कोरोना महामारी के दौरान देश की बड़ी आबादी बीमारी से तो तबाह थी ही उससे बड़ी परेशानी रोजी रोजगार के छिन जाने से हो रही थी। परिवार कैसे चलेगा यह चिंता सभी को खाये जा रही थी। आपदा की इस घड़ी में कुछ लोग अवसर तलाशने में लगे थे। लोग मर रहे थे लेकिन सूई में पानी भरकर इस्तेमाल किया जा रहा था। इस दौरान मानवता की सेवा करने के लिये जहां लोग बढ़चढक़र सामने आ रहे थे, वहां ऐसे भी लोग रहे जिनकी नजर केवल कमाई करने पर टिकी थी। लाभ अर्जित करना बुरी बात नहीं लेकिन किस कीमत पर? अभी भी ऐसे मामले देखने को आ रहे है जो बेहद चौंकाने वाले हैं। आई सी एम आर के डी जी बलराम भार्गव ने ट्वीट कर इस बात पर चिंता जताई है कि आर टी पी सी आर ुकिट की कीमत केवल 50 रुपये हैं लेकिन टेस्ट के लिये 400 रुपये देने पड़ रहे हैं। जांच में होम डिलेवरी डिलिवरी के नाम पर 200 रुपये अतिरिक्त चार्ज किया जाता है। लेकिन जब घर के एक से अधिक सदस्य का सैम्पल एक साथ लिया जाता है तो होम डिलिवरी के नाम पर हर सदस्य से 200 रुपये का अतिरिक्त चार्ज क्यों लिया जाय?
यह सही है कि कोरोना महामारी के दौरान शुरुआती दिनों में देश में आर टी पी सी आर किट की भारी किल्लत थी। उसका उत्पादन कम होता था। तब अधिक कीमत लिये जाने की बात समझ में भी आती है लेकिन आज, जैसा कि श्री भार्गव ने बताया सरकार के अधिकृत पोटेल पर 2000 से अधिक आर टी पीसीआर किट के प्रोडक्ट हैं तो प्रतिस्पर्धा के इस दौर में आरटी पीसीआर किट की कीमत काफी कम हो गई है और यह आसानी से उपलब्ध भी हो जा रहे है।
दरअसल स्वास्थ एवं शिक्षा दो ऐसे क्षेत्र है जहां सेवा के नाम पर लूट मची रहती है। उससे हर कोई परेशान है। लेकिन इनका काकस इतना मजबूत है कि सरकारे भी इनके सामने घुटने टेकती प्रतीत होती हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार की नीतियां भी उनसे ही प्रभावित होकर बनाती है। सब देखते-जानते भी कोई इनके सिंडिकेट के खिलाफ कोई कदम उठाने का साहस भी नहीं कर पाता। ये दो ऐसे क्षेत्र हैं जिससे देश के हर परिवार का सीधा नाता होता है। एक दिन पहले ही टाटा सन्स के चेयरमैन चन्द्रशेखरन ने शिक्षा और स्वास्थ को राष्ट्रीय प्राथमिकता वाले दो प्रथम क्षेत्र के रुप में शामिल करने की बात कही थी। सवाल यही है कि लूट के इस बाजार पर रोक कैसे लगेगी। 380 रुपये के इंजेक्शन पर 2000 रुपये का प्रिंट रहता है। एक मेडिकल दुकानदार यदि 50 प्रतिशत की भी छूट दे तो उसे ढाई गुणा से अधिक का मुनाफा होता है। दुनिया का कोई दूसरा कारोबार ऐसा नहीं है जिसमें इतना अधिक मुनाफा होता हो। हर टेस्ट के लिये मोटी रकम ऐंटी जाती है। पूरे घंघा से देश अवगत पीडि़ता है। लेकिन बड़ा सवाल यही है कि बिल्ली के गले में घंटी बांधे कौन?