भारत को त्योहारों का देश यूं ही नहीं कहा जाता। यूनेस्को ने दुर्गापूजा को सांस्कृतिक धरोहर का दर्जा प्रदान कर भारत के त्योहार -उत्सवों के महत्व को दर्शाया है। दुर्गापूजा एक ऐसा त्योहार है जिसका इंतजार देश की बड़ी आबादी साल भर करती है। इसका अनुमान मां दुर्गा की प्रतिमाओं के विसर्जन के दौरान श्रद्धालुओं की आंखों से उमडऩे वाले आंसुओं से लगाया जा सकता है। नदी घाटो पर प्रतिमाओं के विसर्जन के दौरान बच्चियां, महिलाओं को फूट-फूट कर रोते हर साल देखा जाता है। किस भाव से मां दुर्गा को विदाई दी जाती है यह उसका बड़ा प्रमाण है। एक सप्ताह तक चलने वाले उत्सव के बाद जब विसर्जन की घड़ी आती है तो यह सोचकर ही श्रद्धालुओं का दिल बैठ जाता है कि अब कल से क्या होगा?
पूर्वी भारत में यह उत्सव बहुत ही उल्लास के वातावरण में धूमधाम से मनाया जाता है। पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखण्ड, ओडि़सा, असम आदि प्रदेशों में इस पूजा महोत्सव की भव्यता देखते ही बनती है। भव्य पंडाल, वहां लगने वाले मेला, आकर्षक प्रतिमायें हर किसी को आकर्षित करती हैं। पितृपक्ष के समापन के साथ ही अश्विन माह की अमावष्या की सुबह महाल्या हर कोई सुनना चाहता है। वह एक ऐसा पाठ है जो हर सुनने वाले को रोमांचित कर देता है। यह माहौल स्पष्ट तौर पर महाल्या के साथ बन जाता है कि देवी का आगमन हो चुका है। फिर बजने वाली ढाकी हर किसी को थिरकने पर विवश कर देती है।
इस महोत्सव का आर्थिक महत्व भी बहुत है। देश में सारी कंपनियां, संस्थान बोनस इसी दौरान अपने कर्मियों को प्रदान करते है। बाजारों में आफर की धूम रहती है। हर कोई खरीददारी में व्यस्त हो जाता है। छोटे कारोबार करने वालों से लेकर बड़े-बड़े कारोबारियों तक की नजर पूजा बाजार पर टिकी होती है। कई ऐसे छोटे मोटे कारोबारी है जिनकी साल भर की कमाई इसी पूजा पर टिकी होती है। जो जितने में है उतने में ही इस महोत्सव का भरपूर आनंद उठाने में लगा रहता है। चार-पांच दिनों तक बंगाल, झारखण्ड, ओडि़सा जैसे प्रदेशों में खास तौर पर सब कुछ थम जाता है।
यूनेस्को ने इन तमाम बातो को देखते हुए ही दुर्गा पूजा को यह दर्जा प्रदान किया है। अब तो विदेशों में भी दुर्गापूजा की धूम देखने को मिलने लगी है। शक्ति की देवी की अराधना का यह पर्व सुख समृद्धि प्रदान करने वाला है और यह इसके उल्लास में साफ नजर आता है।