नई दिल्ली,4 मई : देश में हुई कई हेलिकॉप्टर दुर्घटनाओं को लेकर बदनाम रहने वाली एकमात्र सरकारी हेलिकॉप्टर प्रोवाइडर कंपनी पवनहंस अब बिक गई है। केंद्र सरकार ने पवनहंस लिमिटेड को 211.14 करोड़ रुपए में स्टार-9 मोबिलिटी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के हाथों बेच दिया है। इसके बाद से ही पवनहंस खबरों में है।
केंद्र सरकार ने पवनहंस लिमिटेड को बेचने का फैसला कर लिया है। हेलिकॉप्टर कंपनी पवनहंस लिमिटेड को बेचने के पीछे सरकार का कहना है कि कंपनी लगातार गंभीर वित्तीय संकट का सामना कर रही है। इन 3 वजहों से पवनहंस को सरकार ने बेचा है- तीन दशक से भी अधिक पुरानी इस कंपनी को वित्त वर्ष 2018-19 में लगभग 69 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था। इसके बाद साल 2019-20 में भी कंपनी को लगभग 28 करोड़ का घाटा उठाना पड़ा था। कैबिनेट कमेटी ऑफ इकोनॉमिक अफेयर्स 3 बार इसे बेचने की कोशिश कर चुकी है, लेकिन उस समय किसी निवेशक ने इसे खरीदने में रुचि नहीं दिखाई थी। इसी के चलते सरकार ने इस कंपनी से अपनी हिस्सेदारी को बेचने का फैसला किया है।
पवनहंस कंपनी पर 230 करोड़ रुपए का कर्ज भी है: पवनहंस की बिक्री से पहले सरकार ने कंपनी को घाटे से उबारने की योजना भी बनाई थी। सरकार पवनहंस के हेलिकॉप्टरों की संख्या बढ़ाकर सर्विस में सुधार करना चाहती थी, लेकिन सरकार ऐसा करने में विफल रही। यह कंपनी हेलिकॉप्टर सर्विस देने के अलावा अभी ट्रेनिंग और स्किल डेवलपमेंट और बिजनेस डेवलपमेंट जैसे प्रोग्राम को भी संचालित करती है। साल 2018 में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए सभी राजनीतिक पार्टियों ने हेलिकॉप्टर बुक करवाए थे, लेकिन यहां भी कंपनी के मैनेजमेंट की नाकामियों के चलते इन्हें निराशा हाथ लगी और प्राइवेट कंपनियां बाजी मार ले गईं। साथ ही इस कंपनी पर अभी 230 करोड़ों रुपए का कर्ज भी है।
खरीदने वाली कंपनी का नाम है…
द प्रिंट की रिपोर्ट के अनुसार सरकार ने पवनहंस लिमिटेड को स्टार-9 मोबिलिटी कंपनी के हाथों सौंप दिया है। स्टार-9 मोबलिटी कंपनी सिर्फ 6 महीने पहले ही बनाई गई है। इस कंपनी को 29 अक्टूबर 2021 को मुंबई में रजिस्टर किया गया। स्टार-9 मोबिलिटी कंपनी ने मात्र 11 करोड़ ज्यादा देकर पवनहंस लिमिटेड को खरीद लिया। स्टार-9 मोबिलिटी एक ऐसी कंपनी है जिसमें बिग चार्टर प्राइवेट लिमिटेड, महाराजा एविएशन प्राइवेट लिमिटेड और अल्मास ग्लोबल ऑपरच्युनिटी फंड एसपीसी शामिल हैं। सरकार को अपनी 51 प्रतिशत हिस्सेदारी के कम से कम 500 करोड़ रुपए मिलने की उम्मीद थी, लेकिन सरकार ने बिक्री का बेस प्राइस सिर्फ 199.92 करोड़ रुपए ही रखा।