कोरोना वैक्सीन सर्टिफिकेट पर पीएम मोदी की तस्वीर लगी होने का कुछ आम लोग और राजनीतिक दलों ने विरोध किया था। उनका कहना था कि यह वैक्सीन भारत सरकार की ओर से लगाई गई है न कि किसी पार्टी या नेता की ओर से लगाई गई है। ऐसे में सर्टिफिकेट पर पीएम मोदी की तस्वीर सत्ताधारी दल का प्रचार है और वह इसका राजनीतिक फायदा उठाना चाहता है। इसको लेकर केरल उच्च न्यायालय में एक बुजुर्ग की दायर याचिका को न्यायालय ने मंगलवार को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि पीएम किसी दल का नहीं पूरे देश का प्रधानमंत्री होता है। लिहाजा उनकी तस्वीर नहीं हटाई जानी चाहिए।
न्यायालय ने यह भी कहा कि नागरिकों को उनकी तस्वीर और “मनोबल बढ़ाने वाले संदेश” के साथ टीकाकरण प्रमाण-पत्र ले जाने में “शर्मिंदा होने की जरूरत नहीं है।” याचिका में बुजुर्ग ने यह भी कहा था कि जब मैंने अपने पैसे से कोरोना वैक्सीन ली है और सरकार सभी को फ्री में कोरोना वैक्सीन नहीं दे पा रही है तो फिर सर्टिफिकेट पर प्रधानमंत्री मोदी की फोटो क्यों लगाई जा रही है।
उच्च न्यायालय ने कहा, “कोई यह नहीं कह सकता कि प्रधानमंत्री कांग्रेस के प्रधानमंत्री हैं या भाजपा के प्रधानमंत्री या किसी राजनीतिक दल के प्रधानमंत्री हैं। लेकिन एक बार जब प्रधानमंत्री संविधान के अनुसार चुन लिए जाते हैं, तो वह हमारे देश के प्रधानमंत्री होते हैं और वह पद हर नागरिक का गौरव होना चाहिए।”
अदालत ने कहा, “… वे सरकार की नीतियों और यहां तक कि प्रधानमंत्री के राजनीतिक रुख से भी असहमत हो सकते हैं। लेकिन नागरिकों को विशेष रूप से इस महामारी की स्थिति में मनोबल बढ़ाने वाले संदेश के साथ प्रधानमंत्री की तस्वीर के साथ टीकाकरण प्रमाण-पत्र ले जाने में शर्मिंदा होने की आवश्यकता नहीं है।”
अदालत ने यह भी कहा कि जब कोविड-19 महामारी को केवल टीकाकरण से ही समाप्त किया जा सकता है तो अगर प्रधानमंत्री ने प्रमाण पत्र में अपनी तस्वीर के साथ संदेश दिया कि दवा और सख्त नियंत्रण की मदद से भारत वायरस को हरा देगा तो इसमें “क्या गलत है?” अदालत ने एक लाख रुपये का जुर्माना लगाते हुए याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि यह याचिका “तुच्छ, गलत उद्देश्यों के साथ प्रचार के लिए” दायर की गई और याचिकाकर्ता का शायद “राजनीतिक एजेंडा” भी था।