चतुर्थ कुष्मांडा

उपासना मंत्र : सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च. दधानां हस्तपद्माभ्यां कुष्मांडा शुभदास्तुमे॥
चौथे स्वरूप में देवी कुष्मांडा भक्तों को रोग, शोक और विनाश से मुक्त करके आयु, यश, बल और बुद्धि प्रदान करती हैं. यह बाघ की सवारी करती हुईं अष्टभुजाधारी,मस्तक पर रत्नजडि़त स्वर्ण मुकुट पहने उज्जवल स्वरूप वाली दुर्गा हैं. इन्होंने अपने हाथों में कमंडल, कलश, कमल, सुदर्शन चक्र, गदा, धनुष, बाण और अक्षमाला धारण किए हैं. अपनी मंद मुस्कान हंसी से ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इनका नाम कुष्मांडा पड़ा. कहा जाता है कि जब दुनिया नहीं थी, तो चारों तरफ सिर्फ अंधकार था. ऐसे में देवी ने अपनी हल्की-सी हंसी से ब्रह्मांड की उत्पत्ति की. वह सूरज के घेरे में रहती हैं. सिर्फ उन्हीं के अंदर इतनी शक्ति है, जो सूरज की तपिश को सहन कर सकें. मान्यता है कि वह ही जीवन की शक्ति प्रदान करती हैं.

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