किस तरह की खड़ी हो सकती है मुश्किल?
गोवा चुनाव से पहले बीजेपी को झटके पर झटका लग रहा है। एक के बाद एक कई दिग्गज नेता भगवा पार्टी को अलविदा कह चुके हैं। इस कड़ी में सबसे ताजा नाम सीनियर बीजेपी नेता लक्ष्मीकांत पारसेकर का है। पारसेकर गोवा के पूर्व सीएम भी रहे हैं। उन्होंने शनिवार को पार्टी से इस्तीफा देने का ऐलान किया है। इसके ठीक एक दिन पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री मनोहर पर्रिकर के बेटे उत्पल पर्रिकर ने बीजेपी से इस्तीफा दिया था। इनके अलावा कई और विधायक भी पार्टी छोड़ चुके हैं। यह गोवा में बीजेपी के लिए मुश्किल बढ़ा सकता है। राज्य में 14 फरवरी को वोटिंग होगी।
उत्पल और लक्ष्मीकांत सहित ज्यादातर नेताओं का इस्तीफा देने का कारण एक ही है। इन्हें पार्टी से टिकट नहीं दिया गया है। इनके पहले मिसेल लोबो, एलिना सलदान्हा, विलफ्रेड डसा और कारलोस एलमिडा ने भी पार्टी छोड़ी थी। एलिना आप और कारलोस ने कांग्रेस का दामन थामा था। लोबो पोर्ट्स और वेस्ट मैनेजमेंट मंत्री थे। वह पार्टी के प्रमुख कैथोलिक चेहरा था। इस्तीफा देने से पहले वह सीएम प्रमोद सावंत के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार के खिलाफ खुलकर बोलते दिख रहे थे। विलफ्रेड ने 2017 में कांग्रेस के टिकट पर नेवुम सीट से चुनाव जीता था। लेकिन, अन्य कांग्रेस एमएलए के साथ बीजेपी से जुड़ गए थे।
गोवा में बीजेपी से जाने वाले नेताओं का आरोप है कि पार्टी जमीनी स्तर पर काम करने वाले वफादारों को साइडलाइन कर रही है। इसके बजाय ‘बाहरियों’ को प्राथमिकता दी जा रही है। ये हाल में पार्टी से जुड़े हैं। पारसेकर, उत्पल पर्रिकर सहित कई नेताओं ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान किया है।
उत्पल पर्रिकर पणजी सीट से बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ना चाहते थे। अपनी इच्छा से उन्होंने पार्टी को अवगत भी करा दिया था। लेकिन, पार्टी की तरफ से उन्हें पणजी सीट से टिकट देने को लेकर कभी पॉजिटिव रेस्पॉन्स नहीं मिला। उत्पल ने पहले भी संकेत दिया था कि टिकट न मिलने पर वह निर्दलीय चुनाव लड़ सकते हैं। गोवा की पणजी सीट पर बीजेपी का दबदबा रहा है और यहां से पूर्व सीएम मनोहर पर्रिकर 6 बार विधायक रह चुके हैं। गोवा में बीजेपी का आधार मजबूत करने में पर्रिकर की अहम भूमिका मानी जाती है। इसके ठीक एक दिन बाद लक्ष्मीकांत पारसेकर ने पार्टी से इस्तीफा देने का ऐलान कर दिया। उन्हें भी पार्टी से टिकट नहीं मिला है।
पिछले चुनाव के बाद हुआ था बड़ा उलटफेर
पिछले चुनाव के बाद गोवा में बड़ा उलटफेर हुआ था। राज्य में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। हालांकि, 40 विधानसभा सीटों वाली गोवा विधानसभा में वह सत्ता बनाने के लिए जादुई आंकड़े से पीछे रह गई थी। अपने सहयोगियों के साथ उसने 17 सीटें जीती थीं। बीजेपी तो इस आंकड़े से और भी दूर थी। उसे सिर्फ 13 सीटें मिली थीं। हालांकि, बाद में कांग्रेस के 8 विधायक पार्टी को छोड़ बीजेपी से जुड़ गए थे। इस तरह उसने सरकार बना ली थी।
क्या बन रही चुनाव में सूरत?
तमाम ओपिनियन में गोवा चुनाव में बीजेपी की स्थिति पिछले चुनावों की तुलना में काफी मजबूत दिखाई गई है। उसे 18-22 सीटें पाते दिखाया जा रहा है। वहीं, आम आदमी पार्टी (आप) मुकाबले में दूसरे नंबर पर है। उसे 7-11 सीटें मिलने का अनुमान जाहिर किया गया है। कांग्रेस की स्थिति पहले से कहीं कमजोर होती दिख रही है। वह राज्य में 4-6 सीटें पा सकती है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी को छोड़ने वाले इन कद्दावर नेताओं के कारण सीटों पर कितना असर होगा। यह बात बिल्कुल तय है कि इनमें से कई अपने-अपने क्षेत्रों में काफी प्रभाव रखते हैं।
क्या है बीजेपी की रणनीति?
जानकार मानते हैं कि चुनाव में बीजेपी की रणनीति हिंदू मेजोरिटी ब्लॉक को मजबूत करने की है। ईसाई समुदाय के ज्यादातर नेताओं ने पार्टी पर साइडलाइन करने का आरोप लगाया है। कोर्टालिम से विधायक रही सलदान्हा ने इस्तीफा देते वक्त कहा था कि पार्टी अपने सिद्धांतों पर नहीं चल रही है। वह पर्रिकर कैबिनेट में मंत्री भी थीं।