“आसछे बछर आबार हबे” जयध्वनि से माता दुर्गा को दी गई विदाई

दशहरा के सुबह सिंदुर खेल पति के लंबी उम्र के लिए की जाती है : मधुश्री

चांडिल : शारदीय नवरात्रि के विजया दशमी के पवित्र दिन में सुहागन स्त्रियों के बीच सिंदूर खेल का रिवाज है। इस पावन अवसर पर चांडिल बाजार, चांडिल स्टेशन, चिलगु, रघुनाथपुर आदि स्थानों के दुर्गा पूजा पंडालों में सुहागन महिलाओं द्वारा “सिंदूर खेल” का आयोजन किया गया। वेद पुराणों के अनुसार ऐसी मान्यता है कि माता शेरावाली साल में एकबार अपने पिता के निवास स्थान कैलाश पर्वत आती है। मां दुर्गा अपने मायके में पांच दिन रुकती है, जिसको दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। मां भवानी पिता के घर से विदा होकर जब ससुराल जाती है तब सुहागन स्त्रियों द्वारा माता की मांग भरी जाती है और मां को पान व मिठाई खिलाई जाती है, उसके बाद अश्रुपूरित नेत्रों से मां की विदाई की जाती है। मां सर्वमंत्रमयी दुर्गा के विदाई समारोह में युवती व महिलाओं ने जमकर नृत्य किया।

सिंदूर खेल के महत्व के संबंध में सरायकेला खरसावां के जिला परिषद उपाधक्ष श्रीमती मधुश्री महतो ने कहा कि हिंदू धर्म शास्त्र के अनुसार आदिशक्ति महामाया मां दुर्गा के त्योहार नवरात्रि के अंतिम दिन विजयादशमी पर सिंदूर खेला उत्सव मनाया जाता है। इस दिन सुहागन महिलाएं मां दुर्गा को सिंदूर अर्पित करती हैं। माता की विदाई के उत्सव में महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं और मां दुर्गा की वंदना करती हैं। इसके साथ महिलाएं मां दुर्गा से अपने पति की लंबी उम्र और परिवार की सुख-समृद्धि की प्रार्थना करती हैं। मधुश्री ने कहा कि भारत के हर राज्य में दुर्गा पूजा और नवरात्रि के त्योहार को अपने अलग अलग रंग-ढंग से मनाने की परंपरा है। दुर्गा पूजा का विशेष उत्साह पश्चिम बंगाल में देखने को मिलता है। दुर्गा पूजा के विजया दशमी तिथि में सिंदूर खेला अपने आप में अनोखा परंपरा है। मधुश्री ने कहा कि दुर्गा पूजा में ‘सिंदूर खेला’ अपने आप में अनोखा उत्सव है, जो माता की विदाई के समय मनाया जाता है।

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