नवमी तिथि में मां सिद्धिदात्री के पूजन से होती है सिद्धि प्राप्ति : राकेश वर्मा
चांडिल : शारदीय नवरात्रि की शुभ नवमी को प्रात: मां दुर्गा के सिद्धिदात्री रुप के पूजन में भक्तजन लीन हुए। शाम से विभिन्न पूजा पंडालों में बंगला यात्रा, रंगारंग नृत्य गीत आदि सांस्कृतिक कार्यक्रमों से पूरे चांडिल अनुमंडल क्षेत्र झूम उठा। इस अवसर पर श्री श्री 108 सार्वजनिक दुर्गा पूजा समिति नीमडीह अंचल रघुनाथपुर द्वारा रंगारंग नृत्य के साथ दुर्गा पूजा में मेला और बंगला यात्रा का आयोजन किया गया। सांस्कृतिक कार्यक्रम का आनंद लेने के लिए रघुनाथपुर, नीमडीह, दुमदुमी, रामनगर आदि स्थानों से संस्कृतिप्रेमी उपाथित हुए। सार्वजनिक दुर्गा पूजा कमिटी आदरडीह द्वारा महानवामी के रात कोलकाता के कलाकारों द्वारा बंगला यात्रा “सतीर देहत्याग” का मंचन किया गया। यात्रा देखने के लिए आदरडीह, गौरडीह, गौरीडीह, बनडीह, रांगाडीह, बिशारडीह, पश्चिम बंगाल से दर्शक उपस्थित हुए।
महानवामी पूजन के महत्व के संबंध में सेवा ही संकल्प के संस्थापक सह समाजसेवी राकेश वर्मा ने कहा कि हिंदू धर्म शास्त्रों और सनातन संस्कृति में नवरात्रि का विशेष महत्व है। जिसमे मां दुर्गा के सिद्धिदात्री रुप को भक्तों द्वारा भक्ति में से पूजन की जाती है। वैसे तो साल में 4 बार नवरात्रि पर्व आते हैं। जिनमें दो गुप्त नवरात्रि और दो प्रत्यक्ष नवरात्रि होती हैं। लेकिन शारदीय नवरात्रि की हमारे शास्त्रों में विशेष महत्व बताई गई है। इन 9 दिनों के दौरान देवी दुर्गा के अलग-अलग नौ रूपों की पूजा की जाती है। शारदीय नवरात्रि के दौरान महाअष्टमी के साथ-साथ महानवमी तिथि का विशेष महत्व माना जाता है। राकेश वर्मा ने कहा कि महानवमी को मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है और ऐसा माना जाता है कि जो भी भक्त पूरे श्रद्धा भाव से देवी दुर्गा के इस रूप की उपासना करते हैं, वह सारी सिद्धियों को प्राप्त करते हैं। हिंदू धर्म में मां सिद्धिदात्री को भय और रोग से मुक्त करने वाली देवी के रूप में जाना जाता है। माना जाता है कि मां सिद्धिदात्री की कृपा जिस व्यक्ति पर होती है, उसके सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि मान्यता है कि एक महिषासुर नाम का राक्षस था, जिसने चारों तरफ हाहाकार मचा रखा था। उसके भय से सभी देवता परेशान थे। उसके वध के लिए देवी आदिशक्ति ने दुर्गा का रूप धारण किया और 8 दिनों तक महिषासुर राक्षस से युद्ध करने के बाद 9वें दिन उसको मार गिराया। जिस दिन मां ने इस अत्याचारी राक्षस का वध किया, उस दिन को महानवमी के नाम से जाना जाने लगा। महानवमी के दिन महास्नान और षोडशोपचार पूजा करने का रिवाज है। ये पूजा अष्टमी की शाम ढलने के बाद की जाती है। दुर्गा बलिदान की पूजा नवमी के दिन सुबह की जाती है। नवमी के दिन हवन करना जरूरी माना जाता है क्योंकि इस दिन नवरात्रि का समापन हो जाता है। महानवमी को लोग नौ कन्याओं को भोजन कराकर अपना व्रत खोलते हैं। मां की इस रूप में उपासना करने से सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं। इस दिन कन्या पूजन के लिए 2 साल से 10 साल तक की कन्याओं का पूजन करने का रिवाज भी है।