‘किसी की तमन्ना है तो किसी की उम्मीदें जुड़ी है मेरी सफलता के लिए, पहुंचने के लिए मुकाम की राह पर जो मुड़कर देखा मैंने तो मुझसे आगे निकलने के लिए दुनिया तमाम खड़ी है’. अब दुनिया में आगे बढ़ने के उद्देश्य से अंशु झा संघर्ष की राह पर चलकर ही गीतकार व गायिकी के क्षेत्र में सफल होना चाहती है. वे स्वयं हिंदी में धार्मिक व देशभक्ति का गीत लिखती हैं और अपने ही स्वर में गाती भी है, आगे चलकर वे सभी प्रकार के गीत लिखना व गाना चाहती है. अंशु झा मूलतः बिहार के मोतिहारी जिला अंतर्गत बापूधाम निवासी हैं. वर्तमान समय में वे फिल्म नगरी मुंबई के कांदीवली में अपने परिजनों के साथ रहती है. पढ़ाई के साथ साथ वे गीतकार व गायिकी के क्षेत्र में कदम रखा है. अंशु का बचपन से ही लेखिका बनने की सपना था. वे कहती है कि गीत लिखना स्कूली जीवन से ही इच्छा थी. शब्दों को एकसूत्र में पिरोकर नया वाक्य बनाती थी और सुंदर कविता का रूप देने की प्रयास करती थी.
जमशेदपुर के निर्देशक दीना पांडा ने अंशु झा को गीतकार व गायिकी के दुनिया में सूर्यदेवता की उपासना के महापर्व छठ के गीत ‘खुश बाड़े घर और दुआर, ये मैया आई गइले छठी के त्यौहार’ पर इसी साल ब्रेक दिया है. अंशु के दूसरे गीत देशभक्ति पर आधारित है. गीत के बोल है ‘लाखों कुर्बानी देकर ये आजादी पाए है, जिस्म से लहु बहाकर ये झंडा लहराए है, वन्दे मातरम, वन्दे मातरम, वन्दे मातरम. मिट जाये सारे खुदगर्जी जब पहनेंगे तेरी वर्दी, सीने में आग सी जलती है चाहे गर्मी हो या सर्दी, ओ मुल्क मेरे ओ देश मेरे मर जायेंगे मिट्टी में तेरे, हम कफन बांधे आये तेरे धूल बनकर रह जाएं, तुझपे ये जान कुर्बान हुआ तो तारे बनकर सज जाएं’. इस गीत का फिल्मांकन भी निर्देशक दीना पांडा के निर्देशन में किया गया है. अंशु द्वारा लिखा और गाया दोनों गीत दर्शकों द्वारा काफी पसंद किया जा रहा है. किसी भी क्षेत्र में सफल होने के लिए युवाओं को संदेश देते हुए अंशु कहती है कि ‘कदम कदम पर नया इम्तिहान होता है, संघर्ष का रास्ता कहां आसान होता है, जो चलता है इस कठिन रास्ते पर उस संघर्षशील के कदमों में जहान होता है’.