Jamshedpur,24 Nov : लखनवी अंदाज में काठ के घोड़ों को लेकर साकची बसंत सिनेमा के सामने हनुमान जी का मंदिर बनवाने और उसमें दखल जमाने के लिये भांड़ों की नौटंकी जैसा तमाशा हो रहा है. आस्था और श्रद्धा की जगह इस स्थान को जोर आजमाइश का अड्डा बनते जिला प्रशासन और टाटा स्टील भी चुपचाप देख रहे हैं. मंदिर निर्माण के बहाने राजनीति चमकाने की कोशिश अब सार्वजनिक हो रही है. ऐसे लोगों को तनिक भी सनातन धर्म की भावना का अहसास नहीं है कि देवता का वास वहीं होता है, जहां शांति और पवित्रता होती है. यहां सुबह-शाम आरती के नाम पर राजनीति और गाली-गलौज शुरु हो गया है. मंदिर का स्थान टाटा स्टील लीज भूमि का हिस्सा है जिसके नाते उसपर राज्य सरकार, जिला प्रशासन और टाटा स्टील की जिम्मेवारी बनती है कि वहां राजनीति न हो, न ही निर्माण के बहाने रस्साकस्सी चलने दी जाए.ज़िला प्रशासन ने कानूनी करवाई की शुरुआत करते हुए दो पक्षों के कुछ व्यक्तियों पर धारा 107 के तहत नोटिस निर्गत किया है।
निर्माण को लेकर छिड़े विवाद में कल एक समाधान की आस जगी जब साकची बाजार के कुछ दुकानदारों एवं संभ्रांत व्यक्तियों ने स्थानीय विधायक के साथ बैठक कर निर्माण व संचालन आसपास के दुकानदारों के जिम्मे लगाने का प्रस्ताव दिया. फिर खबर आई कि जिला कांग्रेस अध्यक्ष और विधायक के बीच एक अनौपचारिक मुलाकात हुई है जिसमें मंदिर की जायज-नाजायज स्थापना करनेवाले सुरेन्द्र शर्मा को पूरे प्रकरण में शामिल कर विवाद का निपटान किया जाए. बातचीत में जैसी कि खबर है तत्काल एक पांच सदस्यीय तदर्थ समिति बनाने पर चर्चा हुई जिसमें संरक्षक का भार उठाने के लिये विधायक को कहा गया. यह कमिटी निर्माण और फिलहाल संचालन करे, फिर निर्माण पूरा होने के बाद विधिवत कमिटी बनाकर मंदिर उसे सौंप दिया जाए. इस समिति में सुरेन्द्र शर्मा सहित अन्य सदस्यों के नाम पर भी चर्चा हुई लेकिन यह चर्चा मूर्त रुप लेती, उसके पहले ही उक्त लखनवी अंदाज में काठ के घोड़े लिये लोग नौटंकी करने पहुंच गये.
लोग सब समझ रहे हैं कि इस मंदिर को लेकर कुछ लोगों में इतना प्रेम क्यों उमड़ पड़ा है. कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना की तरह न सिर्फ राजनीति चमकाना मकसद दिख रह है, बल्कि ‘माल महाराज का मिर्जा खेले होली’ की तरह इस व्यस्त चौराहे पर मंदिर कब्जियाने की जोर आजमाइश की जा रही है। राजनीति से बेरोजगार हुए लोग इस मौके को किसी कीमत पर हाथ से जाने देना नहीं चाहते. किसी भी प्रस्ताव पर सहमति को कारगर नहीं होने देने के पीछे क्या मकसद है, यह सब धीरे-धीरे सामने आ रहा है. धार्मिक स्थल के निर्माण को लेकर दूसरे समुदाय पर कटाक्ष करनेवाले हिन्दू समाज के लोगों को भी विचार करना चाहिये कि कौन लोग हनुमान जी के मंदिर के बहाने हिन्दू समाज की भद्द पिटवा रहे हैं. ऐसे हालात ही सोचने पर विवश करते हैं कि तथाकथित अंध भक्तों के हंगामे के डर से कहीं भी हनुमान जी को या किसी भी देवी देवता को खड़ा करने की अनुमति मिलनी चाहिए ?