स्कूल की दीवार पर लिखा गया है शुक्रवार को अवकाश
जामताड़ा 9 जुलाई जामताड़ा में लगभग 100 सरकारी स्कूल ऐसे हैं, जहां मुस्लिम आबादी बढ़ते ही साप्ताहिक अवकाश रविवार से बदलकर शुक्रवार कर दिया गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि जुमे के दिन न तो विद्यार्थी आते हैं और न ही शिक्षक। बाकायदा स्कूल की दीवार पर भी शुक्रवार को जुमे के दिन के रूप में परिभाषित किया गया है। पिछले दिनों यहां के एक स्कूल में मुस्लिम आबादी ज्यादा होने के कारण बच्चों के हाथ जोडक़र प्रार्थना करने का नियम बदलने का मामला भी सामने आया था।
प्रधानाध्यापक और शिक्षकों पर बनाया गया दबाव
यह हालत जिले के अधिकांश वैसे इलाकों की हैं, जहां अल्पसंख्यकों की आबादी ज्यादा है। उन इलाकों में स्थानीय लोगों ने स्कूलों में अपने मुताबिक छुट्टी का दिन तय कर दिया है, जिसे मानने के लिए स्कूल प्रशासन भी विवश है। ग्रामीण प्रधानाध्यापक और शिक्षकों पर दबाव बनाकर रविवार की बजाय शुक्रवार जुम्मा की साप्ताहिक छुट्टी घोषित करवा चुके हैं। इतना ही नहीं स्कूलों के नाम के आगे उर्दू शब्द
को लिखा गया है।
जामताड़ा डीसी फैज ने झाड़ा पल्ला
जामताड़ा उपायुक्त फैज अक अहमद मुमताज से जब सवाल किया गया तब उन्होंने बयान देने से माना कर दिया। मामले पर उन्होंने शिक्षा विभाग से पता करने को कहा। बता दें- जिन स्कूलों में मुस्लिम बच्चों की संख्या ज्यादा है। वहां के आसपास के गांव के रहने वाले युवक लगातार स्कूल प्रबंधन पर दबाव बनाते हैं। यह सिलसिला लंबे समय से चल रहा है। हालांकि, यह अभी साफ नहीं हो पाया कि कब से स्कूलों में जुमा के दिन छुट्टी दी जा रही है। प्राथमिक विद्यालय ऊपर भिठरा के नाम के आगे उर्दू लगाया गया है।
ऐसी स्थिति उत्क्रमित उच्च विद्यालय बिराजपुर, मध्य विद्यालय सतुआतांड समेत अन्य कई स्कूल के हैं। अधिकतर स्कूल नारायणपुर, करमाटांड और जामताड़ा प्रखंड में स्थित हैं। ये स्कूल न तो उर्दू विद्यालय हैं और ना ही विभागीय स्तर पर इन्हें शुक्रवार को बंद रखे जाने के निर्देश हैं। इसके बावजूद स्थानीय लोगों के दबाव में इन सरकारी स्कूलों का अवकाश अब स्थायी तौर पर शुक्रवार (जुमा) किया जा चुका है। सरकारी आंकडे के अनुसार, जिले में करीब 1084 सरकारी स्कूल हैं।
गढवा मेंविद्यार्थियों को हाथ जोडऩे रोका
पिछले दिनों राज्य के गढ़वा में एक माध्यमिक विद्यालय में बिना हाथ जोड़े प्रार्थना किए जाने का मामला सुर्खियों में आया था। प्रिंसिपल का आरोप है कि स्थानीय लोगों के दबाव में यह सिलसिला पिछले 9 साल से चल रहा है। ग्रामीणों की जिद के आगे वह मजबूर होकर ऐसा करवा रहे हैं। उन्होंने स्थानीय प्रशासन से भी इसकी शिकायत की थी। मामला जब राज्य के शिक्षा मंत्री के पास पहुंचा तो उन्होंने जिला शिक्षा अधिकारी को जांच का आदेश दिया।