कंज्यूमर के सीईओ सुनिल डिसूजा से मिला, जिसके बाद मुझे भरोसा हो गया कि ये लोग काफी अच्छे हैं और मेरी कंपनी का अच्छे से बल्कि मुझसे बेहतर तरीके से ख्याल रखेंगे।
पैसों का क्या करुंगा, टाटा पर है भरोसा
रमेश चौहान अपने कारोबार के बिकने से बेहद भावुक हैं। उन्होंने कहा कि मैंने ये फैसला पैसों के लिए नहीं लिया है। मैं कंपनी के भविष्य को लेकर चिंतित था। कंपनी को संभालने वाला कोई नहीं है, जो इसका ख्याल उस तरह से रखे जैसे मैंने रखा है। मैंने अपनी जिंदगी लगा दी है इस कंपनी को खड़ा करने में। जब बेटी की दिलचस्पी इस कारोबार को लेकर नहीं दिखी तो मुझे ये फैसला लेना पड़ा। मुझे पैसे नहीं बल्कि वैसे ही जुनूनी लोगों की तलाश थी, जो मेरी इस कंपनी को आगे ले जा सके।