क्यों जाते हैं छात्र, क्या है उसकी वजह
रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध जारी है. राजस्थान सहित देशभर के छात्र जो एमबीबीएस करने गए यूक्रेन गए थो वो वहां फंसे हुए हैं. हालांकि, सरकार लगातार छात्रों को यूक्रेन निकालने के लिए प्रयास कर रही ही. इस बीच सवाल ये खड़ा हो रहा है कि आखिर देश के छात्र विदेश में जाकर एमबीबीएस की पढ़ाई करने को क्यों मजबूर हुए. क्या देश में एमबीबीएस से जुड़ी व्यवस्था नहीं है, क्या देश में ज्यादा और विदेश में कम फीस लगती है. इस मामले में विशेषज्ञों का कहना है कि देश में आजादी के बाद भी अजीब स्थिति बनी हुई है. पिछले साल देशभर में 16 लाख बच्चों ने नीट की परीक्षा दी. हालात ये हैं कि देश में कुल 549 कॉलेज हैं जिसमें 78333 सीटें हैं. जिसमें 272 सरकारी मेडिकल कॉलेज में 41388 और 260 निजी मेडिकल कॉलेज में 35540 सीटें है. साथ ही 15 एम्स और 2 जीपमेयर कॉलेज में 1405 सीटें है. अब तुलना कर सकते हैं कि कहां 16 लाख बच्चे और कहां मात्रा 78333 सीटें. यही नहीं राजस्थान की बात करें तो 16 सरकारी कॉलेज में 2900 और 9 निजी कॉलेज में 1900 सीटें है.
मध्यप्रदेश के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में सिर्फ 2118 सीटें हैं। ऐसे में स्टूडेंट के पास प्राइवेट कॉलेज में एडमिशन लेने का ही विकल्प बचता है, जहां फीस सरकारी कॉलेज से कई गुना ज्यादा है। ऐसे में स्टूडेंट विदेश में पढ़ाई करने का फैसला करते हैं।
ऐसे में डॉक्टर बनने का सपना पूरा करने के लिए स्टूडेंट को विदेशों का रुख करना पड़ रहा है। विदेश में पढ़ाई की सबसे बड़ी वजह फीस है। सरकारी कॉलेजों में मेडिकल की फीस 4 से 5 लाख रुपए है, लेकिन यहां सीटें सीमित होने के कारण हजारों स्टूडेंट को प्राइवेट कॉलेज में पढ़ाई का विकल्प बचता है। इनकी फीस कई गुना ज्यादा है।
यूक्रेन में है कम फीस
उनका मानना है कि दूसरा महत्वपूर्ण प्वाइंट है फीस. देश के सरकारी कॉलेज की बात करें तो 5000- 50000 एक साल की फीस में एमबीबीएस हो जाती है लेकिन यहां उच्च रैंक हासिल करने वाले बच्चे ही जा पाते हैं. वहीं देश के निजी कॉलेज की बात करें तो 5-25 लाख रुपए एक साल के लगते हैं. राजस्थान के कॉलेज में 15 लाख रुपए से कम फीस नहीं है. वहीं यूक्रेन की बात करें तो वहां रहने-खाने और फीस की पूरी पढाई 25 से 35 लाख रुपए में हो जाती है.
यही 2 कारण हैं जिसकी वजह से छात्र विदेश जाते हैं. इसमें भी सबसे पहली प्राथमिकता चीन, फिर रशिया और फिर यूक्रेन की होती है. कोरोना के बाद ज्यादातर छात्र यूक्रेन ही गए हैं. इसके अलावा किर्गिस्तान, उज्बेकिस्तान भी जाते हैं.
सरकार ने यूक्रेन से एमबीबीएस के विद्यार्थियों को वापस लाने का बीड़ा उठाया है। उम्मीद है कि सभी छात्र सुरक्षित देश लौट आएंगे लेकिन बड़ा सवाल है कि देश में आने के बाद क्या होगा? यूक्रेन के हालात कैसे होंगे। ये विद्यार्थी वापस वहां फिर जा पाएंगे या नहीं? ऐसे में सरकार को पॉलिसी बनानी चाहिए कि यहां आने के बाद उनको मेडिकल कॉलेज में प्रवेश दिया जाए।
यूक्रेन जैसे देशों से मिली डिग्री भारत में मान्य
विदेश से मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने के बाद छात्रों को भारत में फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एग्जामिनेशन (FMGE) देना होता है। इसे पास करने के बाद ही भारत में डॉक्टरी करने का लाइसेंस मिलता है और प्रैक्टिस की जा सकती है। 300 नंबर की इस परीक्षा को पास करने के लिए 150 नंबर लाने पड़ते हैं।
केंद्र सरकार ने अगले साल यानी 2023 से देश में डिग्री हासिल करने वाले डॉक्टर के लिए भी इस एग्जाम को क्लीयर करना अनिवार्य कर दिया है। ऐसे में चाहे विदेशी डिग्री हो या फिर देश के कॉलेज की डिग्री, दोनों में कोई फर्क नहीं रह गया है। केंद्र के इस नियम के कारण भी स्टूडेंट्स अब विदेश में पढ़ाई को और अधिक प्राथमिकता देंगे।
अन्य देशों की तुलना में भी यूक्रेन सस्ता
– जो बच्चे दो लाख रुपए सालाना खर्च कर BDS, B-Pharma और B.Sc करने की सोचते हैं, हम उन्हें यूक्रेन जैसे देशों से डॉक्टर बनाने का काम करते हैं। यूक्रेन में हम बच्चों को भारतीय भोजन, हॉस्टल जैसी फैसिलिटी भी देते हैं। भारत में इतने कम पैसे में डॉक्टर बनना संभव नहीं है। मेडिकल की पढ़ाई के खर्च के लिहाज से यूक्रेन दुनिया के कई देशों से काफी सस्ता है। यूक्रेन की मेडिकल यूनिवर्सिटी ना सिर्फ भारत बल्कि दूसरे कई देशों के छात्रों को भी अपनी तरफ खींच रही हैं। मेडिकल की पढ़ाई के लिए हर साल चार से पांच हजार बच्चे यूक्रेन जाते हैं।
यूक्रेन में 3 तरह की यूनिवर्सिटी
यूक्रेन में तीन तरह की करीब 20 यूनिवर्सिटी हैं। इनमें नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी, नेशनल यूनिवर्सिटी और स्टेट यूनिवर्सिटी शामिल हैं। नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी को यूक्रेन की केंद्र सरकार कंट्रोल करती है। इस यूनिवर्सिटी में सिर्फ मेडिकल कोर्स ही होते हैं। इस तरह की चार से ज्यादा नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी यूक्रेन में हैं, जो मेडिकल कमीशन ऑफ इंडिया से मान्यता प्राप्त हैं। नेशनल यूनिवर्सिटी, नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी से अलग है। इसमें मेडिकल के अलावा दूसरे कोर्स भी पढ़ाए जाते हैं। इसमें मेडिकल की पढ़ाई के लिए सिर्फ एक ब्रांच होती है।
इनके अलावा, यूक्रेन में राज्यों की अपनी सरकारी स्टेट मेडिकल यूनिवर्सिटी भी है। इन्हें राज्य कंट्रोल करते हैं। यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई के लिए जाने वाले बच्चों की पहली पसंद नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी रहती है। यूक्रेन में मेडिकल के दाखिले के लिए ये ध्यान रखना जरूरी होता है कि वो यूनिवर्सिटी भारतीय मेडिकल काउंसिल से मान्यता प्राप्त हो।