गम्हरिया, 21 अक्तूबर(रिपोर्टर): डायन प्रथा के खिलाफ काम करने वाली छुटनी महतो आगामी 9 नवंबर, 2021 को पद्मश्री सम्मान से सम्मानित होगी. इसको लेकर छुटनी महतो को न्योता भी मिल गया है. 25 जनवरी, 2021 को सम्मान के लिए घोषणा से करीब 9 माह बाद सम्मान समारोह के लिए फोन आने से छुटनी महतो समेत उनके परिवार व शुभचिंतकों में खुशी व्याप्त है.
सरायकेला जिला अंतर्गत गम्हरिया प्रखंड के बीरबांस निवासी छुटनी महतो जब 12 साल की थी, तब उसकी शादी गम्हरिया थाना अंतर्गत सामरम पंचायत (वर्तमान में नवागढ़) निवासी धनंजय महतो (अभी मृत) से हुई थी. तीन बच्चों के बाद 2 सितंबर, 1995 को उसके पड़ोसी भोजहरी की बेटी बीमार हो गयी थी. ग्रामीणों को शक हुआ कि छुटनी ने कोई जादू- टोनाकर उसे बीमार कर दिया है. इसके बाद गांव में पंचायत हुई, जिसमें उसे डायन करार देते हुए लोगों ने घर में घुसकर उसके साथ दुष्कर्म करने की कोशिश की गयी थी.
उसके बाद गांव में पंचायती कर उल्टा छुटनी महतो को ही दोषी मानते हुए पंचायत ने 500 रुपये का जुर्माना लगा दिया. उस वक्त छुटनी महतो ने किसी तरह जुगाड़ कर जुर्माना भर दिया. इसके बाद भी लोगों का गुस्सा शांत नहीं हुआ. ग्रामीणों ने ओझा-गुनी के माध्यम से उसे शौच पिलाने का भी प्रयास किया गया. मैला पीने पर मना करने पर जबरन उसके शरीर पर फेंक उसे बेइज्जती किया गया. उसने थाना में भी प्राथमिकी दर्ज करायी. मामले में कुछ लोगों की गिरफ्तारी तो हुई, लेकिन
कुछ दिन बाद ही सभी निकल गये.
ग्रामीणों की प्रताडऩा से तंग आकर वो ससुराल छोड़ पति व बच्चों को लेकर बीरबांस स्थित मायके आ गयी, लेकिन कुछ वर्ष बाद ही पति धनंजय महतो ने भी तीन बच्चों को छोड़ गांव लौट आया. इसी वर्ष 30 जून को पति धनंजय महतो का निधन हो गया.
महतानडीह के लोगों को धन्यवाद, जिन्होंने मुझे पद्मश्री बनाया : छुटनी
पद्मश्री के लिए नामित छुटनी महतो ने अपने ससुराल महतानडीह के लोगों को धन्यवाद दिया. उन्होंने कहा कि अंधविश्वास से चूर होकर ग्रामीण अगर उन्हें प्रताडि़त नहीं करते, तो शायद आज मुझे यह मुकाम हासिल नहीं हो पाता. बीरबांस गांव में आपबीती बताते हुए छुटनी महतो रो पड़ी. उन्होंने कहा कि भले ही ससुराल के गांव वालों ने मुझे डायन करार देकर मुझे गांव से निकाल दिया, लेकिन मुझे इस काबिल बनाने में सबसे अहम योगदान महतानडीह के लोगों का ही है, क्योंकि अगर वहां के ग्रामीण मुझे डायन कहकर प्रताडि़त नहीं करते, तो शायद मैं डायन प्रथा के खिलाफ आवाज नहीं उठा पाती.
छुटनी देश की प्रेरणास्रोत : सिंगो
नवागढ़ पंचायत की पूर्व मुखिया सह कार्यकारी समिति प्रधान व महतानडीह निवासी सिंगो टुडू ने कहा कि पद्मश्री छुटनी महतो आज जिस मुकाम पर पहुंची है वह समाज व देश के लिए प्रेरणास्रोत है. उनके जीवन से आने वाले पीढ़ी को सीख लेने की जरूरत है. श्रीमती टुडू ने कहा कि मैं उन्हें व्यक्तिगत रूप से जानती हूं. वर्ष 1995 में जब उक्त घटना घटी थी, तब हमारे ससुर भोगना मांझी द्वारा उन्हें हर संभव सहायता की गयी थी. समाज में व्याप्त महिला उत्पीडऩ व डायन जैसी कुप्रथा व
अंधविश्वास के खिलाफ आवाज उठाने का प्रयास अतुलनीय व सराहनीय है.
करीब 18 साल से आशा संस्था से जुड़ी है छुटनी महतो
गैर सरकारी संस्था आशा के सचिव अजय जायसवाल ने कहा कि डायन कुप्रथा के खिलाफ लगातार प्रयास का नजीता है कि छुटनी महतो को पद्मश्री मिल रहा है. इनको पद्मश्री मिलने से इस कुप्रथा को खत्म करने में जुटी अन्य महिलाएं भी काफी प्रभावित होंगी. उन्होंने कहा कि छुटनी महतो आशा संस्था से करीब 18 साल से जुड़ी है. वर्तमान में सरायकेला समेत आसपास के जिलों में डायन कुप्रथा के खिलाफ लगातार कार्य कर रही है.