देशभर में रक्षाबंधन या राखी का त्योहर बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. सावन मास की पूर्णिमा के दिन रक्षाबंधन मनाया जाता है. इस बार राखी 22 अगस्त रविवार को पड़ रही है. इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी, रक्षासूत्र या मौली बांधकर उनकी लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं. वहीं, भाई भी बहनों को उपहार देकर उनकी उम्रभर उनकी रक्षा करने का वचन लेते हैं. ये त्योहार भाई-बहन के बीच अटटू प्रेम और पवित्रता को दर्शाता है. सिर्फ बहनें ही नहीं, बल्कि भाई भी रक्षाबंधन का इंतजार बड़ी बेसब्री से करते हैं. सदियों से चले आ रहे रक्षाबंधन के त्योहार को मनाते तो सभी हैं, लेकिन बहुत कम लोग इसके पीछे की पौराणिक कथा को जानते हैं. आइए डालते हैं राखी से जुड़े उसके दिलचस्प इतिहास पर एक नजर, ताकि इस बार राखी बांधते हुए आप उसकी कथा और उसके मतलब को अच्छे से महसूस कर सकें.
रक्षाबंधन से जुड़ी पौराणिक कथा-
देवी शचि और इंद्र की कथा
रक्षाबंधन की शुरुआत कब और कैसे हुई इसे लेकर कई पौराणिक कथा प्रचलित हैं. यहां तक कि महाभारत में भी रक्षासूत्र का जिक्र किया गया है. लेकिन ऐसा माना जाता है कि सबसे पहला रक्षासूत्र इंद्र को उनकी पत्नी शचि ने बांधा था. कहा जाता है कि जब इंद्र वृत्तसुर से युद्ध के लिए जा रहे थे तो उनकी चिंता करते हुए देवी शचि ने उनके हाथ पर मौली या कलावा बांधा और उनकी रक्षा की कामना की थी. इसके बाद से रक्षबंधन की शुरुआत मानी जाती है.
भगवान विष्णु और राजा बलि की कथा
वहीं, दूसरी कथा भगवान विष्णु और राजा बलि की है. कहा जाता है कि इसके बाद भी रक्षासूत्र का महत्व बढ़ गया था. दरअसल, भगवान विष्णु वामन रूप धारण करके राजा बलि से उसका राज्य ठगने जाते हैं और तीन पग में राजा बलि से सारा राज्य मांग लिया था. इसके बाद राजा बलि को पाताल में रहने की सलाह देते हैं. राजा बलि नारायण जी की बात मान लेते हैं और उनके साथ पाताल चले जाते हैं. वहां विष्णु जी से एक वचन देने को कहते हैं. विष्णु जी उन्हें वचन देने के लिए तैयार हो जाते हैं. ऐसे में राजा बलि उन्हें कहते हैं कि मैं जब भी देखूं आपको ही देखूं, सोते जागते हर पल आपको ही देखूं. ऐसे में विष्णु जी अपने वचन को पूरा करते हैं और पाताल में ही रहने लग जाते हैं.
उधर लक्ष्मी जी को नारायण जी की चिंता होने लगती है और वो नारद जी से विष्णु भगवान के बारे में पूछती हैं. तब उन्हें सारी बात पता चलती है. ऐसे में नारद जी लक्ष्मी जी को सलाह देते हैं कि वो राजा बलि को अपना भाई बना लें और दक्षिणा में नारायण जी उनसे मांग लें. देवी लक्ष्मी ऐसा ही करती हैं. वे भेष बदलकर रोती हुई पाताल जाती हैं और राजा बलि के पास पहुंच जाती हैं. राजा जब उनसे उनके रोने का कारण पूछते हैं तो वे उन्हें कहती हैं कि मेरा कोई भाई नहीं. तब राजा उन्हें कहते हैं कि आज से वे ही उनके धर्म भाई हैं. माता लक्ष्मी उन्हें रक्षासूत्र बांधती हैं और नारद जी के सलाह अनुसार उनसे दक्षिणा में नारायण जी को मांग लेती हैं. तब से ही पौराणों में रक्षासूत्र का महत्व होने लगा.
भगवान कृष्ण और द्रोपदी की कथा
रक्षाबंधन से जुड़ी एक पौराणिक कथा महाभारत में भी बताई गई है. महाभारत में जब श्रीकृष्ण शिशुपाल का वध करते हैं, उस समय श्री कृष्ण का हाथ भी घायल हो जाता है. उस दौरान द्रोपदी जल्दी से अपनी साड़ी का एक सिरा फाड़कर कृष्ण जी की चोट पर बांध देती हैं. भगवान श्री कृष्ण ने द्रोपदी को उनकी रक्षा का वजन दिया. इसी के बाद जब हस्तिनापुर की सभा में दुस्शासन द्रोपदी का चीर हरण कर रहा था, तब श्री कृष्ण ने ही उनका चीर बढ़ाकर द्रोपदी के मान की रक्षा की थी.
पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि कैसे भाई-बहन के रिश्ते की नींव प्रेम और त्याग पर टिकी होती है. बहन के रक्षासूत्र का मान रखना भाइयों का कर्तव्य है. उन्हें हर मुसीबत से बचाना और जरूरत के समय उनके काम आना ही रक्षासूत्र का असली मतलब है.