भारत में लगभग 13,000 स्कूल, ईसाई संगठन चलाते हैं. देश के सर्वोच्च बाल अधिकार निकाय के एक अनुमान के मुताबिक ये स्कूल आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के छात्रों को एडमिशन न देकर हर साल 2,500 करोड़ रुपये से अधिक की बचत कर रह हैं. आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को एडमिशन देना शिक्षा का अधिकार अधिनियम के मुताबिक अनिवार्य है.
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) अल्पसंख्यक संस्थानों को अधिनियम के दायरे में लाने के लिए अनुमान का उपयोग कर रहा है. न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक एनसीपीसीआर की तरफ से तैयार की गई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 2017-18 के लिए भारत में शिक्षा पर घरेलू सामाजिक उपभोग के अनुसार, निजी गैर-सहायता प्राप्त संस्थानों में सामान्य पाठ्यक्रम के लिए प्रति छात्र औसत खर्च 18,267 रुपये था.
12,904 ईसाई अल्पसंख्यक स्कूलों में बच्चों की संख्या 54,86,884
अल्पसंख्यक शिक्षा पर स्टडी के अनुसार पूरे भारत में फैले लगभग 12,904 ईसाई अल्पसंख्यक स्कूलों में बच्चों की संख्या 54,86,884 है, इसका मतलब है कि ये स्कूल छात्रों से 10,022.89 करोड़ रुपये कमाते हैं. रिपोर्ट में बताया गया है कि इन स्कूलों में वंचित या कमजोर वर्ग के बच्चों को प्रवेश न देकर कुल बच्चों के 25% के खर्च पर बचत की जा रही है, जो कि 2,505.72 करोड़ रुपये है.
इससे पहले पार्टी लाइन से अलग हटकर असम के विधायकों ने पिछले हफ्ते विधानसभा में राज्य के शिक्षा क्षेत्र की खराब स्थिति़ पर प्रकाश डाला था. चालू वित्त वर्ष के बजट पर चर्चा के दौरान सत्तारूढ़ बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन और विपक्षी दलों के विधायकों ने सरकार से कहा था कि अगर असम शिक्षा क्षेत्र में देश के टॉप पांच राज्यों में से एक बनने के अपने टारगेट को पूरा करना चाहता है तो इस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है.
राज्य में बीजेपी अपने सहयोगी दलों असम गण परिषद (एजीपी) और यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल (यूपीपीएल) के साथ सरकार का नेतृत्व कर रही है. चर्चा का जवाब देते हुए शिक्षा मंत्री रानुज पेगू ने कहा कि ट्रेंड टीचर्स की कमी के कारण राज्य में विशेषकर माध्यमिक स्तर पर शिक्षा की गुणवत्ता चरमरा रही है. शिक्षा मंत्री पेगू ने कहा कि राज्य के माध्यमिक विद्यालयों में केवल 38 प्रतिशत टीचर्स ही ट्रेंड हैं