Chandil,12 Apr : पिछले एक दशक से कोल्हान के ग्रामीण क्षेत्रों में दो तरह के ग्रामप्रधानों को लेकर विवाद है। समय समय पर यह विवाद ज्यादा ही बढ़ जाता हैं। पुनः यह विवाद सामने आया हैं। दरअसल, कोल्हान प्रमंडल संविधान की पांचवीं अनुसूची में शामिल हैं। यहां आदिवासियों के बीच वर्षों पुरानी प्रथा प्रचलित हैं जिमसें पारम्परिक ग्रामप्रधान होते हैं । अलग झारखंड राज्य गठन के बाद सरकार की ओर से विभिन्न गांवों में ग्रामप्रधान का चुनाव कराया गया था। सरकार द्वारा कराए गए ग्रामप्रधान चुनाव को कुछ आदिवासी समाज के लोग अवैध मानते हैं, इसी के कारण पारम्परिक ग्रामप्रधान और सरकारी प्रकिया वाले ग्रामप्रधान के बीच विवाद रहता हैं।
आज अम्बेडकराइट पार्टी ऑफ इंडिया की ओर से सरायकेला खरसावां के उपायुक्त को एक ज्ञापन सौंप कर कहा गया कि पारंपरिक ग्रामप्रधान एवं तथाकथित फर्जी ग्रामप्रधान को लेकर पांचवी अनुसूचित क्षेत्र के प्रत्येक राजस्व ग्राम में मतभेद एवं भेदभाव उत्पन्न हो रहा है जिसका स्पष्टीकरण सुनिश्चित किया जाय और आमजन को स्पष्ट किया जाय कि लोग किसे अपना ग्रामप्रधान मानें। उपायुक्त को दिए गए ज्ञापन में कहा गया है कि अनुसुचित क्षेत्र में आदिवासियों के उत्थान के लिए केंद्र एवं राज्य सरकार की ओर से कल्याणकारी योजनाओं को प्रस्तावित किया जाता है। उन योजनाओं के आवंटन एवं सुचारू रूप से क्रियान्वयन हेतु प्रत्येक राजस्व गांव में ग्रामसभा एवं टोला ग्रामसभा होती हैं, जिसमें पारंपरिक ग्रामप्रधान -माझी, मुंडा, पाहन, मानकी, परगना आदि पदनाम दिया जाता हैं। ज्ञापन में बताया गया है कि पेसा कानून 1996 एवं झारखंड पंचायत राज अधिनियम – 2001 की धारा 8(|||) , संविधान के अनुच्छेद 13(3)(क) और अनुच्छेद 244(1) के तहत हमें संवैधानिक एवं कानूनी शक्ति प्रदान करता है जिससे पारंपरिक रीति रिवाजों के प्रति जागरूकता एवं जिम्मेवारी बढ़ेगी। ज्ञापन सौंपने वालों में जिला अध्यक्ष रूपाय माझी, सचिव संजय कुमार टुडू, भगवान टुडू, राजू आदि मौजूद थे।